Friday, November 22, 2024
spot_img

89. महाषड़यंत्र

मरुधरपति द्वारा समस्त राज्यकार्य अपनी प्रेयसी गुलाबराय को दे दिये जाने के कारण मुत्सद्दियों में द्वेष भावना तेजी से बढ़ी। वे दिन पर दिन अविश्वसनीय, षड़यंत्री और लालची होते चले गये। यहाँ तक कि वे एक दूसरे के रक्त के प्यासे हो गये और मरुधरपति के प्रति भी समर्पित नहीं रहे। राज्य की ऐसी दुर्दशा होती देखकर मरुधरपति के मन में क्लेश बना रहता था।

एक दिन मरुधरानाथ ने खूबचंद खीची के समक्ष अपना मन खोला-‘प्रेयसी ने सम्पूर्ण राज्य पर अधिकार कर लिया है। यहाँ तक कि हमारे प्राण भी उसके हाथ में हैं। इससे बड़ा अपयश हो रहा है, क्या किया जाये?’

-‘महाराज! यदि राज्य को पासवानजी की दाढ़ से बाहर निकालना है तो आप गढ़ में ही बिराजे रहें, आज के बाद बगीचे में न पधारें। यदि आप मुझे आज्ञा देंगे तो मैं सब व्यवस्था ठीक कर दूंगा।’ खूबचंद ने महाराजा को सांत्वना दी।

-‘ठीक है, तुमसे जो होता हो सो करो।’ महाराज ने कातर नेत्रों से खीची की ओर देखकर कहा।

मरुधरपति ने कहने को कह तो दिया किंतु किसी बात पर अमल करना उसके वश में नहीं था। गुलाब से मिलने के लिये बगीचे में न जाना उसके वश की बात नहीं थी। वह अगले ही दिन बगीचे में जा पहुँचा।

गुलाब ने गढ़ के चप्पे-चप्पे पर अपने आदमी नियुक्त कर रखे थे। इसलिये उसे ज्ञात हो चुका था कि महाराज ने खूबचंद खीची को बुलाकर उससे एकांत में बात की है। गुलाब ने महाराजा को अपने सिर की शपथ देकर पूछा-‘आपने खूबचंद खीची से क्या बात की?’

मरुधरपति के लिये झूठ बोलना संभव नहीं रहा। उसने खूबचंद के साथ हुए सम्पूर्ण वार्त्तालाप को गुलाब के समक्ष दोहरा दिया।

संध्याकाल में जैसे ही मरुधरपति ने गढ़ की तरफ प्रस्थान किया। गुलाब के कारिन्दे खूबचंद खीची की हवेली पर दिखाई दिये। खूबचंद यह जानकर हैरान हुआ कि पासवान ने उसे इसी समय उद्यान में बुलाया है। जब से खूबचंद सिंघवी को मारकर उद्यान के कुत्तों को खिलाया गया था तब से कोई भी मुत्सद्दी असमय उद्यान में नहीं जाता था। खीची चौंका तो अवश्य किंतु वह यह नहीं सोच सका कि महाराज, पासवान को वे सब बातें बता देगा जो बातें खीची ने महाराज से एकांत में कही थीं। इसलिये वह उसी समय उद्यान की ओर चल दिया। जब वह उद्यान में पहुँचा तो गुलाब उसकी ही प्रतीक्षा कर रही थी।

-‘खूबचंदजी! आजकल आप महाराज को बड़ी-बड़ी सलाहें देने लगे हैं। कोई सलाह हमें भी दीजिये।’ गुलाब ने तिक्त वाणी से खूबचंद का स्वागत किया।

-‘हम भला श्रीजी को क्या सलाह दे सकते हैं?’

-‘सलाह देने से कौन रोकता है। अवश्य दीजिये किंतु इस बात का विचार अवश्य रखिये कि आपसे पहले भी एक खूबचंद महाराजा को सलाह दिया करता था।’ पासवान ने त्यौरियां चढ़ा कर कहा।

-‘आपको मुझसे कोई शिकायत है तो खोलकर कहिये किंतु धृष्टता के लिये क्षमा करें, उस खूबचंद और इस खूबचंद में भारी अंतर है। वह मुसाहिब था और यह ठाकुर है। अभी पासवानों में इतना दम नहीं जो ठाकुरों को काटकर कुत्तों के सामने फैंक सकें।’ खीची ने बिगड़कर कहा।

-‘समय खराब नहीं आना चाहिये ठाकुर साहब, वर्ना क्या मुसाहिब और क्या ठाकुर, राज के लिये सब बराबर हैं।’

-‘राज के मुँह लग जाने से पासवान राज नहीं बन जाती।’ खूबचंद ने दांत पीसकर कहा और बगीचे से बाहर चल पड़ा।

खूबचंद ने चाकरों के समक्ष गुलाब का जी भर कर अपमान किया किंतु गुलाब कुछ न कर सकी। सच कह रहा था खीची, मुसाहिब और ठाकुर में अंतर होता है और पासवान के लिये यह संभव नहीं कि किसी ठाकुर को काटकर कुत्तों के सामने फैंक दे।

जब खूबचंद और पासवान के बीच हुआ संवाद ठाकुरों को ज्ञात हुआ तो वे सब मरुधरानाथ पर बिगड़े। यह क्या बात हुई जो महाराज ने खूबचंद के साथ एकांत में हुई बातें पासवान को बता दीं? उधर जब गुलाब के सहायक सरदारों और मुत्सद्दियों को यह ज्ञात हुआ कि ठाकुर मरुधरानाथ के समक्ष जाकर पासवान पर बिगड़े हैं तो मामलत के नये दीवान सवाईसिंह और पासवान के मुख्तियार भैरजी साणी ने मिलकर विचार किया कि मरुधरानाथ को कैद करके युवराज शेरसिंह को तखत पर बैठा दिया जाये।’

शेरसिंह स्वभाव से निरीह और सीधा-सादा व्यक्ति था। उसे न तो राज्य की आवश्यकता थी और न गढ़ की किंतु पिता ने उसे अपनी प्रीतपात्री पासवान की गोद में डाल दिया था जिससे वह राजा का पुत्र होकर भी पासवान का पुत्र कहलाता था। उसके पास इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग न था कि जिस मार्ग पर उसकी माँ चल रही थी, उसी मार्ग पर वह चुपचाप चलता रहे। इस समय मामलत का पूर्व दीवान गोवर्धन खीची, सवाईसिंह चाम्पावत की कैद में था तथा सारे ठाकुर महाराजा के प्रति अविश्वास और रोष से भरे हुए थे। इस प्रकार मरुधरानाथ को इस संकट से उबारने के लिये एक भी सच्चा सहायक उपलब्ध नहीं था।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source