राजस्थान की जलवायु मानसूनी है। इस कारण राजस्थान में सर्दी, गर्मी तथा वर्षा की अलग-अलग ऋतुएँ होती हैं। गर्मी की ऋतु सबसे बड़ी, सर्दी की उससे छोटी और वर्षा की ऋतु सबसे छोटी होती है।
किसी भी क्षेत्र में मौसम की औसत दशाओं को जलवायु कहा जाता है। मौसमी दशाओं में किसी क्षेत्र का तापमान, वायुदाब, वर्षा, आर्द्रता आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
मौसमी दशाओं का निर्माण उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति, समुद्र तट से दूरी, समुद्र तल से ऊँचाई, धरातलीय स्वरूप, जलीय भागों की स्थिति, वायु दिशा एवं गति आदि से निर्धारित होता है। सामान्यतः समुद्र तल से लगभग 300 फुट ऊपर जाने पर तापमान में 1 0 सेंटीग्रेड की गिरावट आती है।
राजस्थान की जलवायु – मुख्य ऋतुएँ
(1) ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु में तेज गर्मी पड़ती है। पश्चिमी राजस्थान में दिन का तापमान 400 से 480 सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। गर्म हवायें चलने लगती हैं जिन्हें लू कहते हैं। इस समय वातावरण में आर्द्रता 1 प्रतिशत से भी कम रह जाती है। गर्मी की यह ऋतु अन्य ऋतुओं से अधिक लम्बी होती है जो मार्च से आरंभ होकर जून-जुलाई तक चलती है। सर्वाधिक गर्मी मई-जून माह में होती है।
रेगिस्तानी प्रदेश की रातें शीतल व सुहावनी होती हैं। गर्मी के कारण पश्चिमी राजस्थान के भेड़ बकरी आदि पशु पानी की तलाश में कुछ समय के लिये मालवा क्षेत्र के लिये प्रस्थान करते हैं।
पश्चिमी राजस्थान में अप्रैल से जून तक तेज हवायें व आंधियां चलती हैं। इनकी अधिकतम गति 140 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है। इस के मार्ग में वृक्षों की कमी होने के कारण करोड़ों टन मिट्टी हवा के साथ बहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है। इससे मरुस्थलीकरण को बढ़ावा मिलता है।
(2) वर्षा ऋतु
मध्य जून से वर्षा ऋतु आरंभ हो जाती है जो मध्य सितम्बर तक चलती है। राज्य में वर्षा का औसत 57.51 सेमी है जिसका वितरण 18.5 सेमी से 95.0 से.मी. के मध्य है। वर्ष 2013 में राजस्थान में 63.75 सेमी तथा वर्ष 2013 में 57.51 सेमी वर्षा हुई। राज्य में होने वाली कुल वर्षा का 34 प्रतिशत जुलाई माह में तथा 33 प्रतिशत अगस्त माह में होता है।
प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र एशिया के वर्षा रहित भागों के निकट स्थित है जिसके कारण वर्षा की मात्रा तथा अवधि कम होती है। बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिणी-पूर्वी मानसूनी हवाएं उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ती हैं किंतु बीच में अरावली पर्वत माला इन हवाओं को रोक लेती है जिससे प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है।
पश्चिमी क्षेत्र में जो मानसून पहुँचता है उसे रोकने के लिये इस भाग में पर्याप्त उच्च पर्वत शृंखला नहीं है। इस कारण मानसूनी हवाओं से पश्चिमी क्षेत्र में प्रतिवर्ष औसतन 120 से 150 मिलीमीटर तक ही वर्षा होती है।
जैसलमेर जिले में वर्षा का वार्षिक औसत मात्र 185 मिलीमीटर है। पश्चिमी भाग की अपेक्षा दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में अधिक वर्षा होती है। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा का औसत कहीं पर 600 मिलीमीटर तो कहीं पर 950 मिलीमीटर तक है।
बांसवाड़ा जिले में सर्वाधिक 950.3 मिलीमीटर वर्षा होती है। मई से सितम्बर तक तूफान आते हैं जिनमें तेज हवाओं के साथ तेज पानी बरसता है। ये तूफान पश्चिमी क्षेत्र की अपेक्षा दक्षिणी-पूर्वी प्रदेश में अधिक आते हैं।
कभी-कभी ओला वृष्टि भी होती है। राजस्थान में प्रतिवर्ष औसतन 29 दिन वर्षा होती है। जिला स्तर पर सर्वाधिक 40 दिन झालावाड़ में, 38 दिन बांसवाड़ा में तथा सबसे कम 5 दिन जैसलमेर में होती है।
अधिकतम वर्षा वाले जिले
राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाले जिले बांसवाड़ा (950.3 मि.मी.), बारां (873.8 मि.मी.), सवाईमाधोपुर (873.4 मि.मी.), झालावाड़ (844.3 मि.मी.), चित्तौड़गढ़ (841.5 मि.मी.) हैं।
न्यूनतम वर्षा वाले जिले: राज्य में न्यूनतम वर्षा वाले जिले जैसलमेर (185.5 मि.मी.), गंगानगर (226.4 मि.मी.), बीकानेर (243.0 मि.मी.), बाड़मेर (265.7 मि.मी.), हनुमानगढ़ (273.5 मि.मी.) हैं।
(3) शीत ऋतु
अक्टूबर से फरवरी तक सर्दियों का मौसम होता है। पश्चिमी राजस्थान में दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की अपेक्षा अधिक सर्दी पड़ती है। रात्रि में तापमान दो से तीन डिग्री सेंटीग्रेड तक उतर आता है।
दिसम्बर व जनवरी कठोर सर्दी के महीने होते हैं। राज्य के उत्तरी भाग में जनवरी माह का औसत तापमान 120 सेंटीग्रेड तथा दक्षिणी भाग में 16 0 सेंटीग्रेड रहता है। जनवरी माह में पश्चिमी विक्षोभों से राजस्थान में थोड़ी-बहुत वर्षा होती है, जिसे मावठ (मावट) कहते हैं।
राजस्थान की जलवायु – राज्य के जलवायु प्रदेश
(1) शुष्क जलवायु प्रदेश
यह क्षेत्र थार रेगिस्तान का हिस्सा है। इसमें जैसलमेर जिला, बीकानेर जिले का पश्चिमी भाग, गंगानगर जिले का दक्षिणी भाग, बाड़मेर जिले का उत्तरी भाग, जोधपुर जिले की फलौदी तहसील का पश्चिमी भाग सम्मिलित है। यहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 10 से.मी. से 20 से.मी. के बीच रहता है। ग्रीष्म में औसत तापमान 320 से 360 सेंटीग्रेड रहता है।
(2) अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश
इस क्षेत्र में वर्षा अनिश्चित, असमान तथा तूफानी होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 20 से.मी. से 40 से.मी. रहता है। ग्रीष्म ऋतु में तापमान 32 0 से 36 0 सेंटीग्रेड रहता है। इस क्षेत्र में श्रीगंगानगर, बीकानेर, बाड़मेर व जोधपुर का अधिकांश भाग, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, पाली तथा नागौर जिले व जालोर का पश्चिमी भाग आता है।
(3) उपआर्द्र जलवायु प्रदेश
इस क्षेत्र के अंतर्गत अलवर, जयपुर तथा अजमेर जिले, जालोर, सीकर, झुंझुनूं व पाली जिले के पूर्वी भाग तथा सिरोही, टोंक एवं भीलवाड़ा के उत्तरी पश्चिमी भाग सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में वर्षा का वार्षिक औसत 40 से 60 से.मी. तक रहता है। ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान 280 से 340 सेंटीग्रेड रहता है।
(4) आर्द्र जलवायु प्रदेश
इस क्षेत्र में अच्छी वर्षा होती है, वर्षा का वार्षिक औसत 60 से 80 सेमी. तक होता है। गर्मी में औसत तापमान 32 0 से 34 0 सेंटीग्रेड रहता है तथा सर्दी में 14 0 से 17 0 सेंटीग्रेड रहता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, धौलपुर, भरतपुर जिले, चित्तौड़गढ़ जिले का उत्तरी भाग, व टोंक जिले का दक्षिणपूर्वी क्षेत्र आता है।
(5) अतिआर्द्र जलवायु प्रदेश
इस क्षेत्र में वर्षा का वार्षिक औसत 80 से 95 सेमी. तक है। ग्रीष्म ऋतु में भीषण गर्मी तथा शीतऋतु में कड़ाके की ठण्ड होती है। इस क्षेत्र में झालावाड़ एवं बांसवाड़ा जिले, उदयपुर जिले का दक्षिण-पश्चिमी भाग, कोटा जिले का दक्षिण पूर्वी भाग तथा आबू पर्वत के समीपवर्ती क्षेत्र आते हैं।
राजस्थान की जलवायु – कृषि जलवायु क्षेत्र
राजस्थान में 9 कृषि जलवायु क्षेत्र हैं। चूंकि जलवायु का मिट्टी की संरचना पर व्यापा असर पड़ता है इसलिये प्रत्येक कृषि जलवायु क्षेत्र की अपनी अलग मिट्टी है। इनका परिचय हम राजस्थान एक दृष्टि में अलग से दे चुके हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता