संसार भर में महान् शासकों एवं महान विजेताओं द्वारा अपनी यशकीर्ति को पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण्ण रखने के अभिप्राय से विजय स्तम्भ लगवाए जाने की परम्परा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है। कहीं-कहीं पर विजय स्तम्भ को कीर्तिस्तम्भ भी कहा जाता था। विजय स्तम्भ एवं कीर्ति स्तम्भ प्रायः विजेता राजाओं की वंशावलियों, विजयों, उपलब्धियों एवं अन्य सूचनाओं को वहन करने वाली प्रशस्ति लिखवाने के उद्देश्यों से भी बनवाए जाते थे।
विजय स्तम्भ
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के भीतर स्थित नौखण्डा विजय स्तम्भ चित्तौड़गढ़ दुर्ग का सबसे भव्य निर्माण है। इसे ई.1438 में महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह खिलजी पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में अपने अराध्य-देव विष्णु के निमित्त बनवाना आरम्भ किया था। इसे बनने में लगभग 10 साल का समय लगा। यह स्तम्भ 12 फुट ऊंचे और 2 फुट गुणा दो फुट आकार के चौकोर चबूतरे पर स्थित है।
इस स्तम्भ की ऊंचाई 122 फुट (लगभग 37 मीटर) है। इसमें कुल 9 मंजिलें हैं तथा ऊपर तक जाने के लिये स्तम्भ के भीतर 157 घुमावदार सीढ़ियां बनी हुई हैं। यह भारत में पाया जाने वाला एक मात्र विजय स्तम्भ है जो भीतर और बाहर, मूर्तियों से लदा हुआ है। कई विद्वानों ने इसे हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजाया हुआ एक व्यवस्थित संग्रहालय कहा है। फर्ग्यूसन ने इसे रोम के ट्राजन टावर से तथा कर्नल टॉड ने इसे कुतुबमीनार से श्रेष्ठ बताया है।
स्तम्भ का द्वार दक्षिण की ओर है। इस द्वार से प्रवेश करते ही सामने जनार्दन की मूर्तियां दिखाई देती हैं।
प्रथम मंजिल के पार्श्व में अनंत, ब्रह्मा और रुद्र की मूर्तियां हैं।
दूसरी मंजिल के पार्श्व की ताकों में अर्द्धनारीश्वर तथा हरिहर की मूर्तियां हैं।
तीसरी मंजिल में विरंचि, जयंत, नारायण और पितामह की मूर्तियां हैं।
चौथी मंजिल में त्रिखण्डा, तोत्रला, हरिसिद्ध, पार्वती, हिंगलाज, गंगा, यमुना एवं सरस्वती, गंधर्व, कार्तिकेय एवं विश्वकर्मा की मूर्तियां बनी हुई हैं।
पांचवी मंजिल में लक्ष्मीनारायण, उमा-महेश्वर और ब्रह्मा-सावित्री की मूर्तियां बनी हुई हैं।
छठी मंजिल में सरस्वती, महालक्ष्मी ओर महाकाल की मूर्तियां हैं।
सातवीं मंजिल में वाराह, नृसिंह, रामचन्द्र, बलदेव, बुद्ध आदि अवतार मूर्तियां बनी हुई हैं।
आठवीं मंजिल में कोई मूर्ति नहीं है, केवल चारों ओर स्तम्भ बने हुए हैं।
नौवीं मंजिल में गुम्बद के नीचे वाले भाग में कई शिलाओं पर महाराणा हम्मीर से लेकर महाराणा मोकल तक का श्लोकबद्ध वर्णन है। इसमें महाराणा कुंभा की प्रशस्ति के अंश भी सम्मिलित हैं।
विजय स्तंभ पर एक बार बिजली गिर जाने से उसके ऊपरी भाग को क्षति पहुंची थी। इस कारण महाराणा स्वरूपसिंह तथा महाराणा फतेहसिंह के कार्यकाल में विजय स्तम्भ का जीर्णोद्धार करवाया गया।
आज चित्तौड़ के विजय स्तम्भ के मॉडल दुनिया भर में बिकते हैं। लोग बड़े आदर के साथ इस विजय स्तम्भ को अपने घरों में रखते हैं।
कीर्ति स्तम्भ
चित्तौड़ दुर्ग में महाराणा कुंभा द्वारा बनवाए गए विजय स्तम्भ से लगभग ढाई सौ साल पहले बारहवीं शताब्दी ईस्वी में गुहिल शासक कुमारसिंह (ई.1179-91) के समय में एक जैन सेठ ने 72 फुट (लगभग 22 मीटर) ऊँचा कीर्ति स्तम्भ बनवाया था। यह कीर्ति स्तम्भ आज भी मीरा मंदिर के पास ही देखा जा सकता है। यह कीर्ति स्तम्भ गुजरात की चौलुक्य स्थापत्य शैली में बना हुआ है तथा नीचे से 30 फुट चौड़ा एवं ऊपर से 15 फुट चौड़ा है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग परिसर से प्राप्त तीन शिलालेखों में इस स्तम्भ के निर्माणकर्ता का नाम जीजा भगेरवाला अंकित है। इसमें आदिनाथ की पांच फुट ऊंची आकर्षक प्रतिमा लगी हुई है।