Friday, February 21, 2025
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कमलताल

धौलपुर नगर से बाहर एक उजड़ी हुई सी बस्ती में लोहे की ग्रिल से घिरा हुआ एक स्थान कमलताल कहलाता है। यह एक छोटा सा सरोवर है जो एक कुण्ड की तरह पक्के निर्माण से घिरा हुआ है। कभी इस कुण्ड में कमल पुष्प खिलते होंगे, इसी कारण इसे कमलताल कहते होंगे।

यह छोटा सा कमलताल  भारत के इतिहास की बहुत बड़ी करवट का महत्त्वपूर्ण साक्षी है। आज इसके पास पहले जैसा राजसी वैभव नहीं है किंतु इसका ऐतिहासिक वैभव आज भी उतना ही समृद्ध और उतना ही आकर्षक है जितना आज से पांच सौ साल पहले अर्थात् ईस्वी 1527 में था।

समरकंद और फरगना में असफल होने के बाद मुगल बादशाह बाबर जब अपना भाग्य आजमाने भारत आया तो भारत में उसे वैसी ही कठिन परिस्थितियां मिलीं जैसी समरकंद और फरगना में थीं। बाबर के भाग्य से भले ही उन दिनों दिल्ली की सल्तनत अपनी अंतिम सांसें गिन रही थी किंतु मेवाड़ का शासक महाराणा संग्रामसिंह अपने शत्रुओं को तलवार के घाट उतारता हुआ निरंतर उत्तरी भारत के विशाल मैदानों पर अपना अधिकार जमाता जा रहा था।

राणा सांगा अर्थात् महाराणा संग्रामसिंह ने दिल्ली सल्तनत के दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में स्थित राजपूताना राज्यों का एक प्रबल संघ बना रखा था। वह जब युद्ध मंे जाता तो जोधपुर, बीकानेर, बूंदी, ईडर, देवलिया, सलूम्बर, बड़ी सादड़ी, डूंगरपुर तथा मेड़ता आदि प्रसिद्ध राज्यों के राजा अपनी सेनाओं के साथ उसकी सेवा मंे उपस्थित रहते। राणा सांगा स्वयं भी अद्भुदत योद्धा था और अनेक युद्धों में सफलता प्राप्त कर चुका था। उसके शरीर पर 80 घाव थे जो उसे विभिन्न युद्धों में प्राप्त हुए थे।

महाराणा सांगा ने ईस्वी 1519 में मालवा के शासक महमूद (द्वितीय) को कैद कर लिया था। ईस्वी 1520 में सांगा ने अहमदनगर के शासक मुबारिजुल को परास्त करके अहमदनगर पर अधिकार कर लिया था। अब सांगा के लिये दिल्ली की ओर बढ़ने से पहले केवल गुजरात से निबटना ही शेष रह गया था। यही वह समय था जब बाबर ने पानीपत के मैदान में दिल्ली को जीतकर संग्रामसिंह के समक्ष नई चुनौती खड़ी कर दी।

बाबर भी समझता था कि यदि उसे भारत में रहना है तो संग्रामसिंह से निबटना होगा। इसलिये दिल्ली विजय के बाद बाबर स्वयं धौलपुर आया जो मेवाड़ राज्य की सीमा पर स्थित था। बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह धौलपुर में मीराने बाग अर्थात् कमल उद्यान देखने गया। उस समय इस बाग का स्थापत्य देखते ही बनता था।

लाल पत्थर में तराशे गये कमल पुष्पों में फव्वारे लगे हुए थे। बाबर ने अपने सिपाहियों को बाग में स्थित एक कुण्ड अर्थात् कमलताल दिखाते हुए कहा कि यदि उन्होंने (बाबर के सैनिकों ने) महाराणा सांगा को परास्त कर दिया तो बाबर इस कुण्ड को शराब से भरवा देगा ताकि मुगल सैनिक छककर शराब पी सकें और मौज-मस्ती मना सकें। बाबर के सैनिकों ने अपने बादशाह का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

11 फरवरी 1527 को बाबर ने आगरा से प्रस्थान करके सीकरी के निकट स्थित बड़ी झील के किनारे अपना खेमा लगाया और युद्ध की तैयारी करने लगा। राणा भी अपनी सेना लेकर सीकरी के पास आ गया। सांगा की सेना ने बाबर की सेना के एक अंग पर धावा बोलकर उसे छिन्न-भिन्न कर दिया। इससे बाबर के सैनिकों में निराशा फैल गई। उन्होंने लड़ने से इनकार कर दिया तथा बाबर के भारतीय अफगान सरदार, महाराणा के भय से बाबर का साथ छोड़कर चले गये।

इससे बाबर की हालत खराब हो गई। उसने अपने सैनिकों की सभा बुलाई और उनके सामने ओजपूर्ण भाषण देकर उनसे यह शपथ करवाई कि मरते दम तक लड़ेंगे। बाबर ने सैनिकों के समक्ष, शराब नहीं पीने की शपथ ली तथा शराब पीने के सोने-चांदी के बर्तन तोड़कर गरीबों तथा फकीरों में बंटवा दिये। बाबर के सैनिकों के पास अन्य कोई उपाय भी नहीं था। यदि वे लड़ने से इन्कार  उत्साह बढ़ गया और वे फिर से शत्रु का सामना करने के लिए कटिबद्ध हो गये।

सीकरी से दस मील दूर स्थित खानवा के मैदान में 27 मार्च 1527 को प्रातः साढ़े नौ बजे बाबर तथा राणा सांगा की सेनाओं में भीषण संघर्ष आरम्भ हुआ। बाबर ने खनवा के युद्ध में उसी प्रकार की व्यूह रचना की जिस प्रकार की व्यूह रचना उसने पानीपत के मैदान में की थी। इस युद्ध में बाबर ने तोपों तथा बंदूकों का प्रयोग किया जबकि हिन्दुओं के पास अस्त्र-शस्त्र के नाम पर अब भी तलवारें और धनुष-बाण थे। फिर भी सांगा और उसके हिन्दू साथी बड़ी वीरता से लड़े।

भारत के दुर्भाग्य से राणा सांगा युद्ध के आरंभिक भाग में ही किसी हथियार की चपेट में आ जाने से बेहोश हो गया। इसलिये मेड़ता के राठौड़ सरदार राणा सांगा को रणक्षेत्र से निकालकर सुरक्षित स्थान पर ले गये। होश में आने पर सांगा को अपने सरदारों का यह कार्य उचित नहीं लगा। उसने फिर से युद्ध क्षेत्र में जाने की इच्छा प्रकट की इससे रुष्ट होकर कुछ सरदारों ने सांगा को जहर दे दिया जिससे कालपी में सांगा की मृत्यु हो गई। राणा का शव भरतपुर के निकट बसवा ले जाया गया और वहीं पर उसका अंतिम संस्कार किया गया।

इस प्रकार बाबर ने खानवा का युद्ध जीत लिया किंतु वह कमलताल को शराब से भरवाने की शपथ पूरी नहीं कर सका क्योंकि बाबर तो युद्ध के दौरान ही जीवन भर शराब न पीने की शपथ ले चुका था। आज कमलताल पूरी तरह उजड़ा हुआ है और आसपास रहने वाले लोग उसका इतिहास नहीं जानते। न ही यह स्थान पर्यटकों की दृष्टि में आता है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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