पिछली कड़ी में हमने चर्चा की थी कि पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच 21 लड़ाइयां हुईं जिनमें राजा पृथ्वीराज चौहान की सेनाएं विजयी रहीं। हम्मीर महाकाव्य ने पृथ्वीराज द्वारा सात बार गौरी को परास्त किया जाना लिखा है। पृथ्वीराज प्रबन्ध आठ बार हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का उल्लेख करता है। प्रबन्ध कोष बीस बार मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज द्वारा कैद करके मुक्त करना बताता है। सुर्जन चरित्र में 21 बार और प्रबन्ध चिन्तामणि में 23 बार मुहम्मद गौरी का हारना अंकित है।
इन ग्रंथों के विवरणों के आधार पर भारत में यह सर्वमान्य धारणा प्रचलित हो गई है कि पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को इक्कीस बार युद्ध के मैदान में पकड़कर जीवित ही छोड़ दिया। किसी भी देश के युवकों के रक्त में भावनात्मक उबाल लाने के लिए यह बात अच्छी लगती है किंतु इसमें ऐतिहासिक सच्चाई प्रतीत नहीं होती है।
प्रबंध कोष के अतिरिक्त और कोई भी ग्रंथ पृथ्वीराज द्वारा मुहम्मद गौरी को जीवित ही पकड़कर छोड़ दिए जाने का उल्लेख नहीं करता है। प्रत्येक ग्रंथ मुहम्मद गौरी की अनेक बार की पराजय का उल्लेख करता है।
इनमें से तराइन के प्रथम युद्ध में हुई मुहम्मद गौरी की पराजय सर्वाधिक उल्लेखनीय है जिसमें मुहम्मद गौरी घायल होकर लाहौर भाग गया था तथा सरहिंद का किलेदार काजी जियाउद्दीन पृथ्वीराज चौहान द्वारा पकड़कर अजमेर लाया गया था। काजी से बहुत सारा धन लेकर उसे जीवित ही गजनी चले जाने की अनुमति दी गई थी।
संभवतः इन्हीं घटनाओं को तोड़-मरोड़कर पृथ्वीराज द्वारा मुहम्मद गौरी को इक्कीस बार पकड़ने और जीवित ही छोड़ देने की कथा प्रचलित हो गई। यह ठीक वैसा ही है जैसे कन्हैया लाल सेठिया द्वारा रचित कविता ‘अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो, नान्हो सो अमर्यो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो!’ के आधार पर साम्यवादी लेखकों ने यह कहना आरम्भ कर दिया कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा की पराजय हो गई थी और उनका परिवार घास की रोटी खाने पर विवश हो गया था। जबकि ये दोनों ही बातें गलत हैं।
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प्रायः यह देखा गया है कि लोक-साहित्य एवं रूमानी कथाएं इतिहास पर हावी होकर उसे मिथक बना देते हैं और विरोधी पक्ष उस मिथक के आधार पर इतिहास के वास्तविक तथ्यों को भी नकारने की हिम्मत जुटा लेता है। पृथ्वीराज और मुहम्मद गौरी के मामले में भी यही हुआ है।
राजा पृथ्वीराज सम्बन्धी लोकसाहित्य ने ऐतिहासिक तथ्यों को विरूपित करके ऐसा घनघोर वितण्डा मचाया है कि राजा पृथ्वीराज चौहान का सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही बदल गया है। भारत का एक महान् राजा इस साहित्य के कारण साम्यवादियों द्वारा मूर्ख घोषित कर दिया गया है जो हाथ आए शत्रु को नष्ट करने की बजाय बार-बार उसे जीवित छोड़ देता है तथा अंत में उसी के हाथों मार दिया जाता है।
कोई सामान्य व्यक्ति भी अपने शत्रु को बीस-इक्कीस बार जीवित नहीं छोड़ेगा, फिर वह तो इतने बड़े साम्राज्य का स्वामी था। उसे भी राजनीति के अर्थ समझ में आते थे और उसे भी अपने शत्रुओं को मारना आता था।
मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच की दो ही लड़ाइयां प्रमुख हैं, जिनमें से पहली लड़ाई ई.1189 में हुई तराइन की पहली लड़ाई है तथा दूसरी लड़ाई ई.1192 में हुई तराइन की दूसरी लड़ाई है।
तबकात-ए-नासिरी में लिखा है कि गौरी को कन्नौज के राजा जयचंद तथा जम्मू के विजयपाल द्वारा सैन्य सहायता उपलब्ध करवाई गई। तबकात ए नासिरी के इस कथन की पुष्टि किसी भी अन्य ग्रंथ से नहीं होती कि राजा जयचंद ने इस युद्ध में मुहम्मद गौरी की सहायता की थी।
हरबिलास शारदा के अनुसार कन्नौज के गाहड़ावालों तथा गुजरात के चौलुक्यों ने एक साथ षड़यंत्र करके पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिये शहाबुद्दीन गौरी को आमंत्रित किया।
हरबिलास शारदा विद्वान लेखक थे तथा उन्होंने जो कुछ भी लिखा, उसका कुछ न कुछ आधार अवश्य रहा होगा फिर भी उनका यह कथन कि गुजरात के चौलुक्यों एवं कन्नौज के गाहड़वालों ने एक साथ षड़यंत्र करके मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया, नितांत गलत जान पड़ता है।
अन्हिलवाड़ा के चौलुक्य जितने बड़े शत्रु चौहानों के थे, उससे कहीं अधिक बड़े शत्रु गजनी और गोर से आए मुस्लिम आक्रांताओं के थे। ऐसा होने के कारण भी सुस्पष्ट थे। महमूद गजनवी ने सोमनाथ भंग करके गुजरात को बहुत हानि पहुंचाई थी तथा स्वयं मुहम्मद गौरी ने भी कुछ वर्ष पहले गुजरात पर आक्रमण करके उसे क्षति पहुंचाने का प्रयास किया था। इसलिए ऐसा संभव नहीं था कि गुजरात के चौलुक्य अपने स्वधर्मी शत्रु को नष्ट करने के लिए विधर्मी शत्रु के साथ मिल जाते! जिनमें से एक स्वधर्मी था और दूसरा विधर्मी!
जम्मू का राजा तो तराइन के दूसरे युद्ध में मुहम्मद गौरी की तरफ से लड़ता हुआ पृथ्वीराज चौहान के किसी सामंत के हाथों युद्ध क्षेत्र में ही मारा गया था।
अतः इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब ई.1192 में मुहम्मद गौरी भारत पर आक्रमण करने आया तो उसके साथ भारत की कुछ शक्तियां भी हो गईं जिनमें पंजाब क्षेत्र के समस्त मुस्लिम अमीर तो थे ही, उनके साथ ही जम्मू का हिन्दू राजा और पृथ्वीराज चौहान के अपने सामंत भी शामिल थे किंतु पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव के कारण गुजरात के चौलुक्यों पर यह आक्षेप नहीं लगाया जा सकता! जयचंद गाहड़वाल के प्रकरण पर हम अगली कड़ी में चर्चा करेंगे।
अगली कड़ी में देखिए- गद्दार नहीं था राजा जयचंद गाहड़वाल!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता