नाहरगढ़ दुर्ग आम्बेर और जयपुर के मध्य, उत्तर से दक्षिण की ओर विस्तृत अरावली पर्वतमाला के एक छोर पर जयगढ़ एवं दूसरे पर स्थित हैं।
नाहरगढ़ दुर्ग के निर्माता एवं नामकरण
नाहरगढ़ दुर्ग के निर्माता
इस दुर्ग का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय (ई.1700-43) ने जयपुर नगर की स्थापना के लगभग 7 साल बाद ई.1734 में करवाया।
नाहरगढ़ दुर्ग का नामकरण
दुर्ग के नामकरण के बारे में दो मान्यताएं हैं। पहली मान्यता के अनुसार, दुर्ग में प्रवेश करते ही नाहरसिंह भोमिया का स्थान बना हुआ है, जिसके नाम पर यह नाहरगढ़ कहलाया। दूसरी मान्यता के अनुसार, नाहरगढ़ दुर्ग के भीतर सुदर्शन कृष्ण का मंदिर स्थित है जिसके कारण इसे सुदर्शनगढ़ भी कहते हैं।
नाहरगढ़ दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था
नाहरगढ़ दुर्ग की श्रेणी
यह गिरि दुर्ग तथा ऐरण दुर्ग की श्रेणी का दुर्ग है। आम्बेर तथा जयगढ़ का सहायक दुर्ग होने से यह सहाय दुर्ग की श्रेणी में भी आता है। इसके चारों ओर परकोटा बना हुआ है इसलिये यह पारिघ दुर्ग की श्रेणी में भी आता है। इसमें हर समय सैनिक नियुक्त रहते थे, इसलिये यह सैन्य दुर्ग की श्रेणी में भी आता है।
दुर्ग तक पहुंचने का मार्ग
इस दुर्ग में पहुंचने के लिये जयपुर नगर से एक घुमावदार रास्ता बना हुआ है। दुर्ग के चारों ओर बरसाती नाले तथा घना जंगल होने से किसी समय इस दुर्ग का मार्ग अत्यंत दुर्गम था। अब जंगलों की भयावहता समाप्त हो गई है तथा दुर्ग तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
दुर्ग की प्राचीर
पूरा दुर्ग ऊंचे परकोटे से घिरा हुआ है। दुर्ग के वलायाकार सुदृढ़ बुर्जों पर रियासतकाल में विशालाकाय तोपें तैनात की गई थीं जो शत्रु को दूर से ही अपनी मार में लेने में सक्षम थीं। दुर्ग की सुरक्षा के लिये राज्य की ओर से सैनिक नियुक्त किये गये थे।
नाहरगढ़ दुर्ग का इतिहास
जिस समय जयपुर नगर का निर्माण किया गया, दिल्ली का मुगल साम्राज्य अस्ताचल की ओर जा रहा था और राजपूताने में मराठों के उत्पात शुरु हो गए थे। अतः जयपुर नगर की रक्षा के लिये बड़ी संख्या में सैनिकों को नगर के निकट ही रखना आवश्यक हो गया। उन सैनिकों के लिये ही इस दुर्ग का निर्माण करवाया गया।
लोक किंवदन्ती है कि जब इस दुर्ग का निर्माण आरम्भ किया गया तब नाहरसिंह भोमिया ने विघ्न उत्पन्न किया। दिन के समय जो भी निर्माण किया जाता, वह रात के समय स्वतः ही टूट जाता। इस पर सवाई जयसिंह के तांत्रिक राजगुरु रत्नाकर पौण्डरीक ने नाहरसिंह बाबा को अन्यत्र जाने के लिये सहमत किया तथा उसके लिये आंबागढ़ के निकट एक चौबुजी गढ़ी में स्थान निर्धारित किया जहाँ आज भी नाहरसिंह की लोकदेवता के रूप में पूजा होती है।
दुर्ग स्थापत्य
यह दुर्ग अपने शिल्प सौन्दर्य से युक्त भव्य महलों के लिये प्रसिद्ध है। दुर्ग के चतुष्कोणीय चौक, झुके हुए अलंकृत छज्जे तथा दीवारों पर सुंदर चित्रांकन देखने योग्य है। नाहरगढ़ के अधिकांश महलों का निर्माण जयपुर नरेश रामसिंह द्वितीय तथा सवाई माधोसिंह ने करवाया।
नौ पासवानों के महल
माधोसिंह ने दुर्ग में अपनी नौ पासवानों के नाम पर नौ एक-मंजिले और दो-मंजिले महलों का निर्माण करवाया जिनके नाम इस प्रकार हैं- सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, आनन्द प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चाँद प्रकाश, फूल प्रकाश और बसन्त प्रकाश।
इन महलों की एकरूपता, रंगों का संयोजन, ऋतुओं के अनुसार हवा और प्रकाश की व्यवस्था देखते ही बनती है। ये महल एक छोटी सुरंग से परस्पर जुड़े हुए हैं। इस सुरंग के कारण राजा किस समय किस महल में है, यह किसी को पता नहीं चल पाता था। किले के अन्य प्रमुख भवनों में हवा मंदिर, महाराजा माधोसिंह का अतिथि-गृह, सिलहखाना आदि उल्लेखनीय हैं।
नाहरगढ़ दुर्ग के जलाशय
नाहरगढ़ के विशाल प्राकार के नीचे पहाड़ी क्षेत्र में एक जलाशय बना हुआ है जो दुर्ग में जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है। दुर्ग के पिछले भाग में बुुर्ज के निकट भी जलाशय है।
रसकपूर
महाराजा सवाई जगतसिंह की प्रेयसी रसकपूर नाहरगढ़ दुर्ग में बंदी रही।
-डॉ. मोहन लाल गुप्ता