‘राजपूताना राज्यों के संघ’ के प्रति महाराणा की बेरुखी की मेवाड़ में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। मेवाड़ प्रजामण्डल के प्रमुख नेता माणिक्यलाल वर्मा, जो उस समय भारतीय संविधान सभा में मेवाड़ के प्रतिनिधि थे, ने दिल्ली से जारी एक वक्तव्य में कहा कि मेवाड़ की 20 लाख जनता के भाग्य का फैसला अकेले महाराणा और उनके दीवान सर राममूर्ति नहीं कर सकते। प्रजामण्डल की यह स्पष्ट नीति है कि मेवाड़ अपना अस्तित्व समाप्त कर राजपूताना प्रांत का एक अंग बन जाए।
प्रजामण्डल के मुखपत्र ‘मेवाड़ प्रजामण्डल पत्रिका’ के 8 मार्च और 15 मार्च 1948 के सम्पादकीय में भी मेवाड़ को प्रस्तावित संघ में विलय करने की मांग का जबर्दस्त समर्थन किया गया किंतु महाराणा अपने निश्चय पर अटल रहे। शीघ्र ही मेवाड़ की परिस्थितियों ने पलटा खाया। मेवाड़ में लोकप्रिय सरकार के निर्माण हेतु मंत्रिमण्डल के गठन को लेकर प्रजामण्डल और मेवाड़ सरकार के बीच गतिरोध उत्पन्न हो गया।
अंत में प्रजामण्डल की बात स्वीकार करके यह गतिरोध समाप्त किया गया तथा यह निश्चित किया गया कि मंत्रिमण्डल में दीवान के अतिरिक्त 7 मंत्री होंगे जिनमें से 4 प्रजामण्डल सेे एवं 2 क्षत्रिय परिषद से होंगे तथा एक का नामांकन महाराणा द्वारा किया जायेगा।
प्रजामण्डल की तरफ से प्रेमनारायण, बलवंतसिंह, मोहनलाल सुखाड़िया और हीरालाल कोठारी को नामजद किया गया। निर्दलीय सदस्य के लिये महाराणा की तरफ से मोहनसिंह मेहता को नामजद किया गया। मेहता उस समय भी वित्तमंत्री का काम देख रहे थे। प्रजामण्डल को यह नाम स्वीकार नहीं हुआ क्योंकि मेहता ने 1942 में शिक्षामंत्री रहते हुए प्रजामण्डल के आंदोलन को कुचलने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस बात को लेकर महाराणा और प्रजामण्डल में फिर से गतिरोध उत्पन्न हो गया। 14 मार्च 1948 को प्रजामण्डल ने एक आवश्यक बैठक बुलाई और उसमें निर्णय लिया कि सुखाड़िया व कोठारी को मौजूदा मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे देना चाहिये तथा शीघ्र ही प्रजामण्डल की महासमिति की असाधारण बैठक बुलाकर राज्य सरकार के विरुद्ध कार्यवाही करने पर विचार विमर्श किया जाना चाहिये।
राज्य सरकार ने प्रजामण्डल के नेताओं को बातचीत करने के लिये आमंत्रित किया। प्रजामण्डल ने मेहता के स्थान पर एडवोकेट जीवनसिंह चौरड़िया का नाम सुझाया। महाराणा ने प्रजामण्डल के प्रस्तावित उम्मीदवार को मंत्री बनाना स्वीकार कर लिया।
राज्य का मुत्सद्दी वर्ग और सामंती वर्ग, प्रजामण्डल की जीत को सहन नहीं कर सका। उन्होंने महाराणा को परामर्श दिया कि मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान में सम्मिलित कर लिया जाये क्योंकि यदि मेवाड़ बड़े राज्य में सम्मिलित हो जाता है तो प्रशासन में मत्स्य संघ की भांति प्रजामण्डल के प्रतिनिधियों के स्थान पर भारत सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों का वर्चस्व रहेगा तथा बड़े राज्य में सम्मिलित होते समय सभी शर्तें रियासती सचिवालय द्वारा निश्चित की जाएंगी।
महाराणा को यह परामर्श उचित लगा। अतः संयुक्त राजस्थान राज्य के उद्घाटन से दो दिन पूर्व, महाराणा ने 23 मार्च 1948 को एक विशेष गजट के द्वारा प्रेमनारायण माथुर को राज्य के प्रधानमंत्री के पद पर पदस्थापित कर दिया तथा उनके साथी मंत्रियों के नामों की भी घोषणा कर दी किंतु उनके शपथ ग्रहण समारोह को कुछ दिन के लिये टाले रखा। महाराणा ने उसी दिन मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान में सम्मिलित करने के अपने निश्चय की सूचना भारत सरकार को भेज दी।
चूंकि ऐन वक्त पर उद्घाटन के कार्यक्रम में परिवर्तन संभव नहीं था, अतः पूर्व निर्णय के अनुसार 25 मार्च 1948 को संयुक्त राजस्थान का विधिवत् उद्घाटन किया गया। मेवाड़ को इसमें सम्मिलित नहीं किया जा सका। भारत सरकार की सलाह पर मंत्रिमण्डल का गठन कुछ दिन के लिये स्थगित कर दिया। एम. एस. जैन ने बी. एल. पानगड़िया के इस तर्क से असहमति दर्शायी है कि जागीरदारों और प्रजामण्डल के कार्यकर्ताओं में झगड़ा हो जाने के कारण महाराणा ने उदयपुर राज्य को संयुक्त राजस्थान में विलय की स्वीकृति दी।