जहाँ सत्रह सौ बहत्तर का वर्ष मरुधरानाथ के लिये कई उपहार लेकर आया था वहीं सत्रह सौ तिहत्तर उसके लिये अच्छा नहीं रहा। होली से कुछ दिन पहले ही बूंदी के राव अजीतसिंह ने मरुधरानाथ के साले महाराणा अड़सी की हत्या कर दी। अड़सी चाहे जितना अड़ियल क्यों न रहा हो, वह मरुधरानाथ का बहुत सम्मान करता था। उसके चले जाने से मरुधरानाथ ने एक बड़ा मित्र, हितैषी, शुभचिंतक और सम्बन्धी खो दिया।
महाराणा जगतसिंह के समय से मराठे मेवाड़ को लूटते आ रहे थे। तब से लेकर महाराणा अड़सी तक, छत्तीस साल की संक्षिप्त अवधि में मराठों ने मेवाड़ से एक करोड़ इक्यासी लाख रुपये नगद लूट लिये थे तथा साढ़े अट्ठाइस लाख रुपये की आय के परगने छीन लिये थे। नया महाराणा हम्मीरसिंह इस समय बालक था। इसलिये राजमाता ने अपने सरदारों की सलाह से मरुधरानाथ से आग्रह किया कि वह राठौड़ों की चौकियाँ मेवाड़ में बनी रहने दे।
महाराणा हम्मीरसिंह को बालक जानकर होलकरों की रानी अहिल्या बाई ने महाराणा को पत्र लिखकर धमकाया कि आपके राज्य से जो भी आय मराठों को होती है वह सिंधिया तथा होलकर में आधी-आधी बांटी जाती है। आपने सिंधिया को मेवाड़ में नये परगने प्रदान किये हैं। इसलिये उतनी ही आय के परगने हमें भी दिये जायें अन्यथा परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहें। महाराणा बालक था, विद्रोही रतनसिंह की गतिविधियाँ लगातार जारी थीं, बड़े सरदारों में से कई अब भी रतनसिंह के साथ थे। महादजी मेवाड़ को पहले से ही रौंद रहा था इसलिये राजमाता के पास कोई चारा नहीं रहा कि वह अहिल्याबाई की मांग को मान ले। इसलिये उसने केवल चिट्ठी से भयभीत होकर नींबाहेड़ा का परगना अहिल्याबाई को सौंप दिया। इस पर भी अहिल्याबाई ने महाराणा के सेनापति संग्रामसिंह पर आक्रमण करके उसके एक हजार दो सौ आदमी मार गिराये। संग्रामसिंह किसी तरह जान बचाकर अपनी जागीर में भाग गया।
इससे रुष्ट होकर राजमाता ने उदयपुर से होलकरों की चौकियां उठा दीं तथा सबके सामने यह प्रकट किया कि मरुधरानाथ की सलाह से होलकरों को मेवाड़ से भगाया जा रहा है। जब यह बात अहिल्याबाई को ज्ञात हुई तो उसने अपने सेनापति को मेवाड़ में लूटमार करने के लिये भेजा। होलकरों की लूटमार से मेवाड़ में अराजकता फैल गई। होलकरों के पिण्डारी, श्रीजी की डेढ़ हजार गायों को लूट कर ले गये। जब महाराजा विजयसिंह को ये समाचार प्राप्त हुए तो उसने चैनमल भण्डारी के साथ दो हजार सैनिक श्री जी की सुरक्षा के लिये मेवाड़ भेजे तथा अहिल्या बाई को विरोध स्वरूप चिट्ठी लिखी।
रानी अहिल्या बाई ने महाराजा विजयसिंह को जवाब भिजवाया कि आपके और हमारे बीच पुराने स्नेह सम्बन्ध हैं। आपने श्रीजी से कहकर हमारी चौकियाँ उठवा दीं, यह ठीक नहीं किया। इसलिये हमें श्रीजी के विरुद्ध यह कदम उठाना पड़ा। अब कम से कम भविष्य में ध्यान रखने के लिये उन्हें लिखें। आप उस तरह कार्य कीजिये जिससे हमारे सम्बन्ध वैसे ही बने रहें।
इस पत्र के मिलने पर महाराजा विजयसिंह ने महाराणा को पत्र लिखा कि हमने होलकर की चौकियाँ उठाने की सलाह कब दी थी? यह ठीक नहीं हुआ। भविष्य में ध्यान रखिये। मरुधरानाथ ने अपने वकील के द्वारा भी महाराणा से कहलवाया कि भविष्य में विवाद न उठे इसका विशेष ध्यान रखा जाये।