Saturday, December 21, 2024
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लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्य

लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्य राजस्थान के पूर्वी भाग की संस्कृति के प्रमुख अंग हैं। लांगुरिया गीतों के साथ जो नृत्य किए जाते हैं, उन्हें लांगुरिया लोकनृत्य कहा जाता है।  राजस्थान में हर देवता के अलग गीत, भजन एवं नृत्य होते हैं। ब्रज क्षेत्र में देवी को प्रसन्न करने के लिए लांगुरिया गाया जाता है।

राजस्थान के करौली जिले में लांगुरिया को हनुमानजी का लोक स्वरूप माना जाता है। करौली क्षेत्र की कैला मैया, हनुमानजी की माँ अंजना का अवतार मानी जाती हैं।

नवरात्रियों के दिनों में करौली क्षेत्र में लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्य आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों में स्त्री-पुरुष एवं बच्चे सामूहिक रूप से भाग लेते हैं।

लोकगीत एवं लोकनृत्य के आयोजन में नफीरी तथा नौबत बजती है। लांगुरिया को संबोधित करके हास्य-व्यंग्य से भरपूर गीत भी जाते हैं।

करौली जिले में हनुमानजी की माता अंजना देवी का मंदिर है जिसे लोक संस्कृति में कैला मैया कहा जाता है। यहाँ हनुमानजी को लांगुरिया कहा जाता है।

अंजना देवी के मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्रमास में मेला भरता है। इसे लक्खी मेला भी कहते हैं। इस मेले लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। अत्यंत प्राचीन काल से इस मेले में पशु विक्रय भी बड़े स्तर पर होता रहा है।

कैला मैया का भव्य मंदिर काली सिल नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर से आधा किलोमीटर पूर्व में नदी के किनारे देवी के चरण चिह्न अंकित हैं। मंदिर में स्थापित मूर्ति ई.1114 की है।

कैला मैया का मंदिर संगमरमर से बना हुआ है। मुख्य कक्ष में महालक्ष्मी, कैला देवी और चामुण्डा की मूर्तियां विराजमान हैं। कैला मैया अपनी आठ भुजाओं में शस्त्र लिये हैं और सिंह पर सवार हैं।

 सुहागिन स्त्रियां मंदिर जाने से पूर्व काली सिल में स्नान करके कोरी सफेद साड़ी और हरे कांच की चूड़ियां पहन कर खुले केशों से मंदिर जाती हैं तथा देवी की पूजा करने के बाद सामूहिक रूप से लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्य करती हैं।

आगरा क्षेत्र से लगभग प्रत्येक हिंदू परिवार विवाहोपरांत पुत्रवधू को लेकर तथा शिशु का जन्म होने पर शिशु का मुण्डन करवाने के लिये शिशु को लेकर यहाँ आता है।

 कैला देवी हनुमानजी की माता अंजना देवी का ही रूप हैं।  अंजना के पुत्र हनुमानजी को यहाँ लांगुरिया कहा जाता है। कैला मैया को प्रसन्न करने के लिये ही लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्य के आयोजन किए जाते हैं।

भक्तगण लोक-धुनों में पिरोकर लांगुरिया गीत गाते हैं। कुछ लांगुरिया गीत लोगों को मनोभावनाओं को प्रकट करते हैं। भक्त तथा रमणियां इन गीतों के माध्यम से लांगुरिया से छेड़-छाड़ करने से बाज नहीं आती।

कुछ मनचली युवतियां लांगुरिया पर तानाकाशी करते हुए अपनी सहेलियों को लांगुरिया से सावधान रहने की चेतावनी देवी प्रतीत होती हैं-

नैक औढ़ी- ड्यौढ़ी रहियो, नशे में लांगुर आवगो।

विवाह योग्य युवतियां मां कैला देवी से वर की कामना करते हुए लांगुर को संबोधित करते हुए कहती है-

अब लग ना रहूंगी मैया बाप के, मोहे उड़-उड़ पीहर खाय-लांगुरिया।

अन्य गृस्थगण भवन के आगे विशाल चौक में गाते हुए कहते हैं-

कैला मैया ने बुलायो, जब आयो लांगुरिया।

अलग-अलग अवसरों पर इन गीतों में शब्दावली बदलती जाती है यथा-

इबके तो मैं बहुअल लायो, आगे नाती लाऊंगो,

दे-दे लम्बो चौक लांगुरिया, बरस दिनां में आऊंगो।

चैत्र तथा आश्विन की नवरात्रियों में 15-15 दिनों के लिये पूरा कैला गांव मेले में परिवर्तित हो जाता है। चैत्र की नवरात्रियों में लगभग 35 लाख नर-नारी यहां पहुंचते हैं। आश्विन की नवरात्रियों का मेला छोटा होता है। प्रत्येक अष्टमी को लगभग 50 हजार लोग कैला मैया के दर्शनों के लिये आते हैं।

कैला गांव को लौहरा गांव भी कहा जाता है। ब्रजभाषा में लौहरा अथवा लहुरा का अर्थ लड़का होता है जो अंजना के पुत्र हनुमानजी की ओर संकेत करता है।

करौली राज्य के शासक कृष्णजी के वंशज थे। ये मैया अंजना को कुल देवी मानते थे। हनुमानजी की माता का मंदिर होने के कारण ही दूर-दूर तक बसने वाले अग्रवाल परिवार इस मंदिर में विशेष श्रद्धा रखते हैं।

हनुमानजी अग्रवालों के कुलदेवता हैं तथा अंजना माता अग्रवालों की कुलदेवी हैं। इस कारण न केवल राजस्थान से अपितु पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मथुरा, बुलंदशहर, आगरा, अलीगढ़ आदि जिलों से भी अग्रवाल परिवार प्रतिवर्ष बड़े उल्लास के साथ करौली मंदिर की यात्रा करते हैं तथा लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्यों का आनंद उठाते हैं।

इस प्रकार लांगुरिया लोकगीत एवं लोकनृत्य न केवल राजस्थान के पूर्वी अंचल की सांस्कृतिक परम्परा का अंग है अपितु पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भी सांस्कृतिक परम्पराओं में समाया हुआ है।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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