ई.1927 में पत्नी माणिक कुंवर का निधन हो गया। उस समय केसरीसिंह केवल 55 वर्ष के थे। प्रताप की शहादत के बाद यह दूसरा बड़ा आघात था। एकबारगी तो वे संसार से विरक्त ही हो गये। उन्होंने माणिक कंवर को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा-
अद्यापि त्वां कनकचम्पकदाम गौरीं,
फल्लारंदिनयनां पतिपादरक्ताम्।
देवीं प्रसन्नवदनां रसदिव्यधारां,
प्राणेश्वरीं मम ‘मणिं’ परिचिंतयामि।।
अर्थात् स्वर्णिम-चम्पक मालाल के समान गौर वर्ण वाली, खिले कमल के समान नेत्र वाली, पति के चरणों में अनुरक्त, सदा प्रसन्न रहने वाली, व्यवहार में दिव्य एवं मधुर रस प्रवाहित करने वाली मेरी प्राणाधार ‘मणि’! मैं आज भी तुम्हें स्मरण करता हूँ।
अद्यापि पावनचिरयशस्विनीं त्वां,
शक्ति स्वरूप तपसाहसतेजपुंजाम्।
धीरामुदात्तगुणगौरवमंडितांगीं,
वीरां प्रजापजननीं सततं स्मरामि।।
अर्थात् पवित्र चरित्र वाली, यश धारण करने वाली, शक्ति स्वरूपा, तप, साहस और तेज की निधि, श्रेष्ठ गुणों के गौरव से स्वर्णिम-चम्पक मालाल के समान गौर वर्ण वाली, खिले कमल के समान नेत्र वाली, पति के चरणों में अनुरक्त, सदा प्रसन्न रहने वाली, व्यवहार में दिव्य एवं मधुर रस प्रवाहित करने वाली मेरी प्राणाधार ‘मणि’! मैं आज भी तुम्हें स्मरण करता हूँ।
माणिक कंवर को समर्पित एक पद में उन्होंने लिखा है-
प्रेम पथ पागे वे अभागे प्रान दागे गये
सत्य अनुरागे निज प्रन को निभानों है।
झाँकी दुनिया की देख थाकी अँखियाँ की हौंस
मोह-पट ढाँकी वह ज्योति प्रकटानों है।
आनो है न घूमि फिर स्वारथ की भूमि लूँमि
चूमि पद भव्य दिव्य अंक में विलानों हैं।
लागे नहीं नीके दिन फीके जिंदगी के अब,
जानें दुख जी के उनहीं के पास जानों है।
एक अन्य पद में वे अत्यंत भाव विभोर होकर लिखते हैं-
विकट यह सत्य प्रेम की घाटी।
स्वारथ लागि करें सब प्रीति, यह जगत परिपाटी।।
बिरले वीर पार में पहुँचत, करि तन मन की माटी।
प्रान निछावर किये बिना नहिं, टूटत तम की टाटी।।
प्रेम रूप परमातम पूजे, विलसत भाग्य ललाटी।
‘मणि’ के मोल बिक्यो यह जीवन, इसी नेह की हाटी।।
माणिक कंवर को समर्पित ऐसे ही एक पद में केसरीसिंह लिखते हैं-
सौन्दर्य यौवन लोभ से जो भ्रमर हो गुंजारते।
प्रेम को बदनाम करके स्वार्थ गोता मारते।
आमरण एक अखण्ड रस में प्रेम की धारा बहें।
मन प्रान जीवन एक हो दो देह में बिलग रहें।।
है प्रेम और विकार छल का रंग रूप मिला-जुला।
निःस्वार्थ की आहूति से भेद सब खुल जाता।
मेरी ‘मणी’ के प्रेम का अज हूँ मिला नहीं पार है।
उस सती ‘मणी’ गुणवती पर प्रान ये बलिहार हैं।
ये कविताएं आज के नवयुवकों के लिये बहुत बड़ा संदेश देती हैं। एक ऐसा व्यक्ति जो देश सेवा के लिये रक्त रंजित क्रांति की भूमिका रचता है, जेल जाता है, पुत्र, पत्नी और जामाता को क्रांति की बलिवेदी पर समर्पित कर देता है, वह अपनी पत्नी से कितना प्रेम करता है, इसे जानकर किसी भी सभ्य व्यक्ति की आंखें नम हुए बिना नहीं रह सकतीं। दाम्पत्य जीवन में’सुख का आधार केवल समर्पण है। पति और पत्नी दोनों एक दूसरे के लिये अर्पित और समर्पित रहें, वही जीवन का उल्लास है।
केसरीसिंह की कवितायें उनके और माणिक कंवर के सुखी एवं सरस दाम्पत्य जीवन की प्रमाण हैं। केसरीसिंह द्वारा लिखित पद्यमय आत्म कथा में भी अपनी पत्नी माणिक कुंवर के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है कि पत्नी विरह में तो रामजी भी रो पड़े थे, मेरी तो बिसात ही क्या है!