निम्बाज के ठाकुर कल्याणसिंह ने अपने विरोधियों को उत्पीड़ित करने तथा उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाये रखने के उद्देश्य से पंचारिया बावरी को संरक्षण दे रखा था। ठाकुर का संरक्षण मिलने से उसका हौंसला बहुत बुलंद था। उसने बावरियों का बड़ा समूह तैयार कर लिया था जो दूर-दूर तक लूटमार करता हुआ घूमता था और जब लूट में अच्छा माल हाथ लगता था तो किसी जंगल, पहाड़ी या सुनसान इलाके में डेरे गाढ़कर उत्सव मनाता था।
पंचारिया के बावरी रात के समय अचानक किसी गाँव में घुसकर रक्तपात मचा देते। सोई हुई औरतों के पैर काटकर उनमें से चांदी के कड़े निकाल लेते, कानों में पहने हुए गहनों को इस तरह छीनते कि औरतों के कान फट जाते। अक्सर ये लुटेरे, सेठ साहूकारों को पकड़ कर जंगलों में ले जाकर पेड़ों से बांध देते और उनके परिजनों से मनचाही राशि वसूल करते। वे सरे आम गाँवों से गाय, बकरियाँ और भेड़ें पकड़कर ले जाते और उन्हें पकाते-खाते।
इसलिये जब मरुधरानाथ को सूचना मिली कि इस समय पंचारिया बावरी का समूह बागोरिया की पहाड़ी पर बैठा हुआ उत्सव मना रहा है, तो उसने जसा कच्छवाहा को आदेश दिया कि पंचारिया बावरी और उसके उपद्रवी साथियों को पकड़ लाये।
जसा ने बिना कोई समय गंवाये, अपने साथ तेज दौड़ने वाले एक सौ घुड़सवार लिये और बागोरिया पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया। जिस समय जसा वहाँ पहुँचा उस समय बावरी मदिरा के नशे में चूर थे और कालबेलिया नृत्यांगनाओं के साथ कामुक नृत्य कर रहे थे। उन्हें पता ही नहीं लगा कि जसा के घुड़सवारों ने पहाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया है।
जसा ने अनुमान लगाया कि पहाड़ी पर इस समय कम से कम दो-ढाई सौ बावरी मौजूद हैं, शक्ति के बल पर इन बावरियों को पकड़ना संभव नहीं है। इसलिये बुद्धि से काम लेना होगा। उसने अपने दो घुड़सवारों को तत्काल जोधपुर की ओर जाते हुए महाराजा की तरफ दौड़ाया ताकि और सेना मंगवाई जा सके। साथ ही अपने पाँच आदमी जसा को उलझाने के लिये पहाड़ी के ऊपर भेजे।
जब जसा के आदमियों ने पहाड़ी के ऊपर पहुँच जाने का संकेत किया तो जसा ने पहाड़ी के नीचे से एक साथ सौ बंदूकें दागीं। गोलियों की आवाजें सुनकर पंचारिया और उसके बावरियों के होश उड़ गये। ठीक इसी समय जसा के आदमियों ने पंचारिया के सिर पर बंदूकें जा धरीं और उसे आदेश दिया कि जोधपुर दरबार की सेना ने उसे चारों ओर से घेर लिया है, इसलिये भलाई इसी में है कि वह तुरंत आत्मसमर्पण करे और जोधपुर चलकर दरबार बापजी से क्षमा याचना करे अन्यथा सारे बावरी अभी यहीं मार दिये जायेंगे।
पहले तो पंचारिया ने जसा के आदमियों को धमकाया कि वे बावरियों से दूर रहे अन्यथा उन्हें निम्बाज के ठाकुर कल्याणसिंह के कोप का भाजन होना पड़ेगा किंतु जसा के आदमी इस बात पर अड़े रहे कि या तो बावरी आत्मसमर्पण करें या फिर मरने के लिये तैयार हो जायें।
पंचारिया को अनुमान नहीं था कि जसा अपने साथ कितनी सेना लाया है। इसलिये वह दबाव में आ गया। थोड़ी हील हुज्जत के बाद उसने दरबार बापजी की सेवा में चलना स्वीकार कर लिया। जसा के आदेश पर बावरियों ने अपने हथियार पहाड़ी पर रख दिये। जसा के आदमियों ने काम हो जाने की सूचना देने के लिये हवा में गोलियां चलाईं जिनकी आवाज सुनकर जसा अपने बाकी के सिपाहियों के साथ पहाड़ी पर चढ़ गया और बावरियों की कमर में रस्सियां बांध दीं। बावरी यही सोचते रहे कि पहाड़ी के नीचे जोधपुर दरबार की और सेना खड़ी है जबकि जसा के सारे आदमी पहाड़ी पर चढ़ चुके थे।
पहले तो जसा जोधपुर की ओर से सेना आने की आशा में धीरे-धीरे कार्यवाही कर रहा था किंतु जब बावरियों के हथियार रखवा लिये गये और उनकी कमर में रस्स्यिां बांध दी गईं तो वह अपने काम में तेजी ले आया। यद्यपि महाराजा ने उसे आज्ञा दी थी कि बावरियों को पकड़ कर लाया जाये किंतु सौ घुड़सवारों के लिये यह संभव नहीं था कि वह ढाई सौ दुर्दांत लुटेरों को पकड़ कर ले जा सकें। न ही और अधिक समय तक सेना की प्रतीक्षा करना उचित था क्योंकि यदि उनके आने में विलम्ब हुआ तो बावरियों को सैनिकों की वास्तविक संख्या के बारे में पता लग जायेगा और वे रस्सियां तुड़ाकर मारकाट मचा देंगे।
सब बातों पर विचार करके जसा ने अपने आदमियों को आदेश दिया कि सब बावरियों के सिर धड़ से अलग कर दिये जायें। बावरियों ने विरोध करने का भरपूर प्रयास किया किंतु उनका विरोध निरर्थक सिद्ध हुआ। देखते ही देखते पूरी पहाड़ी बावरियों की लोथों से भर गई। कटे हुए सिर इधर-उधर लुढ़क गये। शाम ढलने से पहले जसा ने महाराजा के पास पहुँच कर ढाई सौ बावरियों के मारे जाने की सूचना दी।