Monday, December 8, 2025
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जायल उपखण्ड के गांव

जायल क्षेत्र में आज से हजारों साल पहले आदिमानव का निवास था जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस काल में इस क्षेत्र में जल एवं जंगल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। जायल से प्रस्तर युगीन एवं ताम्र युगीन सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जायल नागौर जिले में है। जायल में तहसील एवं पंचायत समिति मुख्यलय भी कार्यरत हैं। वर्तमान समय में जायल उपखण्ड में 142 गांव हैं।

जायल उपखण्ड के गांव

 1जायल 2बरसूणा 3रोटू
 4गुजरियावास 5रोहिणा 6अजबपुरा
 7जानवास 8शिवनगर 9गौराऊ
 10कठौती 11डेहरोली 12खिंयाला
 13नोखाजोधा 14सांडिला 15राजोद
 16जोचीणा 17अहीरपुरा 18धानणी
 19अड़सिंगा 20दोतीणा 21धाटियाद
 22जाखण 23सिलारिया 24बोड़िन्दकलां
 25सुरपालिया 26पन्नापुरा 27फरड़ोद
 28टालनियाऊ 29कमेड़िया 30धारणा
 31खाबड़ियाना 32नोसरिया 33मेरवास
 34मुन्दियाऊ 35गडरिया 36कुसिया
 37झाड़ेली 38आकोड़ा 39झलालड़
 40बुरड़ी 41निम्बोड़ा 42टांगला
 43रामपुरा-1 44कांगसिया 45टांगली
 46गुगरियाली 47डोडू 48छावटाकलां
 49गुढा रोहिली 50मीठामांजरा 51छावटाखुर्द
 52रामसर 53आंवलियासर 54बुगरड़ा
 55चवाद 56नया गांव 57रुणिया
 58तंवरा 59जालनियासर 60खानपुर मांजरा
 61चावली 62बागरासर 63लूणसरा
 64खारामांजरा 65बोसेरी 66गेलोली
 67ढाकासर 68खेराट 69कसनाऊ
 70डेह 71सेडाऊ 72भावला
 73किशनपुरा 74जानेवा पूर्व 75कालवी
 76सोमणा 77जसनाथपुरा 78मुण्डी
 79खंवर 80जानेवा पश्चिम 81अड़वड़
 82छापड़ा 83मांगलोद 84ईग्यार
 85खेड़ाहीरावास 86गोठ 87खाटू कलां
 88रोल 89तेजासर 90धीजपुरा
 91डीडियाकलां 92पीड़ियारा 93खिंयावास
 94डीडियाखुर्द 95दुगस्ताऊ 96कचरास
 97नराधना 98बोडिंद खुर्द 99हीरासनी
 100खेरवाड़ 101सोनेली 102मोतीनगर
 103रुपाथल 104ऐवाद 105नीमनगर
 106जुंजाला 107रातंगा 108रुपनगर
 109खेड़ा नारनोलिया 110सुवादिया 111टाटरवा
 112गोतरड़ी 113दुगोली 114टाटरवी
 115बोड़वा 116काशीपुरा 117बरनेल
 118पातेली 119रामपुरा-2 120फिरोजपुरा
 121तरनाऊ 122बटवाड़ी 123ज्याणी
 124ढेहरी 125खारीजोधा 126अम्बाली
 127मातासुख 128गुमानपुरा 129चावड़ानगर
 130छाजोली 131ऊंचाईड़ा 132दांता
 133कसारी 134कुंवाड़खेड़ा 135नूरियास
 136भीणियाद खास 137भीणियाद  “अ“ 138भीणियाद “ब“
 139पिण्डिया 140उबासी 141बेरासर
 142बालाजीनगर    

जायल उपखण्ड के प्रमुख कुछ गांव

जायल उपखण्ड के कुछ प्रमुख गांवों के बारे में इस वैबसाइट पर अलग-अलग ब्लॉग के रूप में जानकारी दी गई है। कुछ प्रमुख गांवों के बारे में नीचे जानकारी दी जा रही है।

डेह

डेह गांव जायल उपखण्ड में है। यह गांव नागौर से 20 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में चम्पानगरी नामक प्राचीन नगर के ध्वंसाशेषों के पास ही बसा हुआ है। कहा जाता है कि चम्पानगरी के उजड़ जाने पर वहाँ के निवासी इस स्थल पर आ गये जो कि चम्पानगरी से मात्र एक किलोमीटर दूर था।

चम्पानगरी ईसा की 10वीं एवं 11वीं शताब्दी में समृद्धि एवं वैभव के चरम पर थी किंतु 12वीं शती आते-आते किन्हीं कारणों से नष्ट हो गई। यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों, भवनों तथा स्मारकों के ध्वस्त अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।

 यहाँ से कुछ शिलालेख प्राप्त हुए हैं। डेह में स्थित एक जैन मंदिर में वि.सं. 1219 का लेख अंकित है। इस मंदिर का निर्माण प्राचीन चम्पानगरी के ध्वस्त होने के बाद किया गया। अनुमान होता है कि डेह शब्द ‘ढहने’ अथवा ‘दह’ (दहन) से अपभ्रंश होकर बना होगा।

खारी जोधा

जायल तहसील में स्थित खारी जोधा में विक्रम संवत 1006 का सागरू नाल का स्तम्भ देखने योग्य है। यह स्तंभ लगभग दस फुट ऊंचा है जिस पर गणेशजी की प्रतिमा उत्कीर्ण है। स्तम्भ पर खुदा लेख अब पढ़ने में नहीं आता किंतु सर्पिलाकार जंजीर तथा विक्रम 1006 स्पष्ट दिखाई देते हैं।

गांव के लोग इसे सागरूनाल का स्तम्भ कहते हैं। उनका मानना है कि राजा सागर ने अपने द्वारा खुदवाये तालाबों पर इस तरह के स्तम्भ लगवाये थे। अब यहाँ तालाब नहीं है किन्तु वर्षा का पानी अब भी इस क्षेत्र में इकट्ठा होता है। खारी जोधा में हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है।

झलालड़

जायल तहसील के झलालड़ गांव में उम्मेदसिंह के खेत से 22 अगस्त 1988 को लगभग तीन फुट ऊंची संगमरमर की 8 मूर्तियां मिली थीं। इनमें विष्णु, लक्ष्मी, महिषासुरमर्दिनी, गणपति तथा गौरीशंकर की हैं। गौरीशंकर की मूर्तियों की संख्या 3 है।

एक मूर्ति के नीचे ‘महामंडेलश्वर’ श्री कयंत्र सदेव मूर्ति नियंश्री अग्रेमहारानी श्री ललिता देवा द्वितीया’ उत्कीर्ण है। मूर्तियों पर से किसी संवत या राजा का नाम नहीं मिला है। मूर्तियों के पास से आठ खम्भे एवं चार तोरणद्वार भी मिले हैं।

ये मूर्तियां एक चौकोर स्थान पर आमने-सामने रखकर भूमि में दबाई गई थीं। संभवतः मुसलमानों से बचाने के लिए इन्हें भूमि में दबाया गया। इन मूर्तियों के लिए गांव वालों ने लक्ष्मीनारायण का भव्य मंदिर बनवाया तथा ई.1039 की विजया दशमी को स्थापित कर दिया।

दोतीणा

दोतीणा गांव जायल पंचायत समिति में है। गांव में 10 फुट ऊंचा कलात्मक स्तम्भ दर्शनीय है जिसे सागरूनाल कहते हैं। स्तम्भ का ऊपरी हिस्सा बहुत ही कलात्मक है तथा शिखरबंद मंदिर की आकृति में है। इसके एक ओर गणेशजी, दूसरी ओर विष्णु तथा एक देवयुगल उत्कीर्ण हैं। स्तम्भ के शिखर के ऊपरी भाग का अंकन भी बहुत कलात्मक है।

मध्य भाग में नरसिंह के मुख चारों दिशाओं में अंकित हैं जिनके नीचे झूलती हुई जंजीरें हैं। दो मगरमच्छ और एक सर्प भी उत्कीर्ण हैं। जहाँ यह स्तम्भ लगा हुआ है वहाँ अब तालाब नहीं हैं। गांव में सतीमाता का मंदिर दर्शनीय है जो वि.सं.1626 में अपने पुत्र के पीछे सती हुई थी।

उबासी

उबासी गांव जायल पंचायत समिति में है। उबासी में एक सागरूनाल दर्शनीय है। ऊंचे-नीचे रेतीले धोरों के बीच बसे इस गांव में लगभग एक दर्जन देवलियों के पास गांव के एक निजी बाड़े में इस सागरूनाल को देखा जा सकता है। दस फुट ऊंचे चौकोर स्तम्भ के एक ओर गणेशजी, एक ओर विष्णु तथा एक ओर देवयुगल अंकित हैं।

चारों तरफ ऊपर से नीचे तक जंजीरें लटक रही हैं। गांव वालों का विश्वास है कि राजा सागर ने यहाँ तालाब खुदवाया होगा। उसी के किनारे यह स्तम्भ लगवाया होगा। पास लगी देवलियां काफी पुरानी हैं। अनेक देवलियां रेत के धोरों में दब गई हैं। एक देवली पर विक्रम 1280 उत्कीर्ण है।

-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।

यह भी देखें-

जायल

रोटू

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