रियासती काल में चूरू जिला बीकानेर रियासत के अंतर्गत स्थित था जिस पर राठौड़ राजवंश का शासन था। इसलिए चूरू जिले के दुर्ग राठौड़ राजाओं एवं सामंतों द्वारा निर्मित हैं।
चूरू जिले के दुर्ग मस्थलीय श्रेणी के दुर्ग हैं जो अपने निर्माण के समय गहन थार मरुस्थल में स्थित थे। इनमें से कुछ दुर्ग छोटी पहाड़ियों पर भी बने हुए हैं। ये पहाड़ियां अरावली पर्वत माला के ही छितराए हुए हिस्से हैं। चूरू जिले के दुर्गों में से चूरू दुर्ग का वर्णन अलग आलेख में किया गया है। इस आलेख में कतिपय अन्य लघु दुर्गों के बारे में जानकारी दी गई है।
सुजानगढ़ दुर्ग
बीकानेर से 72 किलोमीटर दूर स्थित सुजानगढ़ का पुराना नाम हड़बूजी का कोट था। बीकानेर नरेश सूरतसिंह (ई.1787-1828) ने इसे खंडवा के जागीरदार से प्राप्त किया तथा इसका नाम बीकानेर के बारहवें नरेश सुजानसिंह के नाम पर सुजानगढ़ रखा। महाराजा सूरतसिंह ने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार भी करवाया। इसके चारों ओर धूलकोट अर्थात् मिट्टी का परकोटा है।
सुजानगढ़ दुर्ग वर्तमान समय में चूरू जिले में स्थित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय दुर्ग अपेक्षाकृत अच्छी अवस्था में था। इसमें कई सरकारी कार्यालय खोले गये। ई.1868-83 तक सुजानगढ़ में ब्रिटिश पॉलिटिकल ऑफिसर का निवास भी रहा। उसका बंगला एक टीले पर बना हुआ है।
राजगढ़ दुर्ग
बीकानेर नरेश गजसिंह ने ई.1766 में अपने पुत्र राजसिंह के नाम पर राजगढ़ दुर्ग बनवाया। दुर्ग का निर्माण गजसिंह के मंत्री बख्तावरसिंह के निर्देशन में किया गया। वर्तमान समय में राजगढ़ दुर्ग चूरू जिले की राजगढ़ तहसील में है। आजादी के बाद इस दुर्ग में जेल, उपखण्ड कार्यालय तथा तहसील कार्यालय खोले गये। राजगढ़ दुर्ग अब जर्जर अवस्था में है।
रतनगढ़ दुर्ग
रतनगढ़ दुर्ग चूरू जिले में रतनगढ़ कस्बे में स्थत है। इसका पुराना नाम कोलासर था। इस दुर्ग की स्थापना बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने ई.1798 में की तथा इसका नामकरण अपने पुत्र रतनंिसंह के नाम पर रतनगढ़ किया। यह दुर्ग ई.1812 में बनकर तैयार हुआ।
चूरू के ठाकुर पृथ्वीसिंह ने सीकर के महारावल लक्ष्मणसिंह को सहायता देने के लिये रतनगढ़ दुर्ग पर ई.1815 एवं ई.1816 में दो बार आक्रमण किया। पहले आक्रमण में रतनगढ़ का किलेदार लालशाह एवं दूसरे आक्रमण में किलेदार जेठमल पुरोहित मारा गया। रतनगढ़ कस्बे में एक और छोटे दुर्ग का भी निर्माण करवाया गया था जो अब नष्ट हो गया है। मुख्य दुर्ग में आजादी के बाद कुछ सरकारी कार्यालय खोले गये। यह दुर्ग भी अब जर्जर अवस्था में है।
तारानगर दुर्ग
तारानगर दुर्ग का निर्माण बीकानेर नरेश सूरतसिंह (ई.1787-1828) ने करवाया। संभवतः यहाँ चायल राजपूतों द्वारा बनाया गया एक दुर्ग पहले से हो तथा महाराजा सूरतसिंह ने उसका पुनर्निर्माण करवाया हो। यह दुर्ग सुव्यवस्थित ढंग से बना हुआ है तथा आजादी के समय अपेक्षाकृत अच्छी अवस्था में था। इसमें भी आजादी के बाद कई सरकारी कार्यालय खोले गये। वर्तमान समय में तारानगर दुर्ग चूरू जिले की तारानगर तहसील में स्थित है।
सरदारशहर दुर्ग
बीकानेर से लगभग 136 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित सरदारशहर दुर्ग का निर्माण महाराजा सरदारसिंह ने सिंहासनारूढ़ होने से पहले करवाया। दुर्ग के चारों ओर अब नगर बस गया है। दुर्ग की प्राचीरें आज भी दिखाई देती हैं। दुर्ग के भवनों में सरकारी कार्यालय चलते हैं। वर्तमान समय में सरदारशहर दुर्ग चूरू जिले की सरदारशहर तहसील में स्थित है।
रिणी दुर्ग
यह दुर्ग महाराजा सूरतसिंह (ई.1787-1828) ने बनवाया। माना जाता है कि आज से कई हजार साल पहले रिणीपाल नामक राजा ने रिणी नामक स्थान बसाया।
इस आलेख में चूरू जिले के दुर्गों में से कुछ ही दुर्गों को सम्मिलित किया गया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता