पैसा ढालने की प्यारी मशीन है प्रजा
ई. 1919 में केसरीसिंह जेल से रिहा होकर कोटा आ गये। उन्होंने देखा कि पांच सालों में देश का वातावरण तेजी से बदल गया था। देश के विभिन्न भागों से देश में संघीय शासन स्थापित करने की मांग उठने लगी थी। केसरीसिंह जान चुके थे कि छोटे-बड़े राज्यों के राजा अपनी प्रजा का खून चूस रहे थे। राजा लोग अपने राज्य बचाने के लिये गोरी सत्ता के चरण चूम रहे थे और प्रजा का पैसा लूटकर इंगलैण्ड भेजने का उपकरण बन गये थे। केसरीसिंह चाहते थे कि राजपूताना के राज्यों पर राजाओं के प्रत्यक्ष शासन के स्थान पर संघीय शासन व्यवस्था स्थापित की जाये जिसका संविधान बनाने के लिये इंगलैण्ड और अमरीका की भांति दो सदनों की व्यवस्था हो। इनमें से एक सदन भूस्वामी प्रतिनिधि मण्डल के नाम से जाना जाये जिसमें छोटे-बड़े जागीरदार एवं उमराव हों तथा दूसरा सदन सार्वजनिक प्रतिनिधि परिषद् के नाम से जाना जाये जिसमें श्रमजीवी, कृषक एवं व्यापारी हों। उनका मानना था कि सुशासन की स्थापना के लिये राज्य में धार्मिक, सामाजिक, नैतिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और लोकहितकारी शक्तियों का विकास किया जाना चाहिये। इस विचार से प्रेरित होकर अपनी रिहाई के कुछ माह बाद ही ठाकुर केसरीसिंह ने राजपूताने के ए. जी. जी. को जनतंत्रीय भावनाओं से पूर्ण एक विचारोत्तेजक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि राजपूताने की रियासतों का संघ बनाकर ब्रिटिश पार्लियामेंट की पद्धति पर राजपूताने में दो सदनों वाले संघीय शासन की स्थापना की जानी चाहिये। राजाओं को अपनी शासन पद्धति में परिवर्तन करना चाहिये। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आगे जाकर नरेशों के लिये पश्चातापमयी स्मृति रह जायेगी। ……… प्रजा आज केवल पैसा ढालने की प्यारी मशीन है और शासन उन पैसों को उठा लेने का यंत्र। यदि प्रजा को अधिकार देने मे देरी हो गई तो उसके भयंकर परिणाम होंगे। अग्नि को चादर से ढकना भ्रम है, खेल है या छल है।
राजाओं को धिक्कार
केसरीसिंह राजाओं को समाप्त नहीं करना चाहते थे वे दो सदनीय व्यवस्था में भी एक सदन राजाओं और जागीरदारों के लिये सुरक्षित रखना चाहते थे फिर भी वे जानते थे कि राजा लोग अपने ही करमों के कारण नष्ट हो जायेंगे। इसी कारण उन्होंने राजाओं को धिक्कारते हुए लिखा-
धिक्कार है उन राजमहलों को, जहाँ विष भर रहा।
नारकी है दृश्य सब, शैतान ताण्डव कर रहा।।
केसरीसिंह इतनी दूर की सोच रखते थे कि ई.1919 में उन्होंने राजाओं के भविष्य का अनुमान लिया था। यह वह समय था जब अंग्रेज भारतीय स्वातंत्र्य समर की लहरों को रोकने के लिये नरेन्द्र मण्डल (चैम्बर ऑफ प्रिंसेज) के रूप में मजबूत चट्टान खड़ी करने की तैयारी कर रहे थे।