जैसे-जैसे पृथ्वीराज चौहान की विजययात्रा आगे बढ़ती गई, वैसे-वैसे उसका वैभव बढ़ता गया और वैसे-वैसे ही उत्तर भारत के विभिन्न राजकुलों ने अपनी राजकुमारियां पृथ्वीराज से ब्याहनी आरम्भ कर दीं। विभिन्न ग्रंथों में पृथ्वीराज चौहान की रानियों की अलग-अलग संख्या एवं अलग-अलग नाम मिलते हैं। इस कारण पृथ्वीराज की रानियों की वास्तविक संख्या नहीं बताई जा सकती।
पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के दशम सर्ग के उत्तरार्ध में उल्लेख मिलता है कि, पृथ्वीराज की अनेक रानियाँ थी। चौहान कुल कल्पदु्रम पृथ्वीराज की 13 रानियों का उल्लेख है। कुछ संदर्भ पृथ्वीराज की 16 रानियां होना बताते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- (1.) आबू के राव आल्हण पंवार की पुत्री इच्छिनी पंवार, (2.) मण्डोर के राव नाहड़ प्रतिहार की पुत्री जतनकंवर, (3.) देलवाड़ा के रामसिंह सोलंकी की पुत्री प्रतापकंवर, (4.) नागौर के दाहिमा राजपूतों की पुत्री सूरज कंवर, (5.) गौड़ राजकुमारी ज्ञान कंवर, (6.) बड़गूजरों की राजकुमारी नंद कंवर, (7.) यादव राजकुमारी पद्मावती। (8.) गहलोत राजकुमारी कंवर दे (9.) आमेर नरेश पंजन की राजकुमारी जस कंवर कछवाही, (10.) मण्डोर के चंद्रसेन की पुत्री चंद्रकंवर पड़िहार, (11.) राठौड़ तेजसिंह की पुत्री शशिव्रता, (12.) देवास की सोलंकी राजकुमारी चांदकंवर, (13.) बैस राजा उदयसिंह की पुत्री रतनकंवर, (14.) सोलंकियों की राजकुमारी सूरजकंवर, (15.) प्रतापसिंह मकवाणी तथा (16.) कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता।
ये समस्त नाम विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते किंतु इनमें से कुछ नाम सही होने चाहिये। कुछ स्रोतों में रानी शशिव्रता को यादवों की बेटी बताया गया है।
कुछ स्रोतों में पृथ्वीराज चौहान की तेरह रानियां बताई गई हैं इनमें जम्भावती पडिहारी, पंवारी इच्छनी, दाहिया, जालन्धरी, गूजरी, बडगूजरी, यादवी पद्मावती, यादवी शशिव्रता, कछवाही, पुण्डीरनी, इन्द्रावती तथा संयोगिता गाहड़वाल के नाम सम्मिलित हैं।
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पृथ्वीराज रासो काव्य में उल्लेख है कि, पृथ्वीराज जब 11 वर्ष का था, तब उसका प्रथम विवाह हुआ था। उसके पश्चात् जब तक पृथ्वीराज बाईस वर्ष का हुआ तब तक उसका प्रतिवर्ष एक-एक विवाह होता रहा। पृथ्वीराज का अंतिम विवाह कन्नौज के राजा जयचंद गाहड़वाल की पुत्री संयोगिता के साथ हुआ।
राजा पृथ्वीराज चौहान का प्रथम विवाह मण्डोर के प्रड़िहार राजा की पुत्री जम्भावती के साथ हुआ था। कुछ लेखकों ने इस पड़िहार राजा का नाम नाहड़राव लिखा है, जो कि सही नहीं है। मण्डोर, जालोर, भीनमाल एवं कन्नौज के प्रतिहार शासक नाहड़राव को इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है, उसका काल पृथ्वीराज चौहान से लगभग चार शताब्दी पहले का है। इसलिए पृथ्वीराज चौहान की पड़िहारी रानी के पिता का नाम नाहड़राव नहीं होकर कुछ और रहा होगा।
पृथ्वीराज रासो की एक हस्तप्रति में राजा पृथ्वीराज चौहान की केवल पांच रानियों जम्भावती, इच्छनी, यादवी शशिव्रता, हंसावती और संयोगिता के नाम मिलते हैं। पृथ्वीजरासो की एक अन्य लघु हस्तप्रति में केवल दो रानियों के नाम इच्छनी और संयोगिता दिए गए हैं। पृथ्वीराज रासो की एक और छोटी हस्तप्रति मिली है जिसमें केवल रानी संयोगिता का ही नाम उपलब्ध है। इस प्रकार रानी संयोगिता का नाम सभी उपलब्ध हस्तप्रतियों में लिखा हुआ है।
पृथ्वीराज रासो की अलग-अलग आकार की हस्तलिखित प्रतियों से अनुमान होता है कि पृथ्वीराज रासो का मूल आकार कम था किंतु बाद में उसमें व्यर्थ की सामग्री जोड़ी जाती रही।
पृथ्वीराज रासो काव्य में उल्लेख है कि चन्द्र पुण्डीर प्रदेश की राजकुमारी चन्द्रावती का विवाह पृथ्वीराज के साथ हुआ था। उसके गर्भ से सपादलक्ष साम्राज्य का उत्तराधिकारी रैणसी उत्पन्न हुआ। यह सही है कि पृथ्वीराज की एक रानी पुण्डीर राजवंश से थी किंतु उसके पुत्र का नाम रैणसी नहीं था, गोविन्द था।
बीकानेर के अनूप संस्कृत पुस्तकालय में सोलहवीं शताब्दी की एक हस्तलिखित पुस्तक में लिखा है कि चौहानों के राज्य में दहिया राजपूतों का छोटा गांव था। दहियों की राजकुमारी अजिया भी पृथ्वीराज की ख्याति सुनकर उससे प्रेम करती थी। वह अपने रक्षकों को साथ लेकर राजा पृथ्वीराज से मिलने के लिए वह अजयमेरु नगर गई।
मार्ग में उसे जांगलू नामक एक ध्वस्त गांव दिखाई दिया जिसे देखकर राजकुमारी बड़ी दुखी हुई। राजकुमारी ने वहाँ अजियापुर नामक नया गांव बसाया। उन्हीं दिनों राजा पृथ्वीराज भी आखेट करता हुआ जाङ्गलू के वनों में आया। वह अजिया को अपनी राजधानी ले गया और उसके साथ विवाह कर लिया। कहा नहीं जा सकता कि इस कथा में कितनी सच्चाई है किंतु प्राचीन हस्तलिखित पोथियों में राजा पृथ्वीराज की रानियों में दहिया रानी का उल्लेख भी मिलता है। मूथा नैणसी ने भी यह स्वीकार किया है कि राजा पृथ्वीराज चौहान की एक रानी का नाम अजिया था जिसने अजियापुर बसाया था।
इस स्थान पर हमें इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि राजा पृथ्वीराज (तृतीय) के एक पूर्वज पृथ्वीराज (प्रथम) के पुत्र का नाम अजयराज था। उसी अजयराज के नाम जांगलू गांव को अजयपुरा भी कहते थे। पृथ्वीराज (प्रथम) के कुछ सिक्के जांगलू प्रदेश से प्राप्त हुए हैं। अतः यह संभव है कि अजियापुर का सम्बन्ध चौहान राजकुमार अजयराज से रहा हो। पृथ्वीराज की एक रानी का नाम अजिया अवश्य होगा किंतु उसका सम्बन्ध अजियापुर से हो, यह आवश्यक नहीं है। उस काल में कुंवरी राजकुमारियां अपने अंगरक्षकों के साथ अपने प्रेमियों से मिलने नहीं जाया करती थीं। न ही उनके द्वारा इस प्रकार गांव बसाए जाते थे। इस पूरी कथा में अजिया के माता-पिता आदि का कोई उल्लेख नहीं है। अतः अजिया की प्रेमगाथा में इतिहास एवं साहित्यिक कल्पना दोनों का मिश्रण हुआ जान पड़ता है।
अगली कड़ी में देखिए- सम्राट पृथ्वीराज चौहान की रानी इच्छिनी की इतिहास कथा!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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