Sunday, November 16, 2025
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डीडवाना-कुचामन जिले के शिलालेख

डीडवाना-कुचामन जिले के शिलालेख : इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।

अमरसर से प्राप्त लेख

स्मृति स्तम्भ अभिलेख, भाषा: देशज

तिथि – 1111 (ई.1699-1700)

विवरण – महाराजा इन्द्रसिंह के काल में डूंगरसी के पुत्र जीवनदास द्वारा एक कूप एवं उद्यान बनवाने का उल्लेख है।

दौलतपुरा से प्राप्त ताम्रपत्र

प्रतिहार भोजदेव का ताम्रपत्र, भाषा: संस्कृत

तिथि – फाल्गुन सुदि 10, 3 (13) वि.सं. 900 (ई.843)

विवरण – ताम्रपत्र में प्रतिहार शासकों की महाराज देवशक्ति से लेकर भोजदेव प्रथम तक की वंशावली दी गई है तथा कहा गया है कि (प्रतिहार राजा) भोज देव के प्रपितामह वत्सराज ने गुर्जरात्रा के दण्डवानक विषय में एक ग्राम वासुदेव भट्ट को दान में दिया था। यह दान भोजदेव के पितामह नागभट्ट के समय तक चालू था तथा भोजदेव के पिता रामभद्र के समय में किसी कारण स्थगित हो गया था। अतः यह दान पुनः आरम्भ किया जाता है। इसमें भोजदेव का उपनाम प्रभास दिया गया है। (संदर्भ, कीलहॉर्न द्वारा ए.ई. खण्ड 5, पृ. 211)

छोटी खाटू से प्राप्त अभिलेख

सैय्यद निजाम बुखारी की दरगाह का अभिलेख, भाषा: अरबी-फारसी

तिथि – धुल-हिज्ज 26 हि. 1080 (7 मई 1670)

विवरण – सैयद निजाम जो लाहौर से आया था, यहाँ चालीस वर्ष रहा तथा सौ वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुआ।

मंगलाना से प्राप्त अभिलेख

अल्तमश गौरी का अभिलेख, भाषा: संस्कृत

तिथि – ज्येष्ठ वदि 11, रविवार वि.सं. 1272 (26.4.1215)

विवरण – सुरत्राण समसदन गोर को योगिनीपुर (दिल्ली) का शासक तथा वलणदेव को रणथम्भोरपुर गढ़ का गढ़पति कहा गया है। वलणदेव के अधीन दधीच वंशीय महामण्डलेश्वर कदवुराज देव के पौत्र एवं पद्मसिंह देव के पुत्र महाराज पुत्र जयत्रसिंह देव के नाम का उल्लेख है। (संदर्भ, रामकरण, आसोपा द्वारा ए.इ. खण्ड 12, पृ. 58 एवं भण्डारकर द्वारा प्रो. रि.आ.स., वे.स. 1906-07, पृ. 40 तथा आसोपा द्वारा इ.ए. खण्ड 41, पृ. 87 पर संपादित)

किणसरिया से प्राप्त अभिलेख

चौहान दुर्लभराज तथा दधिचिक चच्च का अभिलेख, भाषा: संस्कृत

तिथि – वैशाख सुदि 3 (अक्षय तृतीया) रविवार वि.सं. 1056

विवरण – यह लेख परबतसर के उत्तर में 4 मील दूर पहाड़ पर बने कैवायमाता मंदिर से प्राप्त हुआ है। लेख 23 पंक्तियों तथा 26 श्लोकों में पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण हैं। इसकी लिपि उत्तरी वर्णमाला की तथा भाषा संस्कृत है। पंक्ति 22 को छोड़कर सम्पूर्ण लेख पद्यमय है। पंक्ति संख्या 1, 22 तथा 23 नष्ट हैं। कहीं-कहीं अक्षर घिस गये हैं तथा लुप्त हो गये हैं। लेख में वर्ण लेखन सम्बन्धी त्रुटियां भी हैं। लेख के प्रारम्भ में कात्यायनी, काली आदि देवियों की स्तुति की गई है। इसके बाद कहा गया है कि चौहान वंश में शासक वाक्पतिराज हुआ जिसका पुत्र सिंहराज तथा सिंहराज का पुत्र दुर्लभराज था। दुर्लभराज को दुर्लंध्यमेरू तथा रासोसितन्न मण्डल का विजेता कहा गया है। दूसरे भाग में कहा गया है कि दधिचिक वंश में मेघनाथ हुआ जिसकी पत्नी का नाम मसाटा था। इसका उत्तराधिकारी वैरिसिंह था, जिसकी पत्नी का नाम दुन्दा था। वैरिसिंह का उत्तराधिकारी चच्च था जिसने भवानी के स्थानीय मंदिर का निर्माण किया। इस प्रशस्ति का लेखक गौड़ कायस्थ महादेव था जिसका पिता कल्या भी कवि था। (संदर्भ, रामकर्ण आसोपा द्वारा इ.ए.खण्ड 17 पृ. 267 , ए.इं. खण्ड 12 पृ. 59 पर फलक सहित सम्पादित) दुर्गालाल माथुर द्वारा रा.प्रा.अ. खण्ड 1 भाग 1 पृ. 1)

किणसरिया का सती स्मारक अभिलेख, भाषा: संस्कृत

तिथि – ज्येष्ठ सुदि 13, सोमवार वि.सं. 1300

विवरण – कीर्तिसिंह के पुत्र दधिचिक विक्रम की मृत्यु एवं उसकी रानी नैलादेवी के सती होने का उल्लेख है। यह स्मारक उनके पुत्र जगधर ने स्थापित करवाया।

महाराजा अजीतसिंह का कैवाय माता अभिलेख, भाषा: संस्कृत

तिथि – आषाढ़ सुदि शुक्रवार सं. 1768, शाके 1633 (1713)

विवरण – अमात्य खेतसी भण्डारी, उसके पुत्र विजेराज तथा महाराजा अजीतसिंह द्वारा कैवल्य देवालय के सम्मुख श्री भवानी के मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है।

बस्सी से प्राप्त शिलालेख

बस्सी शिलालेख, भाषा: संस्कृत

तिथि – वि.सं. 1189 (ई.1132-33)

विवरण – शिलालेख में चौहान महाराज अजयपाल की मृत्यु एवं उसकी तीन रानियों के सती होने का उल्लेख है। मुख्य रानी का नाम सोमल देवी दिया गया है। ((संदर्भ, इं.आ. 1962-63 पृ. 54 पर निर्दिष्ट)

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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