बहुश्रुत राजस्थानी कवि, पद्मश्री, राजस्थान रत्न, स्वर्गीय कन्हैयालाल सेठिया की रचना पातळ’र पीथळ सुप्रसिद्ध रचना है जिसमें जंगल में अपने परिवार के कष्टों से दुःखी होकर राणा प्रताप द्वारा अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिये पत्र लिखने, अकबर द्वारा बीकानेर के राजकुमार एवं सुप्रसिद्ध राजस्थानी कवि पृथ्वीराज राठौड़ को बुलाकर उसे ताना देने, पृथ्वीराज द्वारा महाराणा को पत्र लिखकर वास्तविकता जानने एवं राणा द्वारा स्वतंत्र रहने का संकल्प दोहराने के प्रसंग को अत्यंत रोचकता के साथ लिखा गया है। पाठकों की सुविधा के लिये उस कविता को यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है।
कविता का यह पाठ श्री जुगलकिशोर जैथलिया द्वारा सम्पादित कन्हैयालाल सेठिया समग्र (राजस्थानी) से साभार लिया गया है-
अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो
नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुःख जाग्यो
हूं लड्यो घणो हूं सहयो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै,
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैरियां री खात खिंडावण में,
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुःख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षत्र-धरम नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
अै हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसूं भर बोल्यो मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चित्तौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां ? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां? हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,
पण नैण करियो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुओ समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षत्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरियां रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तरुत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चुळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खिसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवै लो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो,
म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवै लो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवै लो,
म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई,
हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तरवार थकां
कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरियां री
छात्यां में रैवेली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्या ऐंठयोड़ी
लोही री नदी बहा दूलां,
हूं अथक लडूलां अकबर स्यूं
उजड्यो मेवाड़ बसा दूलां,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों रो सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।