राठौड़ों का शासन थार मरुस्थल में रहा इस कारण राठौड़ों के दुर्ग पश्चिमी राजस्थान में अधिक संख्या में मिलते हैं। मेवाड़ एवं आम्बेर आदि रियासतों में कुछ राठौड़ सामंत नियुक्त हुए थे, उस कारण उन क्षेत्रों में भी राठौड़ सामंतों के बनाए दुर्ग मिलते हैं।
वैदिक काल से ही हिन्दू राजा धरती, कोष एवं सेना की तरह दुर्ग को राज्य का अनिवार्य अंग मानते थे। जिस राजा के पास दुर्ग नहीं होता था, उसे राजा नहीं माना जाता था। हजारों साल तक चली हिन्दू राजाओं की परम्परा में दुर्ग स्थापत्य ने अत्यंत विकसित रूप ले लिया था। यद्यपि समस्त राजपूत राजा दुर्ग के बल पर ही अपने शत्रु का सामना करते थे तथापि हाड़ा चौहानों के लिए कहा जाता है कि वे अपने गढ़ में रहकर ही सर्वाधिक पराक्रम का प्रदर्शन करते थे-
बलहठ बंका देवड़ा, करतब बंका गौड़।
हाड़ा बंका गाढ़ में, रण बंका राठौड़।।
राठौड़ों के मरुस्थल में आगमन की तिथि पाली जिले के बीठू गांव में मिले उसके एक मात्र स्मारक में अंकित तिथि से कुछ वर्ष पूर्व मानी जा सकती है जिसके अनुसार राव सीहा की मृत्यु वि.सं.1330 (ई.1273) में हुई। अनुमान लगाया जा सकता है कि ईसा की तेरहवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में राठौड़ों ने अपने लिये मरुस्थल में किले बनाने आरम्भ किए होंगे। राठौड़ों द्वारा दुर्ग बनाने का काम ई.1902 तक चला जब बीकानेर नरेश गंगासिंह ने अपने पिता लालसिंह की स्मृति में लालगढ़ पैलेस (दुर्ग महल) बनवाया। यह दुर्ग ई.1926 में बनकर पूरा हुआ।
राठौड़ों के दुर्ग निर्माण इतिहास में यह निश्चित किया जाना संभव नहीं है कि राठौड़ों ने पहला किला कौनसा बनाया। राव सीहा के पुत्र आस्थान ने खेड़ के गोहिलों को मारकर वहाँ अपनी राजधानी बनाई थी। अतः अनुमान लगाया जा सकता है कि खेड़ में गोहिलों का जो गढ़, गुढ़ा या गढ़ी था, वह पहला दुर्ग था जो मरुस्थल के राठौड़ों के अधिकार में आया। इसके बाद अन्य छोटे-छोटे गढ़ों पर भी राठौड़ों ने अधिकार जमाया।
आस्थान के पुत्र धूहड़ ने मण्डोर का दुर्ग परिहारों से छीन लिया किंतु शीघ्र ही परिहारों ने पुनः मण्डोर पर अधिकार कर लिया। राठौड़ों के दुर्ग निर्माण के सम्बन्ध में जो पहली सूचना ख्यातों से मिलती है उसके अनुसार ‘महेवा के राठौड़ राजा मल्लीनाथ का छोटा भाई वीरमदेव खेड़ में गुढ़ा बांध कर रहता था’ किंतु मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल तथा वीरमदेव में झगड़ा हो जाने से वीरमदेव महेवा राज्य को त्यागकर चला गया। अतः अनुमानित है कि खेड़ में वीरमदेव ने कोई छोटा गढ़ बनाया था जिसे गुढ़ा कहते थे।
वीरमदेव के पुत्र चूण्डा ने ई.1394 के लगभग ईंदा परिहारों से मण्डोर का किला प्राप्त किया। इसके बाद राठौड़ तेजी से मरुस्थल में फैले। उन्हीं के साथ राठौड़ों के दुर्ग भी रेगिस्तान में तेजी से बढ़े। ई.1399 में चूण्डा ने नागौर दुर्ग पर अधिकार किया तथा वहीं रहने लगा। उसका पुत्र सत्ता, मण्डोर दुर्ग में रहा। ई.1424 में चूण्डा नागौर के दुर्ग में मुसलमानों से युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। अतः स्वाभाविक है कि चूण्डा के लगभग 30 साल के शासनकाल में मण्डोर एवं नागौर के चारों ओर राठौड़ सामंतों ने छोटे-छोटे गढ़ रक्षा पंक्ति के रूप में बनाये होंगे।
चूण्डा के पुत्र राव जोधा के समय में जब राठौड़ राज्य, विस्तार को प्राप्त हुआ तब राठौड़ों के दुर्ग बड़ी संख्या में अस्तित्व में आ गये। इनमें पाली, सोजत, जैतारण, नाडौल, भाद्राजून, पोकरण, मेड़ता, फलौधी, सिवाना, शिव, नागौर आदि दुर्ग सम्मिलित हैं। निश्चित रूप से इनमें से कुछ दुर्ग राठौड़ों के अधिकार में आने से पहले ही बने हुए थे। राव जोधा ने ई.1459 में मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया जो राठौड़ों का सर्वप्रमुख दुर्ग बन गया।
जब जोधा के पुत्र बीका ने बीकानेर राज्य की स्थापना की तब बीकानेर, सूरतगढ़, अनूपगढ़ आदि बड़े दुर्गों सहित छोटे-छोटे बहुत से दुर्ग अस्तित्व में आ गये।
जोधा के वंशज राव मालदेव के समय में जोधपुर का राठौड़ राज्य अपने चरम पर पहुंच गया। इस काल में राठौड़ों के दुर्ग सर्वाधिक संख्या में बने। कुचामन, श्यामगढ़, मारोठ, मीठड़ी, लाडनूं डोडियाना, गूलर, डाबड़ा, रियांबड़ी, जायल, दौलतपुरा, बुटाटी, पांचवा, हरसौर, बोरावड़, डीडवाना, खींवसर, डेगाना, घाटवा, जीलिया, भकरी, मकराना, तांतवास तथा गोठड़ा आदि अधिकांश दुर्ग या तो इस काल में बने या उनका पुनर्निर्माण हुआ।
राव मालदेव ने जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में बड़े स्तर पर निर्माण करवाये तथा पोकरण, सातलमेर एवं मेड़ता के कोट गिराकर, उनकी जगह नये कोट बनवाये। मेड़ता का कोट मालकोट कहलाता है। मालदेव ने सोजत का कोट, रायपुर के पहाड़ पर मालगढ़़, सीवाणा के पास पीपलादे के पहाड़ पर कोठार एवं महल बनवाये।
मालदेव के द्वारा भाद्राजूण, नाडोल एवं सिवाना के चारों ओर परकोटा बनवाया गया। पाली परगने के गूंदोज (गुदवच) गांव में, मेड़ता परगने के रीयां गांव में, सीवाणा के समीप कुंडल गांव में भी कोट करवाये। फलौदी कोट का जीर्णोद्धार करवाया, पोल के समीप कुंडल गांव में कोटड़ी, चाटसू में कोट, नाडोल गांव (परगने गोडवाड़) के चारों ओर परकोटा, अजमेर बीठली के ऊपर कोट व बुरजें बनवाईं। राव मालदेव के किलेदार ने जोधपुर दुर्ग के ऊपर गोपाल पोल बनवाई। राव मालदेव के समय पीपाड़ के ठाकुर महेस घड़सिंघोत ने पीपाड़ में कोटड़ी करवाई।
मालदेव के पुत्र राव चन्द्रसेन ने सिवाना के दुर्ग में नवचौकियाँ और एक पोल बनवाई। मुगल बादशाह अकबर ने राव चन्द्रसेन को जोधपुर से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद राठौड़ों द्वारा नए किले बनवाने कम हो गए। फिर भी राठौड़ों द्वारा दुर्ग निर्माण का काम चलता रहा। आज भी वे दुर्ग बड़ी संख्या में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता