मरुधरानाथ ने शेखावतजी की सम्मति से गुलाब को फिर से गढ़ में लौटने का आग्रह किया। यह आग्रह वह पहले भी कई बार कर चुका था किंतु इस बार की बात कुछ और थी। उसने गुलाब से कहा कि वह गढ़ में चले और मारवाड़ की महारानी होने का गौरव प्राप्त करे। गुलाब को महारानी का पद प्राप्त करने का तो कोई लोभ नहीं था किंतु उसने विचार किया कि इससे दो लाभ एक साथ हो सकते थे। एक तो शेखावतजी का मान मर्दन और दूसरा उसके पुत्र तेजकरण के मारवाड़ का राजा बनने की संभावनाओं में वृद्धि। इतने बड़े दो लाभों को एक साथ मिलता देखकर गुलाब ने गढ़ में चलना स्वीकार कर लिया। उसी दिन महाराजा बड़ी धूमधाम से गुलाब को गढ़ में ले आया और इस बार उसे अपने महल में ही रखा ताकि हर घड़ी हर पल गुलाब उसकी आँखों के सामने रहे।
अगले ही दिन मरुधरानाथ ने विशेष दरबार आयोजित करके मारवाड़ के आठों मिसलों के ठाकुरों, सामंतों, सरदारों, जागीरदारों और मुत्सद्दियों को आदेश दिया कि अब वे गुलाबराय को महारानी कहकर सम्बोधित करें। महारानी के समान ही आदर प्रदान करें तथा उसे महारानी की तरह मुजरा करें। सामंत, सरदार, ठाकुर और मुत्सद्दीगण, महाराज के इस आदेश से चकित रह गये। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी अकुलीन वंशीय स्त्री को मारवाड़ की महारानी घोषित किया गया हो। वे हैरान होकर एक दूसरे का मुख देखने लगे।
जब काफी देर तक राजदरबार में कोई कुछ नहीं बोला तो आसोप ठाकुर महेशदास कूँपावत उठकर खड़ा हुआ। उसने भरे दरबार में महाराज की ओर देखकर कहा- ‘हम केवल कुलीन वंशीय महारानियों को ही मुजरा करते हैं, गुलाबराय जैसी अकुलीन पासवान के सामने हम किसी भी मूल्य पर नहीं झुकेंगे।’
महाराज, महेशदास के इस दुस्साहस को देखकर हतप्रभ रह गया किंतु उसने कोई उत्तर नहीं दिया। महाराजा की ओर से कोई प्रतिक्रिया न होते देखकर फिर किसी ठाकुर की हिम्मत नहीं हुई कि और कुछ कह सके। महाराजा ने दरबार समाप्त कर दिया किंतु पासवान को महारानी मानने का आदेश यथावत् प्रभावी रहा।
पासवान गुलाबराय को मारवाड़ राज्य में राजमहिषी का सम्मान मिलना, उसके जीवन का चरमोत्कर्ष था। अब उसे ऊपर उठने के लिये और कोई स्थान शेष नहीं बचा था। वह उस शिखर पर थी जहाँ से सारे मार्ग नीचे की तरफ ही जाते थे। ऊपर जाने वाले रास्तों की संभावनाएं समाप्त हो चुकी थीं। जब गुलाबराय इतने उच्च शिखर पर पहुँच गई तो ईर्ष्या भरी सैंकड़ों आँखों ने उसकी ओर देखना आरंभ कर दिया। इनमें से कुछ आँखे उसे तेजी से नीचे की ओर जाते हुए देखने के लिये व्यग्र थीं।