भारत की आजादी के बाद छोटी-छोटी रियासतों को ऐसी प्रशासनिक इकाइयों में संगठित करने का कार्य आरम्भ हुआ जो वित्तीय एवं प्रशासनिक रूप से सक्षम हों। सरदार पटेल के नेतृत्व वाले रियासती मंत्रालय द्वारा छोटे राज्यों को अपने निकटवर्ती बड़े राज्यों में मिल जाने अथवा छोटी-छोटी इकाइयों का एकीकरण करने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
महाराणा भूपालसिंह, भारत की स्वतंत्रता से पहले राजपूताना एवं मालवा के शासकों के साथ मिलकर एक संघ इकाई का निर्माण करने में असफल रहे थे किंतु उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। उन्हें स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि यदि यह कार्य राजाओं के स्तर पर नहीं किया गया तो भारत सरकार द्वारा किया जायेगा। तब बनने वाली इकाइयों में राजाओं की हैसियत कुछ भी न रह जायेगी।
महाराणा द्वारा राजस्थान संघ बनाने का प्रयास
महाराणा भूपालसिंह ने 6 मार्च 1948 को एक बार पुनः राजस्थान और गुजरात के शासकों से अपील की कि राजपूताना के चार बड़े राज्यों को छोड़कर शेष सभी राज्य, संघ में संगठित हो जाएं। महाराणा के इस आग्रह का भी राजाओं पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। वस्तुतः राजपूताना के शासकों में अविश्वास की भावना व्याप्त थी।
इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए महाराणा ने अलवर महाराजा को लिखे एक पत्र में उल्लेख किया कि जब भी कार्य करने की बात आती है तो परस्पर संदेह के फलस्वरूप शासक कुछ नहीं कर पाते। इसी अविश्वास की भावना के कारण महाराणा के प्रयास रंग नहीं लाये तथा समस्त राज्य इसी गलतफहमी में जीवित रहे कि उनके राज्य बने रहेंगे और वे निर्बाध रूप से प्रजा पर राज्य करते रहेंगे।
रियासती विभाग द्वारा एकीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ
एक ओर राजा लोग अपने स्तर पर कुछ नहीं कर पा रहे थे और दूसरी ओर रियासती मंत्रालय का डण्डा चलने लगा था। कुछ राजाओं की मूर्खताओं ने रियासती मंत्रालय को तेजी से काम करने के लिये प्रेरित किया। भरतपुर के महाराजा ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया। उसने खुले तौर पर भारतीय नेताओं को भारत विभाजन के लिये उत्तरदायी बताया।
जोधपुर के राजा ने 15 अगस्त 1947 को शोक के प्रतीक आसमानी रंग का साफा पहनकर तिरंगा फहराया। 31 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या हो गई जिसके कारण अलवर नरेश संदेह के घेरे में आ गया। भारत सरकार ने 7 फरवरी 1948 को अलवर नरेश तेजसिंह को दिल्ली बुलाकर कनाट प्लेस पर स्थित मरीना होटल में नरजबंद कर दिया तथा अलवर राज्य का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। राज्य के प्रधानमंत्री खरे को पदच्युत करके दिल्ली में नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद राज्यों के एकीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई। राजपूताने में सबसे पहले 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ अस्तित्व में आया।
महाराणा का संयुक्त राजस्थान में मिलने से इन्कार
जिस समय मत्स्य संघ के निर्माण के लिये वार्त्ता चल रही थी, तब रियासती सचिवालय ने राजस्थान के राज्यों का मध्यभारत और गुजरात के राज्यों के साथ एकीकरण का प्रस्ताव रखा किंतु राज्यों के प्रजामण्डलों एवं शासकों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। 3 मार्च 1948 को कोटा, डूंगरपुर और झालावाड़ के शासकों ने रियासती विभाग के समक्ष प्रस्ताव रखा कि बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, कोटा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक, लावा और कुशलगढ़ को मिलाकर संयुक्त राजस्थान का निर्माण किया जाए।
प्रस्तावित संघ के क्षेत्र के बीच में मेवाड़ राज्य था जो अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रख सकता था। कुछ शासकों के आग्रह पर रियासती विभाग ने मेवाड़ को नये संघ में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया किंतु महाराणा भूपालसिंह तथा दीवान राममूर्ति ने रियासती विभाग को जवाब दिया कि मेवाड़ का 1300 वर्ष पुराना राजवंश अपनी गौरवशाली परम्परा को तिलांजलि देकर भारत के मानचित्र पर अपना अस्तित्व समाप्त नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी कहा कि यदि दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान की रियासतें चाहें तो वे मेवाड़ में अपना विलय कर सकती हैं।
संयुक्त राजस्थान का निर्माण
इस पर रियासती विभाग ने मेवाड़ को छोड़कर दक्षिणी पूर्वी राजस्थान की रियासतों को मिलाकर संयुक्त राजस्थान का निर्माण करने का निश्चय किया। इस संघ में वरिष्ठता, क्षेत्रफल तथा महत्व के आधार पर कोटा के शासक को राजप्रमुख का पद दिया गया किंतु कुलीय परम्परा में बूंदी का शासक कोटा के शासक से उच्चतर था। इसलिये बूंदी के शासक को यह बात सहन नहीं हो सकी कि उस संघ में कोटा शासक राजप्रमुख हो।
अतः बूंदी के शासक महाराव बहादुरसिंह ने मेवाड़ के महाराणा भूपालसिंह से प्रस्तावित संघ में सम्मिलित होने का अनुरोध किया ताकि उसके (बूंदी के) कुलीय गौरव की रक्षा हो सके क्योंकि मेवाड़ के सम्मिलित होने पर मेवाड़ के महाराणा ही राजप्रमुख होंगे किंतु महाराणा ने बूंदी के शासक को भी वही उत्तर दिया जो उन्होंने रियासती विभाग को दिया था।
मेवाड़ महाराणा द्वारा प्रस्तावित संघ में मिलने से मना कर देने के बाद राजस्थान की दक्षिण-पूर्वी रियासतों को मिलाकर संयुक्त राजस्थान का निर्माण कर लिया गया और 25 मार्च 1948 को बी. एन. गाडगिल द्वारा इसका विधिवत् उद्घाटन किया गया। कोटा नरेश को राजप्रमुख, बूंदी नरेश को वरिष्ठ उपराजप्रमुख और डूंगरपुर नरेश को कनिष्ठ उपराजप्रमुख बनाया गया। गोकुललाल असावा को मुख्यमंत्री बनाया गया। इस संघ का क्षेत्रफल 17,000 वर्ग मील, जनसंख्या 24 लाख तथा कुल राजस्व लगभग 2 करोड़़ रुपये था।