बदनौर दुर्ग मध्यकालीन हिन्दू दुर्ग स्थापत्य शैली का अच्छा उदाहरण है जिसे राजपूत स्थापत्य शैली भी कहा जाता है। यह दुर्ग एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है तथा इसके कुछ भवन सात मंजिला ऊंचे हैं। दुर्ग परिसर में कई स्मारक एवं मंदिर भी बने हुए हैं। दुर्ग खण्डहर प्रायः अवस्था में है।
महाराणा उदयसिंह ने मेड़ता के राव दूदा के पौत्र जयमल राठौर को ईस्वी 1554 में बदनौर की जागीर दी थी जिसमें 210 गांव स्थित थे। तभी से बदनौर मेवाड़ राज्य का प्रमुख ठिकाना बन गया। जब ईस्वी 1567 में मुगल बादशाह अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग को घेर लिया तब महाराणा उदयसिंह ने वीर जयमल राठौड़ का चित्तौड़ दुर्ग का किलेदार नियुक्त किया था।
वीर जयमल राठौड़ ने चित्तौड़ दुर्ग की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी तथा उसकी रानियों ने जौहर का आयोजन किया। अकबर ने जयमल राठौड़ तथा फत्ता सिसोदिया की मूर्तियां बनवाकर आगरा के किले में स्थापित करवाई थीं। बाद में जब औरंगजेब मुगलों के तख्त पर बैठा तब उसने इन मूर्तियों को तुड़वाकर धूल में मिला दिया।
बदनौर दुर्ग में बदनौर के जागीरदार का परिवार एवं उसकी सेना रहती थी। आजादी के बाद जब वृहद् राजस्थान का निर्माण हुआ तब बदनौर को भीलवाड़ा जिले में समायोजित किया गया था किंतु वर्ष 2023 में बदनौर को नवनिर्मित ब्यावर जिले में स्थानांतरित कर दिया गया।
बदनौर दुर्ग परिसर के भीतर तथा बाहर अनेक लघु स्मारक एवं मंदिर स्थित हैं। इस दुर्ग के ऊपर खड़े होकर देखने से चारों ओर का परिवेश बहुत सुंदर दिखाई देता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता