देवरावर दुर्ग नौंवी शताब्दी ईस्वी से लेकर अंग्रेजों के मरुस्थल में आगमन तक एक प्रमुख दुर्ग हुआ करता था। इस दुर्ग का मूल नाम देवरावल कोट है।
देवरावर दुर्ग का निर्माण राय जज्जा भाटी द्वारा 9वीं शताब्दी ईस्वी में लोद्रवा के राजा देवराज अथवा देव रावल की स्मृति में करवाया गया था। यह विशाल दुर्ग अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर जिले में स्थित है।
देवरावर दुर्ग की प्राचीर 30 मीटर ऊंची है तथा 1500 मीटर के घेरे में बनी हुई है। इस दुर्ग के चारों ओर भी जैसलमेर दुर्ग की तरह बुर्जों की अधिकता वाला परकोटा बना हुआ है जिसे स्थानीय भाषा में कमरकोट अथवा घाघराकोट कहा जाता है क्योंकि इसके बुर्ज पेटीकोट की प्लेटों जैसे दिखाई देते हैं। देरवरार दुर्ग की चालीस बुर्जें दूर से ही दिखाई पड़ती हैं।
18वीं शताब्दी ईस्वी में इसे बहावलपुर के मुस्लिम शासक द्वारा छीन लिया गया। उस समय इस दुर्ग पर शाहोत्रा जाति के लोगों का अधिकार था। इसके चारों ओर का मरुस्थल चोलिस्तान कहलाता है। रख-रखाव के अभाव में यह दुर्ग बहुत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है। यह दुर्ग पाकिस्तान में है किंतु इस दुर्ग के बिना भाटियों के दुर्गों का इतिहास अधूरा रह जाता है।