पिछली कड़ी में हमने चर्चा की थी कि ई.1192 में जब मुहम्मद शहाबुद्दीन गौरी पृथ्वीराज पर आक्रमण करने आया तो कुछ भारतीय शक्तियां भी उसके साथ हो गईं। हम्मीर महाकाव्य, पृथ्वीराज रासो, तबकात ए नासिरी तथा राजस्थान थू्र दी एजेज नामक ग्रंथों में लिखा है कि ई.1192 में जब मुहम्मद गौरी लाहौर पहुँचा तो उसने अपना एक दूत अजमेर भेजकर पृथ्वीराज से कहलवाया कि वह इस्लाम स्वीकार कर ले और मुहम्मद गौरी की अधीनता मान ले।
इस पर राजा पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को प्रत्युत्तर भिजवाया कि वह गजनी लौट जाये अन्यथा उसकी भेंट युद्ध स्थल में होगी। मुहम्मद गोरी, पृथ्वीराज को छल से जीतना चाहता था। इसलिये उसने अपना दूत दुबारा अजमेर भेजकर कहलवाया कि वह युद्ध की अपेक्षा सन्धि को अच्छा मानता है इसलिये उसने इस सम्बन्ध में एक दूत अपने भाई के पास गजनी भेजा है। ज्योंही उसे गजनी से आदेश प्राप्त हो जायेंगे, वह स्वदेश लौट जायेगा तथा पंजाब, मुल्तान एवं सरहिंद को लेकर संतुष्ट हो जायेगा।
इस संधि वार्ता ने पृथ्वीराज को भुलावे में डाल दिया। वह थोड़ी सी सेना लेकर तराइन की ओर बढ़ा, बाकी सेना जो सेनापति स्कंद के साथ थी, वह उसके साथ न जा सकी। उसका दूसरा सेनाध्यक्ष उदयराज भी समय पर अजमेर से रवाना नहीं हो सका।
पृथ्वीराज का मंत्री सोमेश्वर जो इस युद्ध के पक्ष मंे नहीं था तथा एक बार पृथ्वीराज द्वारा दण्डित किया गया था, वह अजमेर से रवाना होकर शत्रु से जा मिला। जब पृथ्वीराज की सेना तराइन के मैदान में पहुँची तो संधि-वार्ता के भ्रम में आनंद-मग्न हो गई तथा रात भर उत्सव मनाती रही।
इसके विपरीत मुहम्मद गौरी ने शत्रुओं को भ्रम में डाले रखने के लिये अपने शिविर में भी रात भर आग जलाये रखी और अपने सैनिकों को शत्रुदल के चारों ओर घेरा डालने के लिये भेज दिया। ज्योंही प्रभात हुआ, राजपूत सैनिक शौचादि के लिये बिखर गये। ठीक इसी समय तुर्कों ने अजमेर की सेना पर आक्रमण कर दिया। इससे चारों ओर भगदड़ मच गई।
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राजा पृथ्वीराज हाथी पर चढ़कर युद्ध करने आया किंतु अपने सैनिकों को अपने आसपास नहीं पाकर, अपने घोड़े पर बैठकर शत्रु दल से लड़ता हुआ मैदान से भाग निकला। कुछ ग्रंथों के अनुसार राजा पृथ्वीराज वर्तमान हरियाणा के सिरसा के आसपास मुहम्मद गौरी के सैनिकों के हाथ लग गया और मार दिया गया।
फरिश्ता ने लिखा है- ‘दिल्ली का राजा गोविंदराय तोमर और अनेक सामंत वीर योद्धाओं की भांति लड़ते हुए काम आये।’
तराइन की पहली लड़ाई का अमर विजेता दिल्ली का राजा तोमर गोविन्दराज तथा चितौड़ का राजा समरसिंह भी तराइन की दूसरी लड़ाई में मारे गये। तुर्कों ने भागती हुई हिन्दू सेना का पीछा किया तथा उन्हें बिखेर दिया। राजा पृथ्वीराज का अंत कैसे हुआ, इस सम्बन्ध में अलग-अलग विवरण मिलते हैं।
पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज का अंत गजनी में दिखाया गया है। इस विवरण के अनुसार राजा पृथ्वीराज पकड़ लिया गया और गजनी ले जाया गया जहॉं उसकी आंखें फोड़ दी गईं। पृथ्वीराज का बाल सखा और दरबारी कवि चन्द बरदाई भी उसके साथ था जिसने पृथ्वीराज रासो की रचना की थी। चंद बदराई ने राजा पृथ्वीराज की मृत्यु निश्चित जानकर शत्रु के विनाश की योजना बनाई।
कवि चन्द बरदाई ने मुहम्मद गौरी से आग्रह किया कि आंखें फूट जाने पर भी राजा पृथ्वीराज शब्दबेधी निशाना साध कर लक्ष्य को बेध सकता है। मुहम्मद गौरी ने इस मनोरंजक दृश्य को देखने की इच्छा व्यक्त की तथा उसने एक विशाल आयोजन किया। गौरी ने एक ऊँचे मंच पर बैठकर अंधे राजा पृथ्वीराज को लक्ष्य वेधने का संकेत दिया। जैसे ही गौरी के अनुचर ने लक्ष्य पर शब्द उत्पन्न किया, कवि चन्द बरदाई ने यह दोहा पढ़ा-
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता उपर सुल्तान है मत चूके चौहान।
मुहम्मद गौरी की स्थिति का आकलन करके पृथ्वीराज ने तीर छोड़ा जो मुहम्मद गौरी के कण्ठ में जाकर लगा और उसी क्षण उसके प्राण पंखेरू उड़ गये। शत्रु का विनाश हुआ जानकर और उसके सैनिकों के हाथों में पड़कर अपमानजनक मृत्यु से बचने के लिए कवि चन्द बरदाई ने राजा पृथ्वीराज के पेट में अपनी कटार भौंक दी और अगले ही क्षण उसने वह कटार अपने पेट में भौंक ली। इस प्रकार दोनों अनन्य मित्र वीर-लोक को गमन कर गये। उस समय पृथ्वीराज की आयु मात्र 26 वर्ष थी।
माना जाता है कि जब चंद बरदाई वहीं पर मृत्यु को प्राप्त हो गया तो पृथ्वीराज रासो का शेष भाग उसके पुत्र ने पूरा किया। आधुनिक इतिहासकारों ने कवि पृथ्वीराज रासौ के विवरण को सत्य नहीं माना है क्योंकि इस ग्रंथ के अतिरिक्त इस विवरण की पुष्टि और किसी समकालीन स्रोत से नहीं होती।
सासंद फूलनदेवी की हत्या के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद शेरसिंह राणा ने वर्ष 2004 में तिहाड़ जेल से फरार होकर अफगानिस्तान जाने तथा वहाँ पृथ्वीराज चौहान की समाधि से उसकी अस्थियां निकालकर भारत लाने का दावा किया। शेरसिंह ने इन अस्थियों को गाजियाबाद के निकट तिलखुआ में एक मंदिर बनवाकर उसमें रखा गया है। शेरसिंह ने अपनी पुस्तक जेल-डायरी में भी इस घटना का उल्लेख किया है।
शेरसिंह के अनुसार अफगानिस्तान में मुहम्मद गोरी की कब्र के निकट ही पृथ्वीराज चौहान की समाधि बनी है। कब्र देखने के लिए आने वालों के लिये यह अनिवार्य है कि वे पहले पृथ्वीराज चौहान की समाधि को जूते मारे, फिर कब्र के दर्शन करे। भारत सरकार ने इन अस्थियों को लेकर किए गए किसी भी दावे की पुष्टि नहीं की है। हालांकि अस्थियों की कार्बन डेटिंग से उनके काल का पता चल सकता है।
अगली कड़ी में देखिए- मुहम्मद गौरी ने राजा पृथ्वीराज को अंधा करके गड्ढे में डाल दिया और पत्थरों से उसके प्राण ले लिए!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता