जिला मुख्यालय नागौर से 19 किलोमीटर दूर स्थित रोल गांव आज से सैंकड़ों साल पहले महेश्वरियों ने बसाया था। मुस्लिम काल में यह काजी मुसलमानों को जागीर में मिला। तब से लेकर आजादी मिलने तक यह गांव मुसलमानों के अधीन ही रहा।
रोल गांव की तरह मारवाड़ में महेश्वरी बनियों के बसाए हुए बहुत से गांव और भी थे। मारवाड़ के राजा एवं जागीरदार बनियों को प्रोत्साहित करके उन्हें अपने क्षेत्र में बसाते थे ताकि उनका क्षेत्र व्यापारिक गतिविधियों के कारण सम्पन्न हो सके। बहुत से महेश्वरी बनियों को मारवाड़ राज्य में मंत्री भी बनाया जाता था और उन्हें जिम्मेदारी के पद दिए जाते थे।
मध्यकाल में जब भारत मुसलमानों के अधीन हो गया तब इन गांवों पर मुसलमानों द्वारा कब्जा करके उनका स्वरूप बदल दिया गया। इन मुसलमानों ने प्राचीन मंदिरों को तोड़कर गांवों में मस्जिदें एवं दरगाहें आदि बना दीं। रोल गांव इन सब घटनाओं को जीवंत उदाहरण है।
मुगलकाल में रोल के काजी महाराणा प्रताप की तरफ रहे किंतु बाद में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच ई.1920, 1950, 1979 एवं 1980 में रोल में घमासान युद्ध हुए जिनमें कुछ लोग आपसी लड़ाई में तथा कुछ पुलिस की गोलीबारी में मारे गये।
रोल गांव का सरोवर, शीतला माता का मंदिर, चारभुजा मंदिर तथा कुछ अन्य मंदिर एवं बगीचियां काफी पुरानी बताई जाती हैं। ई.1908 में महेश्वरी तुलसीराम के परिवार ने रोल गांव में भगवान रंगनाथ का भव्य मंदिर बनवाया जिसमें भगवान विष्णु की शेषशायी मूर्ति विराजमान है। गांव के दक्षिण में डिडिया गांव के मार्ग पर खीवजमाता का मंदिर है।
प्राचीनकाल में भी यहाँ देवी का मंदिर था किंतु वह नष्ट हो गया। बाद में महेश्वरियों ने यहाँ खींवजमाता का नया मंदिर बनवाया। इस मंदिर के पास खुदाई करने से प्राचीन मंदिर के अवशेष मिलते हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णा द्वितीया को रोल से नागौर तक तांगों तथा छकड़ों की दौड़ आयोजित की जाती है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



