सवाईसिंह चाम्पावत अब भी मारवाड़ राज्य का प्रधान तथा पासवान का खास बना हुआ था। वह इस प्रकार कार्य करता था कि महाराजा तथा पासवान उसे राज्य का हितैषी समझते रहें किंतु उसके कार्यों से प्रजा, सरदार तथा मुत्सद्दी आदि समस्त जन, एक-एक करके मरुधरानाथ एवं पासवान के शत्रु हो जायें। मरुधरानाथ ने उसके द्वारा तालपुरों के विरुद्ध दिखाई गई वीरता के पुरस्कार स्वरूप अपना प्रधान बनाया था। पासवान को उसने यह कहकर अपने पक्ष में कर रखा था कि समय आने पर वह उसके दत्तक पुत्र शेरसिंह को मारवाड़ राज्य का टीका दिलवायेगा।
मराठों को खण्डनी चुकाने के नाम पर सवाईसिंह ने तरह-तरह के हथकण्डे अपनाकर लगभग पूरे मारवाड़ से दण्ड वसूल किया। इस दण्डराशि में से वह तीन हिस्से तो धूर्त्तता पूर्वक स्वयं रख लेता था और एक हिस्सा महाराजा को दे देता था। मारवाड़ राज्य में ब्राह्मणों से कभी भी कर या दण्ड नहीं लिया जाता था। जयप्पा सिन्धिया के समय में भी वह माफ था। ब्राह्मणों के पास जयप्पा सिन्धिया का भी अभय-पत्र था। इन सब बातों के उपरांत भी सवाईसिंह ने जालौर तथा पाली की तरफ के पालीवाल जमींदारों से कर तथा दण्ड वसूल करने के आदेश दिये।
इस पर ब्राह्मणों का एक प्रतिनिधि मण्डल जोधपुर आकर राज्य के मामलत के दीवान सवाईसिंह से मिला और उससे प्रार्थना की कि ब्राह्मणों से कर एवं दण्ड वसूल नहीं किया जाये। सवाईसिंह ने उन्हें भिखारी और मंगते कहकर अपमानित किया तथा बुरी तरह डपट कर भगा दिया। साथ में उन्हें यह चेतावनी भी दी कि तुम लोगों ने यदि पासवान से या महाराजा से मिलने की चेष्टा की तो जीवित ही अपने घरों को नहीं लौट सकोगे।
इस गहन अपमान के बाद ब्राह्मणों का प्रतिनिधि मण्डल जोधपुर में और किसी से मिलना निरर्थक समझ कर, निराश हो वापस लौट गया। छः हजार पालीवाल ब्राह्मणों ने सवाईसिंह के इस आदेश के विरुद्ध उपद्रव खड़ा किया और जालौर परगने के कई गांवों में चांदनी का आयोजन किया। तीन सौ ब्राह्मणों ने अपनी ढाई सौ औरतों, बच्चों, गायों और बछड़ों के पेट में कटार भौंककर मौत को गले लगाया। चारों ओर हाहाकार मच गया परंतु सरकारी कारिंदों ने उनकी बात नहीं सुनी। उनके बच्चों से कठोरता से कर वसूल किया गया।
सवाईसिंह ने अपने सगे सम्बन्धियों को तो राज्य में उन्नति करने के विपुल अवसर प्रदान किये तथा अन्य ठाकुर एवं सामंत जो उसके रिश्ते में नहीं थे, उनकी मृत्यु होते ही उसके वंशजों को चाकरी से हटाकर उनकी जागीरें तागीर करवा दीं। जो ठाकुर कर नहीं चुका पाते थे, उनकी जागीरों को तागीर होने से कोई नहीं बचा सकता था। इतना ही नहीं, सवाईसिंह ने कुछ अच्छी जागीरें हड़पने की नीयत से कई सरदारों की हत्या करवा दी।
जब कई सरदारों की हत्या हो गई या उनकी जागीरें तागीर कर ली गईं हरिसिंह कूँपावत, रतनसिंह कूँपावत, महेशदास का पुत्र विरदीसिंह मेड़तिया तथा फतहसिंह चाम्पावत आदि सरदार, सवाईसिंह के विरुद्ध लामबद्ध हुए। इन लोगों ने इस्माईल बेग को अपने साथ लेकर पासवान से बात की और उससे कहा कि सवाईसिंह के दिलवाने से आपके लड़के को राज्य नहीं मिलेगा। हम लोग जिसे राज देंगे वही राज्य का स्वामी होगा। आपने हम लोगों की जागीरें जब्त कर लीं इसलिये हम यहाँ से जा रहे हैं। आप, भैरजी, महाराजा और सवाईसिंह मिलकर कैसा राजकाज कर रहे हैं, हम देख रहे हैं!
असंतुष्ट सरदारों ने अपने दस हजार राजपूतों को एकत्रित कर लिया और राज्य छोड़कर जाने का विचार करने लगे। इस पर राजा ने खूबचंद सिंघवी को सरदारों को समझाने-बुझाने के लिये भेजा लेकिन वह तो पहले से ही सरदारों की तरफ था। जब राजा को यह रहस्य ज्ञात हुआ तो राजा अकेला ही हरिसिंह कूँपावत के यहाँ मिलने चला गया। वहाँ और भी सरदार थे। मरुधरानाथ चार घड़ी तक वहाँ रहा। काफी देर तक वार्त्तालाप होता रहा। मरुधरानाथ ने सरदारों को समझाने का प्रयास किया किंतु सरदारों की एक ही मांग थी कि सवाईसिंह चाम्पावत ने जिन ठाकुरों की जागीरें तागीर की हैं या तो उन्हें बहाल किया जाये या फिर हमें राज्य छोड़कर जाने की अनुमति दी जाये।
महाराजा अपने प्रधान द्वारा तागीर की गई जागीरें बहाल करने का वचन देने की स्थिति में बिल्कुल नहीं था। वह जानता था कि यदि किसी ने कोई त्रुटि की हो तो उसका प्रतिकार किया जा सकता है किंतु यह तो मक्कार की मक्कारी है, इसका प्रतिकार भला कैसे किया जा सकता है! सवाईसिंह के इस कार्य में गुलाब की भी पूरी सहमति है। अन्यथा सवाईसिंह यह कार्य कदापि नहीं कर सकता था। गुलाब ठाकुरों की जागीरें बहाल करने के लिये किसी भी प्रकार सहमत नहीं होगी। इसलिये जब चार घड़ी के विचार विमर्श का कोई परिणाम निकलता नहीं देखा तो मरुधरपति ने अपने सरदारों से कहा-‘मुझे मारकर कहीं भी जाना।’ इतना कहकर महाराजा वहाँ से उठकर चला गया।