राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ राज्य में कुल उपलब्ध सतही जल में से 11.99 बी.सी.एम. जल के उपयोग हेतु बनायी गयी हैं। इन्हें वृहत, मध्यम एवं लघु सिंचाई परियोजनाएँ कहा जाता है।
देश की लगभग 14 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि राजस्थान में है तथा देश के 11 प्रतिशत भूभाग पर खेती राजस्थान में होती है किंतु राज्य में कुल 13 नदी बेसिनों में उपलब्ध सतही जल, देश में उपलब्ध कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत है। राज्य में सतही जल की संभावित मात्रा 16.05 बी.सी.एम. है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय केवल 4 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में जल परियोजनाओं से सिंचाई सुविधा उपलब्ध थी। उस समय राज्य में केवल एक वृहद् सिंचाई परियोजना ‘गंगनहर’ कार्यरत थी। वर्ष 1951 में राज्य में शुद्ध सिंचित क्षेत्र 12 प्रतिशत था।
राज्य में बांधों द्वारा सिंचाई
राज्य में कुल 3,054 बांध हैं। इनमें से 8 बड़े, 75 मध्यम और 2,971 छोटे बांध हैं। टोंक और पाली जिलों में 2-2 बड़े बांध हैं जबकि मध्यम आकार के सर्वाधिक बांध भीलवाड़ा जिले में हैं जिनकी संख्या 12 है। राज्य को भाखड़ा नांगल बांध से 1.41 मिलियन एकड़ फुट पानी मिलता है। इस परियोजना से राजस्थान के गंगानगर जिले में सिंचाई हेतु भाखड़ा नहर प्रणाली बनाई गयी है।
राज्य में साधनवार सिंचाई
(क्षेत्रफल लाख हैक्टेयर में)
स्रोत का नाम | स्रोतवार शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल | स्रोतवार सकल सिंचित क्षेत्रफल | सकल सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत | विशेष |
कुएं एवं नलकूपों द्वारा | 60.69 | 74.86 | 67.92 | नलकूपों से सर्वाधिक सिंचाई अलवर जिले में होती है उसके बाद जोधपुर, भरतपुर एवं जयपुर जिलों में होती है। कुंओं से सर्वाधिक सिंचाई झुंझुनूं, झालावाड़, बाड़मेर तथा जालोर जिलों में होती है। |
नहरों द्वारा | 20.17 | 33.36 | 30.27 | राज्य में नहरों द्वारा सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र श्री गंगानगर जिले में होती है। दूसरा नम्बर हनुमानगढ़ जिले का और तीसरा नम्बर कोटा जिले का आता है। |
तालाबों द्वारा | 0.35 | 0.35 | 0.31 | राज्य में तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई उदयपुर जिले में होती है। राज्य में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्रफल का 77 प्रतिशत क्षेत्र उदयपुर, डूंगरपुर, बारां तथा बांसवाड़ा जिलों में स्थित है। राज्य के उत्तरी एवं पश्चिमी जिलों में वर्षा की तुलना में वाष्पीकरण अधिक होने से तालाबों द्वारा सिंचाई नहीं होती है। पश्चिमी राजस्थान में तालाबों से पेयजल आपूर्ति होती है। |
अन्य स्रोत | 1.62 | 1.64 | 1.49 | |
योग | 82.83 | 110.21 | 100 | निष्कर्ष- राज्य में सिंचाई के दो मुख्य स्रोत हैं। पहला है कुंए एवं नलकूप जिनसे दो तिहाई क्षेत्र पर सिंचाई होती है तथा दूसरा है नहरें जिनसे लगभग एक तिहाई क्षेत्र पर सिंचाई होती है। |
राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ – राज्य की प्रमुख नहरें
गंग नहर
