खीची हाथ नहीं आया और सवाईसिंह ने उसे अपनी हवेली में बैठा लिया, इस अपमान से गुलाब बुरी तरह तिलमिला गई। सवाईसिंह नित्य ही दरबार में आकर उसके और महाराजा के समक्ष अनभिज्ञता का नाटक करता रहा और खीची को अपनी हवेली में लिये बैठा रहा। इस पर गुलाब ने भी सवाईसिंह के साथ नाटक खेलने का निश्चय किया। उसे वह मंत्र मिल गया था जिसके बल पर सर्प को बिल से बाहर निकाला जा सकता था। गुलाब ने सवाईसिंह को दरबार में बुलाकर पूछा-‘क्यों ठाकरां! कुछ पता लगा कि खीची को जमीन खा गई या आकाश निगल गया?’
-‘क्या बताऊँ हुकम! कमबख्त कहीं मिलता ही नहीं। सब जगह सिपाही भेजकर देख लिये।’ सवाईसिंह ने गर्दन नीची करके जवाब दिया।
-‘आपको तो खीची नहीं मिला किंतु हमें मिल गया है।’
-‘कहाँ मिला हुकम!’ सवाईसिंह ने बनावटी आश्चर्य के साथ पूछा।
-‘आपकी हवेली में।’
गुलाब के जवाब से सवाईसिंह सहम गया। उसने एक बार गुलाब के चेहरे की तरफ देखा और फिर गर्दन झुका ली। मरुधरानाथ इस पूरे संवाद से विरक्त होकर बैठा था।
-‘आपने गोवर्धन खीची को अपने हवेली में रख तो लिया है किंतु यदि वह आपकी हवेली में जहर खा लेता है या शस्त्र से आत्मघात कर लेता है तो फिर उसे मैं आपसे ही प्राप्त करूंगी।’ गुलाब ने आवेशित होकर कहा।
सवाईसिंह कुछ न बोला। थोड़ी देर बाद महाराज को मुजरा करके बाहर आ गया। बीस दिन तक वह दरबार में नहीं गया। महाराजा ने भी उसे नहीं बुलवाया। इक्कीसवें दिर गुलाब ने सवाईसिंह की हवेली पर गोवर्धन खीची के लिये एक घोड़ा भिजवाया और और कहलवाया कि बेहतर होगा खीची देश छोड़ कर भिक्षाटन के लिये निकल जाये। उस समय सवाईसिंह हवेली में नहीं था। इसलिये खीची उससे बिना मिले ही घोड़े पर बैठकर रवाना हो गया। जब वह चार कोस दूर चला गया तब सवाईसिंह को इस बात की जानकारी हुई।
सवाईसिंह ने चार प्रतिष्ठित सरदारों को तुरंत अपनी हवेली पर बुलवाया और उनसे कहा-‘पासवान गोवर्धन खीची को बिना अपराध की सजा दे रही है। ये हमारे सगे हैं और हमारे भाइयों में इनकी लड़की ब्याही हुई है। इसलिये इन्हें जाने न दें। आप लोग महाराज और पासवान से निवेदन करके उन्हें वापस बुला लें।’
सरदार, खीची को तो पसंद करते थे किंतु सवाईसिंह की हरकतों से प्रसन्न नहीं थे। इसलिये उन्होंने चिढ़कर जवाब दिया-‘यदि खीची ने अपराध किया है तो सजा देने के लिये महाराजा समर्थ हैं, वे सजा देंगे। यदि खीची निर्दोष हुआ तो कल प्रातः हम आपके साथ दरबार में उपस्थित होकर खीची को फिर से दरबार में बुला लेंगे। आप भी कल सूर्योदय होते ही दरबार में पधारें।’
जब सरदार अपनी हवेलियों को चले गये तब सवाईसिंह ने नई चाल खेली। वह हर प्रकार से महाराजा का सत्यानाश करना चाहता था। वह एक क्षण के लिये भी नहीं भूल पाता था कि महाराजा ने उसके दादा देवीसिंह चाम्पावत को गढ़ में कैद करके मौत के मुँह में धकेल दिया था। इसलिये वह महाराजा का अनिष्ट करने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देता था। फिर यह तो उसे बड़ा मौका हाथ लग गया था।
सूर्योदय होते ही सवाईसिंह महाराजा के पास जा पहुँचा और ड्यौढ़ीदार से जाकर बोला-‘मेरा महाराज से तुरंत मिलना अत्यंत आवश्यक है।’
ड्यौढ़ीदार ने भीतर जाकर मरुधरानाथ से निवेदन किया-‘चाम्पावत सरदार सवाईसिंह तुरंत मिलना चाहते हैं।’
मरुधरानाथ अभी दैनिक कार्यों से निवृत्त नहीं हुआ था फिर भी उसने चाम्पावत को अपने राज्य का प्रधान जानकर उसे तत्काल महल के भीतर बुलवा लिया।
-‘अन्नदाता! सारे सरदार आपको कैद करने आ रहे हैं। वे लोग आपको कैद करके किसी दूसरे को राजा बनायेंगे। वे अब पहुँच ही रहे होंगे।’ सवाईसिंह ने महाराजा को मुजरा किये बिना ही, एक साँस में पूरा वाक्य बोल डाला ताकि महाराजा को लगे कि प्रधान इस समय बदहवास है तथा अपने आपे में नहीं है। प्रधान को इस हालत में देखकर मरुधरानाथ भौंचक्का रह गया।
राजा से यह निवदेन करने के बाद सवाईसिंह ने पासवान के पास जाकर उसे खम्मा घणी करके निवेदन किया-‘सब सरदार राजा को कैद कर रहे हैं और आपको भी तलवार से काट देंगे। अब वे आते ही होंगे।’ राजा और पासवान अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर ही रहे थे कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चारों सरदार, गोवर्धन खीची के सम्बन्ध में बात करने, लगभग बीस आदमियों सहित महल की ड्यौढ़ी पर पहुँच गये।
ड्यौढ़ीदार ने महाराजा को सूचित किया कि कई बड़े सरदार लगभग बीस आदमियों को लेकर आये हैं और आपके दर्शनों की अनुमति चाहते हैं। इस पर राजा और पासवान को सवाईसिंह की बात का विश्वास हो गया और उन्होंने अपने महल के दरवाजे बंद करवा लिये तथा सरदारों से यह कहकर अंदर आने से मना करवा दिया कि मौसर (मिलने का समय) नहीं है। सरदार निराश होकर वहाँ से चल दिये। मार्ग में उन्हें सवाईसिंह चाम्पावत महाराजा के महल की ओर आता हुआ मिला। सरदारों ने सोचा कि यह हमारे बुलाने पर ही आया है। इसलिये उन्होंने सवाईसिंह से कहा कि महाराजा ने इस समय तो मिलने से मना कर दिया है, इसलिये संध्याकाल में दरबार से बात करेंगे।
सवाईसिंह ने सरदारों की यह बात सुनकर बड़ा आश्चर्य प्रकट किया-‘यह तो महाराज ने आप लोगों का बड़ा अपमान किया। वह संभवतः इसलिये नाराज हैं क्योंकि पासवान के आदेश से खीची राज्य छोड़कर जा रहा था और आप लोग उसे बुला लाये।’
सवाईसिंह की यह बात सुनकर सरदारों के चेहरे लटक गये। उन्होंने सवाईसिंह से पूछा-‘अब क्या करना चाहिये?’
-‘इससे तो अच्छा यह है कि खीची पहले की तरह मेरी हवेली में रहे।’
सरदारों ने सवाईसिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और गढ़ से बाहर आकर गोवर्धन खीची को सवाईसिंह के हवाले कर दिया।
कुछ दिनों बाद खूबचंद ने कूँपावत आदि सरदारों को साथ लेकर सवाईसिंह की दुष्टता की सारी बात महाराज को कह सुनाई। मरुधरानाथ सवाईसिंह की यह हरकत देखकर स्तम्भित रह गया किंतु वह अपने इस उद्दण्ड और षड़यंत्री सरदार के विरुद्ध न तो कुछ करने की स्थिति में था और न उसने कुछ किया। खीची फिर से सवाईसिंह की हवेली में जाकर बैठ गया।