बारहवीं शताब्दी ईस्वी में अफगानिस्तान के गजनी नामक शहर में एक नवीन राजवंश का उदय हुआ जिसे गौर वंश कहा जाता है। गौर का पहाड़ी क्षेत्र गजनी और हेरात के बीच में स्थित है। गौर प्रदेश के निवासी गौरी कहे जाते हैं। ई.1173 में गयासुद्दीन गौरी ने स्थायी रूप से गजनी पर अधिकार कर लिया और अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन गौरी को वहाँ का शासक नियुक्त किया। यही शहाबुद्दीन, भारत में मुहम्मद गौरी के नाम से जाना गया।
मुहम्मद गौरी ने ई.1175 से ई.1206 तक की अवधि में महमूद गजनवी की भांति भारत पर कई आक्रमण किये तथा और सम्पूर्ण उत्तर-पश्चिमी भारत को रौंद डाला। आधुनिक भारतीय इतिहासकारों ने भारत पर मुहम्मद गौरी द्वारा किए गए आक्रमणों के कई उद्देश्य बताए हैं। इतिहासकारों का मानना है कि मुहम्मद गौरी पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में शासन कर रहे महमूद गजनवी के वंश के अमीरों का नाश करना चाहता था ताकि भविष्य में मुहम्मद गौरी के साम्राज्य को कोई खतरा नहीं हो।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना करके इतिहास में अपना नाम अमर करना चाहता था। वह भारत की असीम धन-दौलत को प्राप्त करना चाहता था। अनेक इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद गौरी कट्टर मुसलमान था, इसलिये वह भारत से बुतपरस्ती अर्थात् मूर्तिपूजा को समाप्त करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था।
इस प्रकार मुहम्मद गौरी द्वारा भारत पर आक्रमण करने का कोई एक कारण नहीं था। उसके आक्रमणों के पीछे के राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक कारण बहुत स्पष्ट थे। इसलिए मुहम्मद गौरी अपने जीवन के 30 वर्षों तक इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति में लगा रहा।
बहुत से इतिहासकार कहते हैं कि मुहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम सत्ता की नींव रखी किंतु वास्तविकता यह है कि मुहम्मद गौरी के भारत-आक्रमणों के बहुत पहले से सिंध, मुल्तान, पंजाब और नागौर आदि क्षेत्रों में छोटे-छोटे मुसलमान शासक शासन कर रहे थे।
इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-
जिस समय मुहम्मद गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण किया, उस समय उत्तर भारत में चार प्रमुख हिन्दू राजा शासन कर रहे थे। इनमें से पहला था दिल्ली तथा अजमेर के चौहान राज्य का राजा पृथ्वीराज, दूसरा था कन्नौज के गहड़वाल राज्य का राजा जयचंद, तीसरा था बिहार के पाल वंश का राजा गोविंदपाल तथा बंगाल में सेन वंश का राजा लक्ष्मण सेन।
इन समस्त राज्यों में परस्पर फूट थी तथा ये परस्पर संघर्षों में व्यस्त थे। पृथ्वीराज तथा जयचंद में वैमनस्य चरम पर था। दोनों राजा एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे। दक्षिण भारत भी बुरी तरह बिखरा हुआ था। गुजरात में चौलुक्य, देवगिरि में यादव, वारंगल में काकतीय, द्वारसमुद्र में होयसल तथा मदुरा में पाण्ड्य वंश का शासन था। ये भी परस्पर युद्ध करके एक दूसरे को नष्ट करके अपनी आनुवांशिक परम्परा निभा रहे थे।
सामाजिक दृष्टि से भी भारत की दशा बहुत शोचनीय थी। उचित राजकीय संरक्षण एवं उचित आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शन के अभाव में समाज का नैतिक पतन हो चुका था। शत्रु से देश की रक्षा और युद्ध का समस्त भार राजपूत जाति पर था। शेष प्रजा इससे उदासीन थी। शासकों को विलासिता का घुन खाये जा रहा था। राष्ट्रीय उत्साह पूर्णतः विलुप्त था। कुछ शासकों में देश तथा धर्म के लिये मर मिटने का उत्साह था किंतु वे परस्पर फूट का शिकार थे। स्त्रियों की सामाजिक दशा, उत्तर वैदिक काल की अपेक्षा काफी गिर चुकी थी।
यद्यपि महमूद गजनवी भारत की आर्थिक सम्पदा को बड़े स्तर पर लूटने में सफल रहा था तथापि कृषि, उद्योग एवं व्यापार की उन्नत अवस्था के कारण भारत फिर से संभल गया था। राजवंश फिर से धनी हो गये थे और जनता का जीवन साधारण होते हुए भी सुखी एवं समृद्ध था।
इस समय भारतीय समाज में हिन्दू धर्म के शैव तथा वैष्णव सम्प्रदाय का बोलबाला था और बौद्ध धर्म का लगभग नाश हो चुका था। जैन धर्म दक्षिण भारत तथा पश्चिम के मरुस्थल में जीवित था। सिंध, मुलतान तथा पंजाब में इस्लाम फैल गया था।
इस प्रकार देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक परिस्थतियां ऐसी नहीं थीं जिनके बल पर भारत, मुहम्मद गौरी जैसे दुर्दान्त आक्रांता का सामना कर सकता। अतः गौर जैसे छोटे से गांव के रहने वाले मुहम्मद गौरी जैसे छोटे से लुटेरे का, गजनी जैसे गरीब राज्य से निकलकर भारत में चुपके से आ घुसना अधिक कठिन कार्य नहीं था।
मुहम्मद गौरी का भारत पर पहला आक्रमण ई.1175 में मुल्तान पर हुआ। मुल्तान पर उस समय शिया मुसलमान करमाथियों का शासन था। मुहम्मद गौरी ने उनको परास्त करके मुल्तान पर अधिकार कर लिया। उसी वर्ष गौरी ने ऊपरी सिंध के कच्छ क्षेत्र पर आक्रमण किया तथा उसे अपने अधिकार में ले लिया। चूंकि इसे मुसलमानों का आपसी मामला समझा गया इसलिए हिन्दू राजाओं द्वारा इस आक्रमण को कोई महत्व नहीं दिया गया।
मुहम्मद गौरी का भारत पर दूसरा आक्रमण ई.1178 में गुजरात के चौलुक्य राज्य पर हुआ जो उस समय एक धनी राज्य हुआ करता था। गुजरात पर इस समय मूलराज (द्वितीय) शासन कर रहा था। उसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा थी। गौरी मुल्तान, कच्छ और पश्चिमी राजपूताना में होकर आबू के निकट पहुंचा। वहाँ कयाद्रा गांव के निकट मूलराज (द्वितीय) की सेना से उसका युद्ध हुआ।
नाडौल का चौहान शासक कान्हड़देव, जालोर का चौहान शासक कीर्तिपाल और आबू का परमार शासक धारावर्ष भी अपनी सेनाएं लेकर चौलुक्यों की सहायता के लिए आ गए।
इस युद्ध में मुहम्मद गौरी की सेना के बहुत से सैनिक मारे गए तथा मुहम्मद गौरी बुरी तरह परास्त हुआ। वह अपनी जान बचाकर रेगिस्तान के रास्ते फिर से अफगानिस्तान भाग गया। यह भारत के हिन्दू राजाओं से उसका पहला संघर्ष था और पहले ही संघर्ष में उसे पराजय का स्वाद चखने को मिला था।
चूंकि एक हिन्दू राजा द्वारा मुहम्मद गौरी को परास्त करके भगा दिया गया था, इसलिए भारत के अन्य हिन्दू राजाओं ने मुहम्मद गौरी को अब भी कोई बड़ी मुसीबत नहीं समझा और भारतीय हिन्दू राजा अपनी परस्पर लड़ाइयों में व्यस्त रहे।
अगली कड़ी में देखिए- पंजाब के रास्ते भारत में घुस गया मुहम्मद गौरी!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता