Wednesday, October 16, 2024
spot_img

12. पृथ्वीराज चौहान इतिहास के रंगमंच पर भूमिका निभाने आ गया!

ई.1180 में केवल 14 वर्ष की आयु में राजा पृथ्वीराज चौहान ने राज्य के समस्त अधिकार अपनी माता से अपने हाथ में ले लिए तथा राज्य के समस्त उच्च पदों पर नियुक्त अपनी माता के विश्वस्त मंत्रियों एवं अधिकारियों को हटाकर अपने विश्वास के मंत्रियों एवं अधिकारियों को नियुक्त कर दिया।

संभवतः संरक्षण का समय लगभग दो वर्ष से भी कम रहा। केवल 14-15 वर्ष की अल्पायु में राज्याधिकार अपने हाथ में लिए जाने का कारण राजा पृथ्वीराज की महत्त्वाकांक्षा एवं कार्य संचालन की क्षमता उत्पन्न होना हो सकता है।

यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि इतिहासकारों ने भी इस पर आश्चर्य व्यक्त किया है। राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने पिता एवं अपनी माता के शासन काल में प्रधानमंत्री पद पर कार्य कर रहे कदम्बवास अथवा कैमास दहिया की शक्ति को कम कर दिया तथा उसके स्थान पर प्रतापसिंह को अधिकार सम्पन्न बना दिया।

संभवतः पृथ्वीराज ने पुराने प्रधानमंत्री कदम्बवास की शक्ति को अपनी महत्वकांक्षाओं के मार्ग की बाधा समझ कर उसे महत्वहीन कर दिया तथा राज्य में अनेक विश्वस्त अधिकारियों की नियुक्ति की जिनमें प्रतापसिंह विशेष रूप से उल्लेखनीय था।

प्रधानमंत्री कदम्बवास अधिक समय तक जीवित नहीं रहा। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि पृथ्वीराज के भाग्य ने कदम्बवास को पृथ्वीराज के मार्ग से हटाया। पृथ्वीराजरासो के लेखक ने कदम्बवास की हत्या स्वयं पृथ्वीराज द्वारा होना लिखा है तथा पृथ्वीराज प्रबन्ध में कदम्बवास की मृत्यु का कारण प्रतापसिंह को बताया गया है।

डॉ. दशरथ शर्मा राजा पृथ्वीराज या मंत्री प्रतापसिंह को प्रधानमंत्री कदम्बवास की मृत्यु का कारण नहीं मानते क्योंकि हत्या सम्बन्धी विवरण बाद के ग्रंथों पर आधारित है।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

मृत्यु सम्बन्धी कथाओं में सत्यता का कितना अंश है, यह कहना कठिन है किंतु पृथ्वीराज की शक्ति-संगठन की योजनाएं इस ओर संकेत करती हैं कि पृथ्वीराज ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति में कदम्बवास को बाधक अवश्य माना होगा तथा उससे मुक्ति का मार्ग ढूंढ निकाला होगा।

डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि इस कार्य में प्रतापसिंह का सहयोग मिलना असम्भव नहीं दिखता। इस कल्पना की पुष्टि कदम्बवास के ई.1180 के पश्चात् कहीं भी महत्त्वपूर्ण घटनाओं के साथ उल्लेख के अभाव से होती है।

पृथ्वीराज का मुख्य सेनापति स्कंद गुजरात का नागर ब्राह्मण था। पृथ्वीराज के अन्य सेनापतियों में भुवनीकमल जो कि राजा पृथ्वीराज के नाना का भाई था, उदयराज, उदग, कतिया, गोविंद तथा गोपालसिंह चौहान सम्मिलित थे। कदम्बवास की मृत्यु के बाद पं. पद्मनाभ को प्रधानमंत्री बनाया गया। पृथ्वीराज के मंत्रियों में जयानक, विद्यापति गौड़, वाशीश्वर जनार्दन, विश्वरूप और रामभट्ट, प्रतापसिंह आदि कई मंत्री सम्मिलित थे। इनमें से जयानक ने पृथ्वीराज महाकाव्यम् की रचना की। रामभट्ट इतिहास में चन्दबरदायी नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने पृथ्वीराज रासो नामक काव्य के आरम्भिक खण्ड की रचना की थी।

इस प्रकार शासन के आंतरिक ढांचे पर नियंत्रण करने के बाद ने अपनी विजय नीति को आरंभ करने का बीड़ा उठाया। पृथ्वीराज के गद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद उसके पिता के चचेरे भाई अपरगांग्य ने विद्रोह का झण्डा उठाया।उसने गुड़पुर पर अधिकार कर लिया जिसे अब गुड़गांव तथा गुरुग्राम कहा जाता है।

पृथ्वीराज ने अपरगांग्य को परास्त किया तथा उसकी हत्या करवाई। इस पर अपरगांग्य के छोटे भाई नागार्जुन ने विद्रोह को प्रज्ज्वलित किया तथा गुड़गांव पर अधिकार कर लिया। पृथ्वीराज ने फिर से गुड़गांव पर आक्रमण किया। नागार्जुन की सेना का नेतृत्व देवभट्ट नामक सेनापति ने किया। नागार्जुन की सेना काफी बड़ी थी और सेनापति देवभट्ट भी वीर था किंतु स्वयं नागार्जुन में साहस की कमी थी।

जब पृथ्वीराजा की सेना लड़ने के लिए आई तो नागार्जुन रात्रि के समय चुपचाप गुड़गांव से भाग निकला किंतु नागार्जुन की माता, स्त्री, बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य पृथ्वीराज के हाथ लग गये। पृथ्वीराज ने उन्हें बंदी बना लिया।

इस युद्ध में पृथ्वीराज को अथाह सम्पत्ति की प्राप्ति हुई। पृथ्वीराज विजय के अनुसार राजा पृथ्वीराज चौहान बहुत से विद्रोहियों को पकड़कर अजमेर ले आया तथा उन्हें मौत के घाट उतार कर उनके मुण्ड नगर की प्राचीरों और द्वारों पर लगाये जिससे भविष्य में अन्य शत्रु सिर उठाने की हिम्मत न कर सकें।

नागार्जुन का क्या हुआ, कुछ विवरण ज्ञात नहीं होता। अबुल फजल ने आइने अकबरी में नागार्जुन का नाम नागदेव दिया है। पृथ्वीराज रासो में नागार्जुन का वर्णन हलीं किया गया है। इससे सिद्ध होता है कि अबुल फजल को नागार्जुन का उल्लेख किसी अन्य ग्रंथ से मिला होगा।

उस काल में पृथ्वीराज चौहान के राज्य के उत्तरी भाग में मथुरा, भरतपुर तथा अलवर के निकट भण्डानक जाति रहती थी। भण्डानकों को कुछ ग्रंथों में भदानक लिखा गया है। आजकल इस पूरे प्रदेश में मेवों का बाहुल्य है।

पृथ्वीराज चौहान के ताऊ विग्रहराज (चतुर्थ) ने इन्हें अपने अधीन किया था किंतु उसे विशेष सफलता नहीं मिली थी। जिस समय विग्रहराज चतुर्थ के पुत्र नागार्जुन ने पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध विद्रोह किया, उस समय भण्डानकों ने नागार्जुन का साथ दिया। इसलिए पृथ्वीराज ने भण्डानकों को दण्डित करने का निर्णय लिया।

चूंकि भण्डानकों की संख्या बहुत अधिक थी और वे एक लड़ाका समुदाय के रूप में निवास करते थे इसलिए पृथ्वीराज चौहान ने इस युद्धयात्रा के लिए काफी तैयारी की। वर्तमान समय में अजमेर-रींगस रेल लाइन पर स्थित नारायण रेल्वे स्टेशन के निकट पृथ्वीराज का शिविर लगाया गया।

ई.1182 के लगभग पृथ्वीराज चौहान दिग्विजय के लिये निकला। उसने भण्डानकों पर आक्रमण किया तथा उनकी बस्तियां घेर लीं। बहुत से भण्डानक मारे गये और बहुत से उत्तर दिशा की ओर भाग गये। इस आक्रमण का वर्णन समकालिक लेखक जिनपति सूरि ने किया है। खतरगच्छ पट्टावली में लिखा है कि राजा पृथ्वीराज चौहान ने भण्डानकों की हाथियों की सेना को पकड़ लिया।

इस आक्रमण के बाद भण्डानकों की शक्ति सदा के लिये क्षीण हो गई। इसके बाद से इतिहास में भण्डानक जाति का उल्लेख नहीं मिलता है। भण्डानकों के प्रबल दमन का परिणाम यह हुआ कि पृथ्वीराज के राज्य की दो धुरियां- अजमेर तथा दिल्ली एक राजनीतिक सूत्र में बंध गईं। अब चौहान राज्य का स्वरूप एक साम्राज्य जैसा हो गया था।

अगली कड़ी में देखिए- सोलह रानियाँ थीं सम्राट पृथ्वीराज चौहान की!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source