महमूद गजनवी के आक्रमण 1000 ईस्वी में आरम्भ हुए तथा 1027 ईस्वी तक चलते रहे। इन आक्रमणों से भारत के राजाओं ने कोई सबक नहीं लिया।
मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के लगभग 350 वर्ष बाद उत्तर-पश्चिमी दिशा से भारत भूमि पर तुर्क आक्रमण आरंभ हुए। माना जाता है कि ‘तुर्कों’ के पूर्वज ‘हूण’ थे। उनमें ‘शकों’तथा ‘ईरानियों’ के रक्त का भी मिश्रण हो गया था। तुर्क, चीन की पश्चिमोत्तर सीमा पर रहते थे। उनका सांस्कृतिक स्तर निम्न श्रेणी का था। वे खूंखार और लड़ाकू थे। युद्ध से उन्हें स्वाभाविक प्रेम था।
तुर्की गुलाम
जब अरब में इस्लाम का प्रचार आरंभ हुआ तब बहुत से तुर्कों को पकड़ कर गुलाम बना लिया गया तथा उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिये बाध्य किया गया।
लड़ाकू होने के कारण तुर्क गुलामों को अरब के खलीफाओं का अंगरक्षक नियुक्त किया जाने लगा। बाद में वे खलीफा की सेना में उच्च पद पाने लगे। जब खलीफा निर्बल पड़ गये तब तुर्कों ने खलीफाओं से वास्तविक सत्ता छीन ली और खलीफा नाम मात्र के शासक रह गये। जब खलीफाओं की विलासिता के कारण इस्लाम के प्रसार का काम मंद पड़ गया तब तुर्क ही इस्लाम को दुनिया भर में फैलाने के लिये आगे आये।
उन्होंने 10वीं शताब्दी में बगदाद एवं बुखारा में अपने स्वामियों अर्थात् खलीफाओं के तख्ते पलट दिये और ई.943 में मध्य एशिया के अफगानिस्तान में अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जिसकी राजधानी गजनी थी। भारत में ‘इस्लाम’ का प्रसार इन्हीं तुर्कों ने किया। माना जाता है कि अरबवासी ‘इस्लाम’ को कार्डोवा तक लाये। ईरानियों ने उसे बगदाद तक पहुंचाया और तुर्क उसे दिल्ली ले आये।
महमूद गजनवी के आक्रमण
गजनी के ‘तुर्क सुल्तान’सुबुक्तगीन ने पंजाब के राजा जयपाल पर आक्रमण किया तथा ‘लमगान’ को लूट लिया। सुबुक्तगीन का वंश गजनी वंश कहलाता था। ई.997 में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गई तथा उसका पुत्र महमूद गजनवी, गजनी का शासक हुआ। उसने खुरासान को जीतकर अपने राज्य में मिलाया। इसी समय बगदाद के खलीफा ‘अल-कादिर-बिल्लाह’ने उसे मान्यता एवं ‘यामीन-उद्-दौला’ अर्थात् साम्राज्य का दाहिना हाथ और ‘अमीन-उल-मिल्लत’अर्थात् मुसलमानों का संरक्षक, उपाधियां दीं।
इस कारण महमूद गजनी के वंश को ‘यामीनी वंश’ भी कहते हैं। उसने सुल्तान की पदवी धारण की। ऐसा करने वाला वह पहला मुस्लिम शासक था। ‘उत्बी’ के अनुसार उसने ‘ऑटोमन’ शासकों की भांति ‘पृथ्वी पर ईश्वर की प्रतिच्छाया’ की उपाधि धारण की। जब खलीफा ‘अल-कादिर-बिल्लाह’ने महमूद को सुल्तान के रूप में मान्यता दी तो महमूद ने खलीफा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए प्रतिज्ञा की कि वह प्रतिवर्ष भारत के काफिरों पर आक्रमण करेगा। गजनी ने भारत पर 17 आक्रमण किये।
उसने ई.1000 में सीमान्त प्रदेश पर, ई.1001 में पंजाब पर, ई.1003 में भेरा पर, ई.1005 तथा ई.1007 में मुल्तान पर, ई.1008 में नगरकोट पर, ई.1009 में नारायणपुर (अलवर) पर, ई.1011 में मुल्तान पर, ई.1013 में काश्मीर पर, ई.1014 में थानेश्वर पर, ई.1015 में काश्मीर पर, ई.1018 में बुलंदशहर, मथुरा तथा कन्नौज पर, ई.1019 में कालिंजर पर, ई.1020 में पंजाब पर, ई.1022 में ग्वालियर तथा कालिंजर पर, ई.1025 में सोमनाथ पर तथा ई.1027 में सिंध पर आक्रमण किये।
महमूद के भारत आक्रमणों के दो स्पष्ट उद्देश्य थे, पहला यह कि वह भारत की अपार सम्पदा लूटना चाहता था और दूसरा यह कि वह भारत से मूर्ति पूजा समाप्त करके इस्लाम का प्रसार करना चाहता था क्योंकि अपने समस्त 17 आक्रमणों में उसने ये ही दो कार्य किये, अपने राज्य का विस्तार नहीं किया।
महमूद के हमलों के कारण भारत को जन-धन की अपार हानि उठानी पड़ी। हजारों हिन्दू उसकी बर्बरता के शिकार हुए। भारत की सैन्यशक्ति को गहरा आघात पहुंचा। भारतीयों की लगातार पराजयों से विदेशियों को भारत की सामरिक कमजोरी का ज्ञान हो गया। इससे अन्य आक्रांताओं को भी भारत पर आक्रमण करने का साहस हुआ।
भारत के मंदिरों, भवनों, देव प्रतिमाओं के टूट जाने से भारत की वास्तुकला, चित्रकला और शिल्पकला को गहरा आघात पहुंचा। भारत को विपुल आर्थिक हानि उठानी पड़ी। लोग निर्धन हो गये जिनके कारण उनमें जीवन के उद्दात्त भाव नष्ट हो गये। नागरिकों में परस्पर ईर्ष्या-द्वेष तथा कलह उत्पन्न हो गई।
देश की राजनीतिक तथा धार्मिक संस्थाओं के बिखर जाने तथा विदेशियों के समक्ष सामूहिक रूप से लज्जित होने से भारतीयों में पराजित जाति होने का मनोविज्ञान उत्पन्न हुआ जिसके कारण वे अब संसार के समक्ष तनकर खड़े नहीं हो सकते थे और वे जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ते चले गये। लोगों में पराजय के भाव उत्पन्न होने से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की क्षति हुई। भारत का द्वार इस्लाम के प्रसार के लिये खुल गया। देश में लाखों लोग मुसलमान बना लिये गये।
जिस देश के शासक निजी स्वार्थों और घमण्ड के कारण हजारों साल से परस्पर संघर्ष करके एक दूसरे को नष्ट करते रहे हों, उस देश के शासकों तथा उस देश के नागरिकों को महमूद गजनवी ने जी भर कर दण्डित किया। उसके क्रूर कारनामों, हिंसा और रक्तपात के किस्सों को सुनकर मानवता कांप उठती है किंतु भारत के लोगों ने शायद ही कभी इतिहास से कोई सबक लिया हो। यही कारण है कि भारत के पराभव, उत्पीड़न और शोषण का जो सिलसिला महमूद गजननवी ने आरंभ किया वह मुहम्मद गौरी, चंगेज खां, बाबर, अहमदशाह अब्दाली तथा ब्रिटिश शासकों से होता हुआ आज भी बदस्तूर जारी है।
इस देश के लोग कभी एक नहीं हुए। आजादी के बाद भी नहीं। आज की प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में परस्पर लड़ने वाले शासक मौजूद नहीं हैं किंतु राजनीतिक दल जिस गंदे तरीके से एक दूसरे के शत्रु बने हुए हैं, वे राजपूत काल के उन शासकों की ही याद दिलाते हैं जिन्होंने विदेशियों के हाथों नष्ट हो जाना तो पसंद किया किंतु कभी निजी स्वार्थ तथा अपने घमण्ड को छोड़कर एक दूसरे का साथ नहीं दिया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता