Saturday, July 27, 2024
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कविताओं में केसरीसिंह

केसरीसिंह बारहठ के निधन पर राजस्थान के अनेक कवियों ने काव्यमय श्रद्धांजलियां लिखीं, जिनमें उनके व्यक्तित्व, कृतित्व तथा महत्व पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। केसरीसिंह बारहठ पर लिखे गीतों की कुछ पंक्तियां इस प्रकार से हैं-

उदयराज उज्जवल ने लिखा है-

अडिग देस अनुराग, पूजारो रजपूत रो।

ताकव तीखो त्याग, करगो सोदो केसरी।।

थिर संपत रजथांन , भ्रातपुत्र संचित विभो

देस हेत बलिदान,  करगो बारहठ केसरी।।

करगो केसरियाह,  केसरिया  जिह कारणे

कांगरेस  करियाह,  भेस तमीणां  भारती।।

लीधो घर सह लूट, सोदे रो सीसोदियो।

हुआ हरी बेपूठ, इसड़ा कसमी सूं अबे।।

रखियो जिकै न राम, इक सांसण हित अनरथी

खा चौरासी गांम, उण लौभी रा आवगा।।

पड़ जासी पौळाह, पात जिकां रा पाड़िया।

रजहीणां रोळाह, कांगरेस दे केहरी।।

रह्यो निरंकुस राह, धुनी सुतंतर धारणी।

पिण्ड स्वारथ परवाह, करी न सोदे केहरी।।

देशनोक के कवि बाहहठ कान्हीदान ने लिखा-

कर गयो  कूच  रजवाट  रो केसरी,

                                                           विधि  आदेस री राख बातां

मिल गई जोत में जोत परमेसरी,

                                                  अमर कर नांव खत्रवाट ख्यातां।

ऊठगो कवीन्द्र आज इण लोक सूं,

                                                 थोक सूं मिलण सुर बिड़द थापी।

सुकवि जा मिल्यो उम्मेद नृप सौख सूं,

                                                        मौख सूं अमरापुर राह मापी।

देख विमाण मन अफसरां अंजसी,

                                                            ऊर्वसी रंभ मिल ऐम भावै।

काव्यकांता पति वीर रस रंजसी,

                                                           गौरवी चित्तौड़ा गीत गावै।।

लेय निज हाथ कवि धजा इण देस री,

                                                         सेस री जाय सुरलीक रोपी।

अमर सहीद प्रताप पितेसरी,

                                                       अमरापुर राव री सभा ओपी।।

ठाकुर अक्षयसिंह रत्नू ने लिखा-

रे गरबीले केसरी, सुजस कथित संसार

तो पर तोर प्रताप पर, अक्षय है बलिहार।

मुग्ध राजनैतिक रसिक, सुजस सुगंध समीर।

केसर सम केसर जहाँ, कुल चारण कशमीर।।

अजौं उपस्थित अपुन में, केसर से नर-नाह।

बीते दिन जाते बिहद, क्यों न उठाते लाहै।।

गौरव पौरुष गुणन के, जगत करै जस जाप।

छुप्यो कौन सौ केसरी, केरो प्रबल प्रताप।।

रह्यो उमगे वीर रस, ओज उमंगे अंग।

रंग इकरंगे केसरी, चारण चंगे रंग।।

मान हानि मढ़ियांह, हीमत चित चढ़ियां हमें।

बीर सरै बढ़ियाहं, कन्दर कढ़ियां केसरी।।

जोबनेर के रावल नरेन्द्रसिंह ने लिखा-

कवि केहर कंठीर, सादो केहर सांपरत

भल केहर बड़वीर, इळ तैं केहर ऊठगो।

पात अणे रजपूत, इळ में मिलसी अणगणित

भोपालां अद्भूत, छैड़े कवण चंरूठिया।

केहर ईहग कार, चित्तौड़े छांडी नहीं।

भलपण हंदो भार, पतां बंस किम पांतरै।।

कवि गाढ़ा करगेस, जोबनेर नरनाथ जो।

फतमल जस किय पेस, करै नजर नरबंद अहै।।

कवि को भ्रात किशोर, किसन पिता कैलास मँझ।

सोदे कुल सिरमोर, कीध सरब कवियांण कज।।

कोर्यो पाहण केर, केहर थाहर कारणे।

भैंटज बब्बर शेर, कीधी नरियंद कर्णसुत।।

सोदा हंदी साख, रहसी जब लग थिर रसा।

दिल सांचे तैं दाख, खांगो नरयंद भेंट कर।।

अलवर के लक्ष्मणस्वरूप त्रिपाठी ने लिखा-

हाड़ौती के हृदय धन, चारण कुल के चन्द

वीर भूमि बन केसरी, जय जय जय स्वच्छन्द।

फूल उठे जिनके स्मरण, पर जननी हृद धाम

ऐसे सुअनों का निधन, रोदन का न मुकाम।                          

अलवर के ही श्री कृष्णदत्त शास्त्री ने लिखा-

हिन्दू  हिन्दी  हिन्द  प्रेम को कभी न  भूला

किंकर्त्तव्य  विमूढ़  बना  जो  कहीं न झूला।

गिरगिट का सा  रंग बदलना जिसे न आया

किया वही जो सदा विमल मानस को भाया।

नोखा के कवि नारायणसिंह सेवाकर ने लिखा-

दिग्गज दरसन शास्त्र में, धरम धुरंधर धीर

पाटक संस्कृत में प्रबल, हुयो केहरी कीर।

केसर केसरिया किया, वीरों वेस बणाव

सुअन सहोदर साथ में, डारण खेले डाव।

यशकर्ण खिड़िया ने लिखा-

केसरि और प्रताप अरु, जोरावर वर वीर

कीन्ह निछावर देश हित, संयुत विभव शरीर।

नन्दकिशोर ‘नवाब’ सांदू ने लिखा-                                    

सदके उस जमीं के पैदा किये हैं जिसने

बारहठ केसरी-ओ-जोरावर-ओ-परताप

छिड़ेगा जब-जब भी, किस्सा ए-शहीदां

अक़ीदत से झुक जायेगी, सारी कायनात।                           

माहंद (अलवर) के ठाकुर बलवंत सिंह बारहठ ने लिखा-

विद्या का बृहस्पति समाज का सुधारक वो,

पिता परताप आज वासी सुरशाला का।

कुंअर सवाईसिंह धमोरा ने लिखा-

ओ सन्देस दियो छो केसर, जागां-जागां अलख जगाय

सुण्यो गणां पण गुण्यो न कोई, हूणी खेल रही हुलसाय।

केलवा (मेवाड़) के ठाकुर रामसिंह राठौड़ ने लिखा-

केहर मरि के अमर भो, करिबै रह्यो न सेस

जिहिं को राजसथान जस, अंकित अचल हमेस।

बैरिस्टर नवाब हामिदअली खान केसरीसिंह बारहठ के मुकदमे में उनकी ओर से पैरवी करते हुए उनकी उत्कट देशभक्ति और व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भरी अदालत में 2 सितम्बर 1914 को उनकी प्रशंसा में नज्म सुनाई। इस मामले में अलीपुर बम केस में श्री अरविन्द की पैरवी करते हए देशबंधु चितरंजन दास द्वारा उनके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में व्यक्त किये भावपूर्ण उद्गारों की घटना की ही जैसे पुनरावृत्ति हुई। केसरीसिंह के त्याग व कष्ट सहिष्णुता का उल्लेख करने वाली वह नज्म इस प्रकार से थी-

यह इरशादे अदालत है- उठो तुम बहस को हामिद

निगाहें मुल्जिमों की भी मगर कुछ तुमसे कहती हैं।

अदब से यह गुजारिश है हुजूर अब गौर से दम भर

इधर देखें कि लफ्जे खून होकर दिल से बहती हैं।

लहू का एक दरिया जो न देखा जायेगा हरगिज

बहेगा इस जमीं पर खूबियां जिस जा पे रहती हैं।

इसी इजलास में याने कहेंगे किस्सा मुल्जिम का,

वो मुल्जिम शायरे यक्ता सबायें जिसको कहती हैं।

वो मुल्जिम उम्र जिसकी देश की खिदमत में गुजरी है

वो मुल्जिम पानी होकर हड्डियां अब जिसकी बहती हैं।

वही मुल्जिम बराबर कैद जिसको हिरासत है,

बदन में हड्डियां जितनी हैं, सब तकलीफें सहती हैं।

वो मुल्जिम केसरी जो जानी-दिल से देश का हामी,

वो जिसकी खूबियां अखलाक का दम भरती रहती हैं।

बहुत शोहरत सुनी है आपके इन्साफ की हमने,

अदालते गुस्तरी की नद्दियां हर सिम्त बहती हैं।

महाराजा के साये में यही नायब रहे हामिद

रियासत की भलाई हो दुआयें हक़ से कहती हैं।

गणेशीलाल व्यास ‘उस्ताद’ ने लिखा है-

रजपूतां रे राज, सिर जूंझार परतापसी।

राणैं पायो राज, सोभा सारी जात में।

माथो देय स्वराज, लीनो अजमेरी पतै।

इण रो हुयो अकाज, सेठी सठग्यो सोग में।।

दोय हुआ परताप, रूढ़े राजस्थान में।

उण रा खावै धाप, इण रा रुलग्या रोळ में।

अकबर दुसमण देस रो, देस भगत परताप।

किस्या देस री बात को, ओ कुल बारठ आप।।

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