यह राज्य में सबसे पहले स्थापित होने वाली परियोजना है। बीकानेर नरेश गंगासिंह ने सतलज नदी का जल बीकानेर रियासत में लाने के लिये अंग्रेज सरकार से अनुमति लेकर गंग नहर परियोजना बनायी थी। यह परियोजना 1920 में स्वीकृत हुई थी तथा 26 अक्टूबर 1927 को 130 किलोमीटर लम्बी गंग नहर बन कर तैयार हो गयी थी।
चूने से बनी इस नहर ने बीकानेर रियासत की तस्वीर बदल दी। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय सिंधु नदी प्रणाली का विभाजन हुआ। जिसके कारण गंग नहर से सिंचित 105 लाख हैक्टेयर भूमि में से 84 लाख हैक्टेयर भूमि पाकिस्तान में चली गयी।
अब इस नहर की लम्बाई 129 किलोमीटर है। इसमें से 112 किमी लम्बाई पंजाब में है। यह श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिलों में बहती है। इस नहर की शीर्ष स्थल पर अधिकृत क्षमता 2720 क्यूसेक एवं कुल सिंचित क्षेत्र 3.08 लाख हैक्टेयर (7.60 लाख एकड़) है। नहर को कुल आवंटित किये गये जल की मात्रा 1.44 एम.ए.एफ. है।
भरतपुर नहर
राज्य में आरंभ होने वाली दूसरी प्रमुख नहर भरतपुर नहर थी। यह 1964 से काम कर रही है। इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर है। इससे भरतपुर जिले में 11 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है।
गुड़गावां नहर
गुड़गावां नहर 1985 में आरंभ हुई थी। इसकी लम्बाई 58 किलोमीटर है। इस नहर में यमुना नदी का जल आता है। इस नहर से वर्तमान में भरतपुर जिले की डीग व कामां तहसीलों में 28 हजार 200 हैक्टेयर क्षेत्र पर सिंचाई होती है।
यमुना जल बंटवारे में राजस्थान का हिस्सा 1.19 बी.सी.एम. निर्धारित है जिससे राजस्थान को वर्षा काल में 3198 क्यूसेक पानी मिलेगा। इसके उपयोग हेतु 500 क्यूसेक क्षमता की गुड़गांव नहर का निर्माण किया जा चुका है।
गुड़गांव नहर के शेष कार्यों को भरतपुर, चूरू एवं झुंझुनूं जिलों के लिये बनाई गई परियोजनाओं में सम्मिलित किया गया है। ताजेवाला हैड से चूरू एवं झुंझुनूं जिले में 1917 क्यूसेक क्षमता वाली नहर बनाई गई है जिससे जिले में 1.96 लाख हैक्टेयर में सिंचाई होती है।
भरतपुर जिले में औखला बैराज (उत्तर प्रदेश) से 1281 क्यूसैक क्षमता वाली नहर बनाई गई है जिससे 1.20 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है।
गंगनहर लिंक चैनल
गंगनहर लिंक चैनल 1984 में आरंभ हुई। इसकी लम्बाई 80 किलोमीटर है। इससे भी श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिलों में सिंचाई होती है।
राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ – बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ
राज्य की बदुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं में भाखड़ा नांगल परियोजना, चम्बल परियोजना, व्यास परियोजना, माही बजाज सागर परियोजना तथा नर्मदा परियोजना आती हैं।
भाखड़ा नांगल परियोजना
भाखड़ा नांगल परियोजना सतलज नदी पर बनायी गयी है। इससे राजस्थान पंजाब एवं हरियाणा राज्य जुड़े हुए हैं। इस परियोजना में राज्य का अंश 15.2 प्रतिशत है। भाखड़ा नहर से राज्य के 5.82 लाख हैक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है।
चम्बल परियोजना
यह परियोजना चम्बल नदी पर बनी हुई है। इससे राजस्थान एवं मध्य प्रदेश को जल प्राप्त होता है। इस परियोजना में राज्य का अंश 50 प्रतिशत है। चम्बल नदी पर गांधी सागर, राणा प्रताप सागर तथा जवाहर सागर बांध बने हैं जिनका प्रदेश के विकास में प्रमुख योगदान है।
इनमें से गांधी सागर मध्यप्रदेश में है। राणा प्रताप सागर बांध कोटा से 50 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा नामक स्थान पर चंबल नदी के 13 मीटर ऊंचे चूलिया जल प्रपात के समीप बनाया गया है। यह ई. 1970 में बनकर तैयार हुआ था। बांध की लम्बाई 1100 मीटर, ऊँचाई 36 मीटर तथा इससे बनी झील का विस्तार 113 वर्ग किलोमीटर है।
इसकी जलभराव क्षमता 290 करोड़ घन मीटर है। इस बांध से कोटा जिले में 1.28 लाख हैक्टेयर, बूंदी जिले में 1.38 लाख हैक्टेयर और बारां जिले में 0.46 लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। इस प्रकार इस नहर से राज्य में कुल 3.13 लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है।
राणा प्रताप सागर बांध पर भोपाल जलविद्युत गृह बना हुआ है। राणा प्रताप सागर से 33 किलोमीटर उत्तर में जवाहर सागर बांध स्थित है। इसे कोटा बांध भी कहते हैं। यह कोटा जिले के बोराबास गाँव के निकट बनाया गया है।
यह गांधीसागर और राणा प्रतापसागर के अतिरिक्त जल को एकत्र करता है। इस बांध की लम्बाई 538 मीटर और ऊँचाई 25 मीटर है। इसकी जलभराव क्षमता 18 करोड़ घन मीटर है। इस बांध से नीचे की ओर निर्मित जलविद्युत गृह में 33-33 हजार किलोवाट विद्युत क्षमता की तीन विद्युत इकाइयां हैं।
व्यास परियोजना
यह परियोजना सतलज, रावी एवं व्यास नदियों पर बनायी गयी है। इससे राजस्थान पंजाब एवं हरियाणा राज्यों को जल मिलता है। इराडी आयोग की 1987 की रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना में राज्य का अंश 86 लाख एकड़ फीट जल रखा गया है।
माही बजाज सागर परियोजना
माही बजाज सागर परियोजना गुजरात एवं राजस्थान की अन्तःराज्यीय बहुउद्देशीय परियोजना है। इसका उद्देश्य पेयजल एवं सिंचाई जल उपलब्ध करवाना तथा जल विद्युत उत्पन्न करना है। यह परियोजना माही नदी पर बनायी गयी है। बांध की कुल भरवा क्षमता 60.5 टी.एम.सी. है जिसमें राज्य का अंश 20.5 टी.एम.सी. जल है।
इस परियोजना पर 140 मेगावाट क्षमता के दो विद्युत गृह स्थापित किए जा चुके हैं। सिंचित क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने के उद्देश्य से भीखा भाई सागवाड़ा नहर का निर्माण करवाया गया है।
नर्मदा नहर परियोजना
नर्मदा नदी के जल में राजस्थान का हिस्सा 0.50 मिलियन एकड़ फीट है। नर्मदा नहर परियोजना से जालोर एवं बाड़मेर जिले के कुल 1,336 गांवों एवं जालोर जिले के 3 कस्बों में पेयजल उपलब्ध करवाने एवं 2.46 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में अतिरिक्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने की योजना है।
यह नहर गुजरात के सरदार सरोवर बांध से निकलकर 458 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद राजस्थान के जालोर जिले के सांचोर क्षेत्र में प्रवेश करती है। राजस्थान में मुख्य नहर का कुल प्रवाह 74 किलोमीटर है। राज्य में इससे एक माइनर तथा नौ वितरिकाएं निकालने की योजना है।
नर्मदा नहर की वितरिकाओं, उप वितरिकाओं एवं माइनरों की कुल लम्बाई 1,719 किमी है। मुख्य नहर के कमाण्ड क्षेत्र में स्प्रिंकलर हेतु एचडीपीई पाईप्स लगाए गए हैं। इस परियोजना में स्प्रिंकलर पद्धति को अनिवार्य रूप से लागू किया गया है।
यह भारत में पहली बड़ी सिंचाई परियोजना है जिसमें जालौर एवं बाड़मेर जिलों के 2.46 लाख हैक्टेयर के पूरे कमांड क्षेत्र में स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली अनिवार्य की गयी है। इस परियोजना की संशोधित लागत रु. 3,124.00 करोड़ है।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना
यह एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित परियोजना है जिसे मरुगंगा और मरुस्थल की जीवन रेखा भी कहा जाता है। जब भारत पाक विभाजन के कारण गंग नहर द्वारा सिंचित काफी क्षेत्रफल पाकिस्तान में चला गया तो बीकानेर नरेश सादूलसिंह ने रियासत के मुख्य अभियंता कंवरसेन से एक नयी नहर की परियोजना बनवायी।
इसे 1948 में भारत सरकार के पास स्वीकृति के लिये भेजा गया। 1955 में हुए अंतर्राज्यीय जल समझौते के बाद इस नहर के सर्वेक्षण का कार्य आरंभ हुआ। 31 मार्च 1958 को तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने इस परियोजना की आधार शिला रखी। 1958 से यह नहर बननी आरंभ हो गयी। इसका नाम राजस्थान नहर रखा गया। 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद इस नहर का नामकरण इंदिरागांधी नहर कर दिया गया।
इंदिरा गॉंधी नहर परियोजना का उद्देश्य राजस्थान के पश्चिमी भाग में सिंचाई, पेयजल एवं अन्य उपयोग के लिए पानी उपलब्ध करवाना है। इस परियोजना का निर्माण गंगानगर, हनुमागढ़, चूरू, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर तथा बाड़मेर जिलों में 18.72 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध करवाने हेतु किया गया है।
इस नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज-व्यास नदियों के संगम पर स्थित हरिके बैराज से हुआ है। मुख्य नहर की लम्बाई 649 किलोमीटर है। नहर के 204 किलोमीटर के प्रारंभिक भाग को फीडर नहर कहते हैं। इसमें से प्रथम 169 किलोमीटर भाग पंजाब में, 14 किलोमीटर भाग हरियाणा में तथा शेष 21 किलोमीटर भाग राजस्थान में है।
इस परियोजना का प्रारंभ बिंदु हरिके बैराज (पंजाब) है। इस परियोजना का उपनाम मरुगंगा भी रखा गया है। पूरी परियोजना का अंतिम बिंदु गडरारोड (बाड़मेर जिला) है।
राजस्थान में यह नहर हनुमानगढ़ जिले की टिब्बी तहसील में खरा गाँव के निकट मसीतावाली से प्रवेश करती है। निकास स्थल पर मुख्य नहर के तल की चौड़ाई 40 मीटर है। इसमें बहने वाले पानी की गहराई 6.4 मीटर तथा इसकी जल प्रवाह क्षमता 523 घन मीटर प्रति सैकेण्ड (18.500 क्यूसेक) है। राजस्थान में मुख्य नहर का प्रारंभ बिंदु मसीतांवाली (जिला हनुमानगढ़) तथा समापन बिंदु छतरगढ़ (जिला बीकानेर) है।
इस परियोजना को दो चरणों में चलाया गया है। प्रथम चरण का अधिकांश कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है। इसके प्रथम चरण में 204 किमी. लम्बी फीडर नहर और इसके आगे 189 किमी. लम्बी मुख्य नहर तथा 3,454 किमी. लम्बी शाखाओं एवं वितरिकाओं का निर्माण किया गया।
बीकानेर लिफ्ट (कंवर सेन लिफ्ट) नहर भी इसी चरण में पूरी हुई। इस चरण के पूरा होने पर 5.87 लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई सुविधा प्राप्त हुई। कंवरसेन लिफ्ट नहर से 0.59 लाख हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई सुविधा दी गयी। इस परियोजना से बीकानेर नगर एवं परियोजना क्षेत्र के 99 गाँवों को पेयजल भी उपलब्ध करवाया गया।
