मान्यता है कि मारवाड़ मूण्डवा की स्थापना 7वीं से 13वीं शताब्दी के बीच मुंडेल जाटों ने की थी। जाटों की यह शाखा मण्डोर के परिहारों से निकली थी। वर्तमान समय में यह नागौर जिले में स्थित है।
मारवाड़ मूण्डवा मध्यकाल में प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों में से था। आज भी मारवाड़ मूण्डवा के व्यापारी देश के बड़े नगरों में व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किये हुए हैं। जोधपुर राज्य में मूण्डवा को लकड़ी के खिलौने तथा अन्य सजावटी सामग्री के उत्पादन के लिए अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त थी। मूण्डवा का भुजिया (नमकीन सेव) दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।
मारवाड़ मूण्डवा कस्बे की स्थापना वि.1123 वैशाख शुक्ला तृतीया को हुई। इस कस्बे की चारों दिशाओं में पक्के घाटों से युक्त चार तालाब बने हुए हैं। पूर्व में पोखड़ी, उत्तर में ज्ञान तालाब, पश्चिम में मोटोलाव तथा दक्षिण में लाखोलाव तालाब स्थित है। लाखोलाव तालाब का निर्माण वि.1159 में लक्खी बणजारे द्वारा करवाया गया था।
इस तालाब पर प्रातःकाल में महिलायें सज-धज कर जल भरने आती हैं। इसे पनघट लगना कहते हैं। पनघट का दृश्य किसी उत्सव अथवा मेले की अनुभूति देता है। इस सरोवर के तट पर नागा बाबाओं द्वारा निर्मित शिव मंदिर, छत्रपति शिवाजी के अमात्य का कलात्मक स्मारक तथा अनेक फुलवारियां बनी हुई हैं।
गिरिराज मंदिर, व्यासजी की बगीची, बिन्दीवाले बाबा की बगीची तथा जोधपुर राज्य की रानी का उद्यान दर्शनीय हैं। वर्षाकाल में यह सरोवर गोठ करने वालों का प्रमुख आकर्षण होता है। मूण्डवा गांव के निकट बड़माता का मंदिर स्थित है। यह मंदिर लोढ़ा ओसवालों की कुल देवी का मंदिर है। यहाँ मस (त्वचा रोग) के रोगियों के ठीक होने की मान्यता है।
मारवाड़ मूण्डवा का नमकीन भुजिया भी प्रसिद्ध है तथा यहाँ की भूमि में मीठा जल मिलता है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



