Sunday, December 22, 2024
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15. सवाई जयसिंह के अन्तिम दिन

सवाई जयसिंह का जन्म 3 नवम्बर 1688 को हुआ था। उसने अपना पूरा जीवन उत्तर एवं मध्य भारत के युद्धों के मैदान में व्यतीत किया तथा औरंगजेब से लेकर बहादुरशाह, फर्रूखसीयर तथा मुहम्मदशाह जैसे कट्टर सोच वाले बादशाहों के अधीन रहकर राजनीति की। मुगलों, अफगानों, मराठों और जाटों के बीच राजनीति करना और राजनीति के मैदान में लगातार 45 साल तक टिके रहना कोई सरल काम नहीं था। फिर भी वह धैर्य से टिका रहा। अपमान के घूंट भी उसने बड़ी सहजता से पिये।

वह विद्वान राजा था, कला, संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्रों में उसने बड़े-बड़े अवदान दिये थे किंतु इतना होने पर भी सवाई जयसिंह जैसे शूरवीर एवं कूटनीतिज्ञ राजा के अन्तिम दिन सुख से नहीं बीत पाये। ज्यों ज्यों उसकी आयु बढ़ती गई, त्यों-त्यों मद्य के प्रति उसका आकर्षण बढ़ता गया। वह अत्यधिक मद्यपान करने लगा। इसके साथ ही वह कामवासना से ग्रस्त होकर उत्तेजक औषधियों को सेवन करने लगा। इस कारण उसे रक्त विकार हो गया। 21 सितम्बर 1743 को बीमारी की अवस्था में ही उसका देहान्त हो गया। उस समय उसकी आयु 55 वर्ष से कुछ कम थी। जयपुर के निकट गैटोर में उसका अंतिम संस्कार किया गया।

अठारहवीं सदी का प्रतिनिधि राजा

अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में सवाई जयसिंह उत्तर भारत का महान् राजपूत राजा था। वह मुगल साम्राज्य का प्रमुख सेनानायक और सर्वोत्कृष्ट अधिकारी रहा। अपनी योग्यता से उसने समस्त राजपूत राजाओं का नेतृत्व प्राप्त कर लिया तथा अपनी कूटनीतिक दक्षता से उसने मुगल दरबार में भी महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया। उसने अपने राज्य का विस्तार कर उसे सुसंगठित किया और ढूँढाड़ तथा शेखावटी प्रदेशों में राजनैतिक एकता स्थापित की। अपने विस्तृत राज्य के लिये उसने एक नई राजधानी की आवश्यकता का अनुभव कर ‘जयपुर’जैसे सुन्दर नगर का निर्माण करवाया। उसने अपनी इस नई राजधानी को भारतीय साहित्य और हिन्दू संस्कृति का महान् केन्द्र बना दिया। खगोल शास्त्र में उसकी विशेष रुचि थी और उसने मथुरा, बनारस, उज्जैन तथा जयपुर में वेधशालाएं स्थपित करवा कर वैज्ञानिक अध्ययन तथा खोज को प्रोत्साहन दिया। उसका चरित्र उस युग की समस्त भली-बुरी प्रवृत्तियों तथा समकालीन राजपरिवारों के गुण दोषों का विचित्र मिश्रण था। वह सही अर्थों में अपने समय का प्रतिनिधि राजा था।

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