ई.1178 में सोमेश्वर की मृत्यु हो गई। पृथ्वीराज रासो के अनुसार सोमेश्वर के भाई कानराई ने अजमेर के भरे दरबार में एक गलतफहमी के कारण अन्हिलवाड़ा के राजा प्रतापसिंह सोलंकी की हत्या कर दी। इस पर अन्हिलवाड़ा के सोलंकी शासक भोला भीम (ई.1179-1242) ने अपने पिता प्रतापसिंह सोलंकी की हत्या का बदला लेने के लिये अजमेर पर आक्रमण किया। भोला भीम के आक्रमण में राजा सोमेश्वर मारा गया।
‘रासमाला’ कानराई के हाथों प्रतापसिंह की मृत्यु की घटना का उल्लेख तो करती है किंतु यह भी कहती है कि भोला भीम ने अजमेर पर आक्रमण करने का निश्चय त्याग दिया क्योंकि उस समय एक मुस्लिम आक्रांता अन्हिलवाड़ा के विरुद्ध अभियान पर था।
पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज (तृतीय) ने अपने पिता सोमेश्वर की हत्या का बदला लेने के लिये गुजरात पर आक्रमण किया तथा भोला भीम को मार डाला। पृथ्वीराज विजय में न तो भोला भीम के अजमेर अभियान का उल्लेख है और न ही पृथ्वीराज द्वारा भोला भीम पर आक्रमण करने का उल्लेख है।
राजा सोमेश्वर का अंतिम शिलालेख 18 अगस्त 1178 का है जो आंवलदा नामक स्थान से मिला है। जबकि पृथ्वीराज चौहान का पहला शिलालेख 14 मार्च 1179 का बड़ल्या से मिला है। अतः अनुमानित होता है कि इन्हीं दो तिथियों के बीच राजा सोमश्वर की मृत्यु हुई तथा पृथ्वीराज का राज्याभिषेक हुआ। उस समय पृथ्वीराज केवल 12-13 वर्ष का बालक था।
पृथ्वीराज चौहान का जन्म ई.1166 में गुजरात में हुआ था। जिस समय पृथ्वीराज का पिता सोमेश्वर गुजरात से आकर अजमेर का राजा बना, उस समय पृथ्वीराज की आयु केवल 3 वर्ष तथा उसके छोटे भाई हरिराज की आयु केवल 2 वर्ष थी। दोनों राजकुमारों का जन्म अण्हिलपाटण अथवा अन्हिलवाड़ा में चौलुक्यों के राजपा्रसाद में हुआ था।
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अजमेर का राजा बनने के बाद सोमेश्वर चौहान ने अपने पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा का अच्छा प्रबंध किया जिससे दोनों राजकुमार शस्त्र एवं शास्त्र दोनों में पारंगत हो गए। इन दोनों राजकुमारों की शिक्षा अजमेर की सरस्वती कण्ठाभरण पाठशाला हुई जिसका निर्माण पृथ्वीराज के ताऊ विग्रहराज चतुर्थ ने करवाया था तथा जिसे अब अढाई दिन का झौंपड़ा कहा जाता है।
उन्हें व्यायाम, अश्वरोहण, गजचालन, आखेट एवं धनुर्विद्या की शिक्षा दी गई। पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलाने में निुपुण था।
इतिहास की पुस्तकों में उल्लेख मिलाता है कि बालक पृथ्वीराज को 64 कलाओं एवं 14 विद्याओं में पारंगत बनाया गया। पृथ्वीराज विजय में कहा गया है कि राजकुमार पृथ्वीराज को धर्मशास्त्र, चित्रकला, संगीतकला, इंद्रजाल, कविता, वाणिज्य विनय, संस्कृत एवं अपभ्रंश के साथ-साथ अनेक देशज भाषाएं, पक्षियों की भाषा तथा गणित की भी शिक्षा दी गई।
राजा पृथ्वीराज को तलवार, भाला एवं धनुष सहित 36 प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करने एवं चलाने आते थे। पृथ्वीराज विजय में लिखा है कि राजा पृथ्वीराज को संस्कृत, अपभ्रंश, प्राकृत, पैशाची, मागधी एवं शूरसैनी नामक छः भाषाएं आती थीं।
राजा पृथ्वीराज चौहान को भारत के इतिहास में पृथ्वीराज चौहान तथा राय पिथौरा के नाम से जाना जाता है। आधुनिक काल में लिखी गई इतिहास की पुस्तकों में उसे पृथ्वीराज (तृतीय), भारतेश्वर तथा सपादलक्षेश्वर भी कहा गया है। पृथ्वीराज विजय में उसे गुर्जरराज तथा मरुगुर्जरराज कहा गया है जिसका अर्थ होता है- गुर्जर देश अथवा मरु-गुर्जर देश का स्वामी।
वस्तुतः चौहानों तथा प्रतिहारों के उदय होने से पहले तथा हूणों के पराभव के बाद जोधपुर राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थत डीडवाना से लेकर गुजरात के दक्षिण में भड़ौंच तक के विशाल प्रदेश पर गुर्जरों का शासन था। इस कारण इस क्षेत्र को गुर्जर प्रदेश कहते थे। जब प्रतिहार इस क्षेत्र के शासक बने तो उन्होंने स्वयं को गुर्जर-प्रतिहार कहलवाने में गौरव का अनुभव किया।
जिस प्रकार उन्होंने गुप्तों को परास्त करके परमभट्टारक आदि उपाधियां धारण कीं उसी प्रकार उन्होंने गुर्जर प्रदेश पर अधिकार करके स्वयं को गुर्जरेश्वर कहा। जयानक ने चौहानों को गुर्जरेश्वर कहकर उनकी महत्ता को प्रतिपादित किया। उसी प्राचीन गुर्जर प्रदेश का दक्षिणी हिस्सा आज भी गुजरात के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराज की गुर्जरेश्वर उपाधि पर हम यथास्थान विस्तार से चर्चा करेंगे।
सिंहासन पर बैठते समय पृथ्वीराज के अल्प वयस्क होने के कारण उसकी माता कर्पूर देवी अजमेर का शासन चलाने लगी। राजमाता कर्पूर देवी, चेदि देश की राजकुमारी थी तथा कुशल राजनीतिज्ञ थी। उसने बड़ी योग्यता से अपने अल्पवयस्क पुत्र के राज्य को संभाला। उसने दाहिमा राजपूत कदम्बवास को अपना प्रधानमंत्री बनाया जिसे इतिहास की पुस्तकों में केम्बवास तथा कैमास भी का गया है। कदम्बवास ने अपने स्वामि के षट्गुणों की रक्षा की तथा राज्य की रक्षा के लिये चारों ओर सेनाएं भेजीं।
प्रधानमंत्री कदम्बवास विद्यानुरागी था जिसे पद्मप्रभ तथा जिनपति सूरि के शास्त्रार्थ की अध्यक्षता का गौरव प्राप्त था। उसने बड़ी राजभक्ति से शासन किया। नागों के दमन में कदम्बवास की सेवाएं प्रशसंनीय थीं।
चंदेलों तथा मोहिलों ने भी इस काल में शाकम्भरी के राज्य की बड़ी सेवा की। कर्पूरदेवी का चाचा भुवनायक मल्ल पृथ्वीराज की देखभाल के लिये गुजरात से अजमेर आ गया। उसे इतिहास की पुस्तकों में भुवनमल्ल अथवा भुवनीकमल भी कहा गया है। इस प्रकार पृथ्वीराज के नाना का भाई भुवनमल्ल राजा पृथ्वीराज के कल्याण के लिए कार्य करने लगा। जिस प्रकार गरुड़ ने राम और लक्ष्मण को मेघनाद के नागपाश से मुक्त किया था, उसी प्रकार भुवनमल्ल ने पृथ्वीराज को शत्रुओं से मुक्त रखा।
राजमाता कर्पूरदेवी का संरक्षण-काल कम समय का था किंतु इस काल में अजमेर और भी सम्पन्न और समृद्ध नगर बन गया। कर्पूरदेवी के संरक्षण में राजा पृथ्वीराज ने कई भाषाओं और शास्त्रों का अध्ययन किया तथा अपनी माता के निर्देशन में अपनी प्रतिभा को अधिक सम्पन्न बनाया। इसी अवधि में राजा पृथ्वीराज ने राज्य-कार्य में दक्षता अर्जित की तथा अपनी भावी योजनाओं को निर्धारित किया जो उसकी निरंतर विजय योजनाओं से प्रमाणित होता है।
पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि जयानक द्वारा लिखत पृथ्वीराज विजय नामक ग्रंथ जिसे पृथ्वीराजमहाकाव्यम् भी कहा जाता है, में लिखा है कि राजा पृथ्वीराज की प्रारंभिक विजयों एवं शासन सुव्यवस्थाओं का श्रेय कर्पूरदेवी को दिया जा सकता है जिसने अपने विवेक से अच्छे अधिकारियों को अपना सहयोगी चुना और कार्यों को इस प्रकार संचालित किया जिससे बालक पृथ्वीराज के भावी कार्यक्रम को बल मिले।
पृथ्वीराज विजय के अनुसार प्रधानमंत्री कदम्बवास का जीवन राजा पृथ्वीराज एवं राजमाता कर्पूरदेवी के प्रति समर्पित था। कदम्बवास की ठोड़ी कुछ आगे निकली हुई थी। वह राज्य की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखता था। कहीं से गड़बड़ी की सूचना पाते ही तुरंत सेना भेजकर स्थिति को नियंत्रण में करता था। कर्पूरदेवी के शासन काल में नागों ने चौहानों के विरुद्ध विद्रोह किया किंतु उसे सफलता पूर्वक दबा दिया गया।
अगली कड़ी में देखिए- पृथ्वीराज चौहान इतिहास के रंगमंच पर भूमिका निभाने आ गया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता