कतिपय मध्यकालीन चारणों और भाटों की रचनाओं में इस तरह के भाव व्यक्त किये गये हैं कि महाराणा ने जंगलों में निवास के दौरान अनेक दुःख उठाये तथा घास की रोटी खाकर दिन बिताये। इस तरह की रचनाएं महाराणा प्रताप के वीरत्व और स्वातंत्र्यप्रेम को प्रदर्शित करने के भाव से लिखी गई थीं किंतु इन रचनाओं के आधार पर कर्नल टॉड ने अपने ग्रंथ में लिख दिया कि जंगल में प्रताप तथा उसके परिवार को घास के बीजों की रोटी खानी पड़ती थी। जंगली पशु, महाराणा प्रताप के बच्चों के हाथों से घास की रोटी छीनकर ले जाते थे। अपने बच्चों को भूख से रोते देखकर प्रतापसिंह ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने का मन बनाया।
टॉड के इस वृत्तांत में किंचित् भी सच्चाई नहीं है क्योंकि आगे की घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि अकबर, प्रतापसिंह को अपने अधीन लाने या उसे जान से मार देने के लिये इतना व्यग्र था कि वह प्रतापसिंह के विरुद्ध असफल रहने वाले अपने बड़े से बड़े सेनापति को दण्डित कर रहा था। यदि महाराणा प्रताप की तरफ से अकबर की अधीनता स्वीकार करने या संधि करने जैसी रंच मात्र भी बात चली होती तो अकबर का दरबारी लेखक अबुल फजल इस घटना को न केवल अकबरनामा में बढ़ा-चढ़ाकर लिखता अपितु इस तरह लिखता कि सच और झूठ में अंतर करना कठिन हो जाता।
यह भी विचारणीय है कि पहाड़ों में निवास करते समय प्रताप तथा उसके सरदारों के लिये भोजन की कोई कमी नहीं थी। पहाड़ों के बीच उत्तर में कुंभलगढ़ से लेकर दक्षिण में ऋषभदेव से भी आगे तक का 144 किलोमीटर लम्बा और पूर्व में देबारी से लेकर पश्चिम में सिरोही की सीमा तक लगभग 112 किलोमीटर चौड़ा, पहाड़ी प्रदेश महाराणा के अधिकार में था।
इस क्षेत्र में सैंकड़ों गांव बसे हुए थे तथा मक्का, गन्ना एवं चावल की पर्याप्त खेती होती थी। इस पूरे क्षेत्र में पशुपालन, बागवानी तथा अन्य उत्पादक गतिविधियां होती थीं। महाराणा के पास धन की कमी नहीं थी जिसके द्वारा, गोड़वाड़, ईडर, सिरोही एवं मालवे की तरफ से अन्न एवं खाद्य सामग्री लाई जाती थी। पहाड़ी क्षेत्र में फलदार वृक्षों की भरमार थी।
अतः, प्रताप के बच्चों ने कभी घास की रोटी खाई, या वे भूखे मरे और उनके रुदन को देखकर प्रताप कमजोर पड़ा, ऐसा केवल भाटों एवं कवियों की काल्पनिक उड़ानें हैं जिन्हें टॉड ने सही समझकर लिख दिया है। बीकानेर के राठौड़ पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप के जंगलों में निवास करने का वर्णन, अकबर के सम्मुख इन शब्दों में किया था-
धर बांकी दिन पाधरा मरद न मूकै मांण।
घणां नरिंदां घेरियौ रहै गिरंदां राण।।
अर्थात्- जिसकी भूमि अत्यंत विकट (पहाड़ों वाली) है, जिसके दिन अनुकूल हैं, जो पुरुष अपने अभिमान को नहीं छोड़ता, वह राणा बहुत से राजाओं से घिरा हुआ, पहाड़ों में रहता है।