नवम् शताब्दी ईस्वी में उत्तर भारत में पांच राजनीतिक शक्तियां- गुहिल, प्रतिहार, परमार, चौहान तथा चौलुक्य, वर्चस्व के लिये संघर्ष कर रही थीं। छठी शक्ति के रूप में राष्ट्रकूट भी तेजी से राष्ट्रीय परिदृश्य पर स्थान बनाते जा रहे थे।
आश्चर्य की बात यह थी कि इन महाशक्तियों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध थे, ये एक दूसरे के ससुर-जंवाई तथा मामा-भांजा थे और संकट के समय इनमें से प्रत्येक शक्ति एक दूसरे की सहायता के लिये भी तत्पर रहती थी किंतु उनमें वर्चस्व की प्राप्ति के लिये एक दूसरे पर आक्रमण करने और एक दूसरे का राज्य नष्ट कर अपने राज्य का विस्तार करने में किंचित् मात्र भी संकेाच नहीं था।
इन महाशक्तियों में उस विश्वास, प्रेम तथा सहयोग का नितांत अभाव था जो इनकी श्रीवृद्धि के लिये आवश्यक था। जब पूर्वेशिया तथा मध्येशिया में तुर्कों की आंधी बह रही थी और देश के देश उस आंधी के समक्ष तिनकों की तरह उड़ रहे थे तब उत्तर भारत की ये महाशक्तियां, परस्पर युद्धरत रहकर निजी एवं राष्ट्रीय शक्ति को क्षीण कर रही थीं। यही कारण था कि खुमांण (द्वितीय) के बाद गुहिलों का प्रभाव क्षीण पड़ा तथा वे दक्षिण-पश्चिमी मेवाड़ तक सीमित हो गये। नवम् शताब्दी के उत्तरार्द्ध में खुमांण तृतीय का उदय हुआ तथा उसने गुहिलों की क्षीण हो चुकी राज्यलक्ष्मी का फिर से उद्धार किया।
खुमांण (तृतीय) का राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव
ई.877 में खुमांण (तृतीय) गद्दी पर बैठा। विभिन्न शिलालेखों एवं ख्यातों में उसे मुकुटमणि, स्वर्ण का दान करने वाला तथा कलिंगों, सुराष्ट्रों, तेलंगों, द्रविड़ों और गौड़ों का विजेता बताया गया है। ये समस्त बातें इस ओर संकेत करती हैं कि उस काल की राष्ट्रीय राजनीति में गुहिलों का विशेष प्रभाव था।
अल्लट द्वारा आहाड़ में राजधानी की स्थापना
जिस समय पूर्वेशिया में तुर्क योद्धा, खलीफाओं का तख्ता पलटकर मध्येशिया में फैल रहे थे, मेवाड़ में अल्लट का शासन था जिसे ख्यातों में आलु रावल कहा गया है। अल्लट, राष्ट्रीय राजनीति में अच्छा प्रभाव रखता था। अल्लट की रानी हरियदेवी, हूण राजा की पुत्री थी जिसने हर्षपुर नामक गांव बसाया। उसने नागदा के स्थान पर आहाड़ को अपनी राजधानी बनाया जिसमें दूर-दूर के व्यापारी रहते थे।
ई.951 में अल्लट ने आहाड़ में वराह भगवान का विख्यात मंदिर बनवाया। इस मंदिर को कर्णाट , मध्यदेश , लाट और टक्क देश के व्यापारियों ने दान दिये। अल्लट ने अपनी भयानक गदा से अपने प्रबल शत्रु देवपाल को युद्ध में मारा। यह निश्चित नहीं है कि देवपाल कहाँ का राजा था किंतु अनुमान है कि अल्लट का समकालीन देवपाल, कन्नौज का राजा था। उसने मेवाड़ पर चढ़ाई की होगी तथा अल्लट द्वारा सम्मुख युद्ध में मार डाला गया होगा।
नरवाहन
अल्लट की मृत्यु के बाद नरवाहन ने अपने पूर्वजों की भांति मेवाड़ राज्य को सुदृढ़ बनाये रखा। चौहानों के साथ मैत्री सम्बन्ध बनाये रखने के लिये उसने चौहान राजा जेजय की पुत्री से विवाह किया। उसकी प्रशस्ति में लिखा है कि वह कलाप्रेमी, धीर, विजय का निवास स्थान और क्षत्रियों का क्षेत्र, शत्रुहन्ता, वैभव का निधि और विद्या की वेदी था।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता