Monday, March 10, 2025
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शाह अब्बास के भयानक सपने

नजर मुहम्मद, फारस के बादशाह शाह अब्बास के सामने जाकर खूब गिड़गिड़ाया। शाह अब्बास पहले से ही कांधार पर अधिकार करने को लेकर मुगलों से खार खाए हुए था। जब उसने सुना कि तारिन, कुंदुज, काहमर्द, तिरमिज, बलख, और समरकंद पर मुगलों का अधिकार हो गया तो वह मुगलों की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित हुआ।

उसने अपनी विशाल सेना नजर मुहम्मद के साथ बलख के लिए रवाना कर दी ताकि नजर मुहम्मद फिर से बलख पर अधिकार कर सके। शाह अब्बास चाहता था कि मुगलों को ट्रांस-ऑक्सियान में घेर कर पीस दिया जाए ताकि उसके बाद कांधार पर आसानी से अधिकार किया जा सके।

उधर जब बुखारा में बैठे नजर मुहम्मद के शहजादे अब्दुल अजीज ने सुना कि मुगलों और राठौड़ों ने बादशाह नजर मुहम्मद को फारस भाग जाने के लिए विवश कर दिया तो अब्दुल अजीज मुगलों से लड़ने के लिए सेना लेकर आया और ऑक्सस नदी के तट पर आकर बैठ गया।

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जब शाह अब्बास को ज्ञात हुआ कि नजर मुहम्मद का शहजादा अब्दुल अजीज अपने बाप का साथ देने के लिए राजी है और स्वयं सेना लेकर ऑक्सस नदी के तट पर डेरे डालकर बैठा है तो उसने भी अब फारस में चुप होकर बैठना उचित नहीं समझा। वह भी एक विशाल सेना लेकर खुरासान की ओर बढ़ने लगा। उसका इरादा खुरासान होते हुए बलख पहुँचने का था जहाँ वह मुगलांे को घेर सके और यदि बलख में मुगलों को शिकस्त दी जा सके तो उसका अगला लक्ष्य कांधार था।

इस प्रकार समूचे ट्रांस-आक्सियन क्षेत्र में मुगलों के खिलाफ बड़ी मोर्चा बंदी हो गई। शाहजहाँ ने औरंगज़ेब पर अब्दुल अजीज से निबटने की और महाराजा रूपसिंह पर शाह अब्बास से निबटने की जिम्मेदारी सौंपी। इन फरमानों के मिलने पर औरंगज़ेब काहमर्द से निकलकर ऑक्सस नदी की ओर बढ़ा। महाराजा रूपसिंह अब भी बलख और शिवाराधन के क्षेत्र में मौजूद था। इसलिए स्वाभाविक ही था कि उसे खुरासान की तरफ से आ रहे शाह अब्बास का मार्ग रोकने के लिए कहा जाए।

महाराजा रूपसिंह अब तक तो अफगानियों और उजबेकों से तलवार बजाता आया था किंतु ईरानी उसके लिए बिल्कुल नए थे। महाराजा को अनुभव नहीं था कि ईरानियों के लड़ने और व्यवहार करने का तरीका क्या है! वे मैदान में कब तक टिके रहते हैं और कब मोर्चा छोड़कर भाग जाते हैं! उसके राठौड़ सिपाहियों को भी अपना देश छोड़े हुए लम्बा समय बीत चुका था, वे सब अपने घरों को जाने के इच्छुक थे फिर भी महाराजा को बादशाह का आदेश तो मानना ही था। इसलिए वह बलख में पांव रोपकर खड़ा हो गया और शाह अब्बास के आने की प्रतीक्षा करने लगा।

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