नहर के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर एवं 5,780 किमी. लम्बी वितरिकाओं का कार्य सम्मिलित है। इस चरण में 13.17 लाख हैक्टेयर सिंचित क्षेत्र सृजित हुआ है। इसमें से 4.22 लाख हैक्टेयर सिंचित क्षेत्र 6 लिफ्ट योजनाओं के अंतर्गत आता है।
ये योजनाएँ गंधेली साहबा (चूरू), गजनेर, कोलायत और बांगड़सर (बीकानेर), फलौदी (जोधपुर) और पोकरन (जैसलमेर) हैं। इन लिफ्ट योजनाओं में गंधेली साहबा लिफ्ट नहर की लम्बाई सर्वाधिक 109 किमी. है। इससे चूरू जिले के 175 गाँवों को पीने का पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है। मुख्य नहर में 256 किमी. लम्बाई तक का कार्य 1986 में पूरा हो गया था।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के पूर्ण होने पर प्रतिवर्ष लगभग 19.63 लाख हेैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। मार्च 2010 के अन्त तक 3,671.80 करोड़ रुपये (प्रथम चरण पर 490.03 करोड़ रुपये व द्वितीय चरण पर 3,181.77 करोड़ रुपये) व्यय हो चुके हैं तथा इससे 15.91 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी।
सिंचाई के अतिरिक्त, परियोजना द्वारा कमाण्ड क्षेत्र में पेयजल भी उपलब्ध कराया जा रहा है। कंवरसेन लिफ्ट नहर से बीकानेर शहर एवं परियोजना क्षेत्र से बाहर के 99 गाँवों को भी पेयजल सुलभ कराया जा रहा है।
गंधेली-साहबा लिफ्ट योजना से चूरु जिले के 175 गाँवों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है जबकि मुख्य नहर वाया राजीव गांधी लिफ्ट नहर योजना से जोधपुर-शहर एवं नहर के निकट बसे गाँवों तथा कस्बों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है।
गजनेर लिफ्ट से नागौर को भी जल उपलब्ध कराया गया है। इस नहर से जैसलमेर शहर एवं रामगढ़ गॉंव को भी पीने का पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। परियोजना पूर्ण होने पर पश्चिमी राजस्थान के आठ जिलों की लगभग 1.80 करोड़ जनसंख्या को पीने के पानी की सुविधा प्राप्त हो सकेगी। उद्योगों व विद्युत उत्पादन केन्द्रों को भी पानी उपलब्ध हो सकेगा।
इस परियोजना से बीकानेर, चूरू, जैसलमेर और जोधपुर नगरों सहित इन जिलों के 1,107 गाँवों में 65.88 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस परियोजना के कारण रेगिस्तान का प्रसार रुका है तथा मानव अधिवास बढ़ा है। बीकानेर जिले के पूगल, बरसलपुर, चारणवाला, गंगानगर जिले के अनूपगढ़, सूरतगढ़ एवं मांगरोल में लघु शक्ति के विद्युत उत्पादन गृह स्थापित हुए हैं।
इन्दिरा गांधी फीडर (पंजाब का भाग) और सरहिन्द फीडर
इन्दिरा गांधी फीडर की री-लाइनिंग के लिए 23 जनवरी 2019 को भारत सरकार और पंजाब सरकार के साथ एक अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए गए हैं। परियोजना की कुल लागत रु. 1,976.00 करोड़ है। पंजाब सरकार ने नवम्बर से दिसम्बर 2019 में क्लोजर लेकर सरहिंद फीडर की 16.67 किमी. में कार्य पूर्ण कर दिया है।
सरहिंद फीडर की लगभग 10 किमी. और इंदिरा गांधी फीडर की लगभग 30 किमी. लम्बाई में मार्च-अप्रैल-जून, 2020 में रिलाइनिंग कार्य प्रस्तावित था परन्तु कोविड-19 महामारी के कारण यह कार्य निष्पादित नहीं हो पाया। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने सरहिन्द फीडर में लगभग 39 किमी एवं इन्दिरा गांधी फीडर में लगभग 54 किमी. लंबाई में कार्य की योजना प्रस्तावित की है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता