Saturday, July 27, 2024
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10. पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर को भाग्यवश मिला चौहानों का सिंहासन!

ई.1163 में विग्रहराज (चतुर्थ) की मृत्यु के बाद उसका अवयस्क पुत्र अमरगंगेय अथवा अपरगंगेय अजमेर की गद्दी पर बैठा। वह मात्र 5-6 वर्ष ही शासन कर सका और चचेरे भाई पृथ्वीराज (द्वितीय) द्वारा हटा दिया गया। पृथ्वीराज (द्वितीय), पितृहंता जगदेव का पुत्र था। पृथ्वीराज (द्वितीय) के समय का ई.1167 का एक अभिलेख हांसी से मिला है जिसमें कहा गया है कि चौहान शासक चंद्रवंशी हैं।

मेवाड़ के जहाजपुर परगने के धौड़ गांव के रूठी रानी के मंदिर से ई.1168 का एक शिलालेख मिला है जिसमें कहा गया है कि पृथ्वीभट्ट अर्थात् पृथ्वीराज (द्वितीय) ने अपनी भुजाओं के बल से शाकम्भरी नरेश अर्थात् अमरगंगेय पर विजय प्राप्त की।

इस शिलालेख का आशय यह है कि जिस राज्य को विग्रहराज (चतुर्थ) ने, पृथ्वीराज (द्वितीय) के पिता जगदेव से छीन लिया था, उस राज्य को जगदेव के पुत्र पृथ्वीराज (द्वितीय) ने अपनी भुजाओं के बल से पुनः प्राप्त कर लिया।

इस शिलालेख में पृथ्वीभट्ट अर्थात् पृथ्वीराज (द्वितीय) की रानी का नाम सुहागदेवी बताया गया है। पृथ्वीराज (द्वितीय) उपकार के कार्यों के लिये जाना गया। उसने राजा वास्तुपाल को हराया, तुर्कों को पराजित किया तथा हांसी के दुर्ग में एक महल बनवाया।

पृथ्वीराज (द्वितीय) ने मुसलमानों को अपने राज्य से दूर रखने के लिये अपने मामा गुहिल किल्हण को हांसी का अधिकारी नियुक्त किया। उसका राज्य अजमेर और शाकम्भरी के साथ-साथ थोड़े (जहाजपुर के निकट), मेनाल (चित्तौड़ के निकट) तथा हांसी अर्थात् (पंजाब) तक विस्तृत था। ई.1169 में पृथ्वीराज (द्वितीय) की निःसंतान अवस्था में ही मृत्यु हो गई।

इस समय अर्णोराज के कुल में तीन वयस्क राजकुमार जीवित थे। इनमें से पहला अमरगंगेगय अथवा अपरगांग्य था जो स्वर्गीय अर्णोराज का पौत्र तथा स्वर्गीय राजा विग्रहराज (चतुर्थ) का बड़ा पुत्र था और जिसे उसके भतीजे पृथ्वीराज (द्वितीय) द्वारा पहले ही राज्य से अपदस्थ कर दिया गया था।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

राज्य का दूसरा दावेदार नागार्जुन था जो स्वर्गीय अर्णोराज का पौत्र राजा विग्रहराज (चतुर्थ) का दूसरा पुत्र था और पूर्व में अपदस्थ राजा अमरगंगेय का छोटा भाई था।

राज्य का तीसरा दावेदार सोमेश्वर था। वह स्वर्गीय अर्णोराज का तीसरा पुत्र तथा स्वर्गीय विग्रहराज (चतुर्थ) का सबसे छोटा भाई था। राज्य पर सोमेश्वर का अधिकार सबसे कम था क्योंकि स्वर्गीय राजा विग्रहराज (चतुर्थ) के दो पुत्र जीवति थे किंतु अजमेर के मंत्रियों ने अपदस्थ राजा अमरगागेय तथा उसके छोटे भाई नागार्जुन को राजा बनाने की बजाय स्वर्गीय विग्रहराज (चतुर्थ) के एक मात्र जीवित छोटे भाई सोमेश्वर को राजा बनाने का निर्णय लिया।

सोमेश्वर का जन्म चौलुक्य राजा सिद्धराज जयसिंह की पुत्री कंचनदेवी के गर्भ से हुआ था। सोमेश्वर का बचपन गुजरात में अपने नाना सिद्धराज जयसिंह तथा सौतेले मामा कुमारपाल के दरबार में बीता था।

सोमेश्वर ने ननिहाल में रहने के दौरान ही अपने मामा चौलुक्यराज कुमारपाल के शत्रु कांेकण नरेश मल्लिकार्जुन का युद्ध में सिर काटकर ख्याति प्राप्त की थी। कोंकण विजय के समय ही सोमेश्वर ने कलचुरी की राजकुमारी कर्पूरदेवी से विवाह किया। कर्पूरदेवी का पिता अचलराज चेदि देश का राजा था। चेदिदेश वर्तमान जबलपुर के आसपास था।

रानी कर्पूरदेवी के गर्भ से दो पुत्रों का जन्म हुआ जिनमें से बड़े पुत्र का नाम पृथ्वीराज तथा छोटे पुत्र का नाम हरिराज रखा गया। राजा सोमेश्वर की एक पुत्री भी था जिसका नाम पृथा था। कर्पूरदेवी के पुत्र पृथ्वीराज को इतिहास में पृथ्वीराज (तृतीय) तथा राय पिथौरा कहा जाता है। इसका इतिहास हम आने वाली कड़ियों में बताएंगे किंतु अभी हम पृथ्वीराज (द्वितीय) की ओर वापस चलते हैं जिसकी ई.1169 में निंसतान अवस्था में ही मृत्यु हो गई।

अब तब स्वर्गीय राजा अर्णोराज के दो पुत्र जगदेव तथा विग्रहराज (चतुर्थ) और दो पौत्र अमरगंगेय तथा पृथ्वीराज (द्वितीय) मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे तथा अर्णोराज का तीसरा औार एकमात्र जीवित पुत्र सोमेश्वर अपने सौतेले मामा कुमारपाल के दरबार में रहता था।

अतः अजमेर के सामंतों द्वारा राजकुमार सोमेश्वर को अजमेर का शासक बनने के लिये आमंत्रित किया गया। सोमेश्वर के अजमेर का शासक बनने की कोई संभावना नहीं थी किंतु भाग्यवश अजमेर के राजा पृथ्वीराज (द्वितीय) की असमय ही निःसंतान अवस्था में मृत्यु हो जाने से सोमेश्वर को अपने पिता के शक्तिशाली राज्य की अचानक प्राप्ति हो गई।

सोमेश्वर अपनी रानी कर्पूरदेवी तथा दो पुत्रों पृथ्वीराज एवं हरिराज के साथ अजमेर आया। उसके साथ नागरवंशी, स्कंद, बामन तथा सोढ़ नामक व्यक्ति भी अजमेर आये। ये सभी लोग गुजरात के सम्मानित व्यक्ति अथवा उच्चाधिकारी थे तथा सोमेश्वर के राज्य को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से उसके साथ अजमेर आए थे।

सोमेश्वर प्रतापी राजा हुआ। उसके राज्य में बीजोलिया, रेवासा, थोड़, अणवाक आदि भाग भी सम्मिलित किए गए। सोमेश्वर के समय का एक शिलालेख मेवाड़ के बिजौलिया नामक स्थान में मिला है जिसे बिजौलिया अभिलेख कहते हैं। यह अभिलेख 5 फरवरी 1170 का है। इसमें चौहान शासकों की वंशावली दी गयी है। सोमेश्वर के समय की एक छतरी भी अजमेर में मिली है।

सोमेश्वर ने भी अपने पूर्वजों की भांति नगर, मंदिर और प्रासादों के निर्माण में रुचि ली। उसने अपने पिता अर्णोराज की मूर्ति बनवाकर तथा अपनी स्वयं की मूर्ति बनवाकर लगवाई और उत्तरी भारत में मूर्ति निर्माण कला को बढ़ावा दिया।

राजा सोमेश्वर के समय के सिक्के अजमेर की समृद्धि की कहानी कहते हैं। शैव धर्मावलम्बी होते हुए भी उसने जैन धर्म के प्रति सहिष्णुतापूर्ण नीति का अवलम्बन किया। उसने वैद्यनाथ का विशाल मंदिर बनवाया जो वीसलदेव के महलों से भी ऊँचा था। इस मंदिर में उसने ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की मूर्तियाँ स्थापित करवाईं तथा अपने पिता अर्णोराज की अश्वारूढ़ प्रतिमा बनवाकर लगवाई।

सोमेश्वर ने अजमेर में पांच मंदिर बनवाये जो ऊँचाई में, पहाड़ों से प्रतिस्पर्धा करते थे। इन मंदिरों को वह पंाच कल्पवृक्ष कहता था। उसने अजमेर से 9 मील दूर गौगनक तथा अन्य स्थानों पर कई मंदिर बनवाये। बिजौलिया अभिलेख के अनुसार उसकी जन्मराशि के अनुसार उसका नाम प्रताप लंकेश्वर था। वह शक्तिशाली राजा था, उसने अपने समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। उसके समय में फिर से चौलुक्य-चौहान संघर्ष छिड़ गया जिससे उसे हानि उठानी पड़ी।

अगली कड़ी में देखिए- रानी कर्पूरदेवी ने चौहानों का राज्य संभाल लिया!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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