मकराना शब्द ‘मकरान’से बना हुआ है जो मध्य एशिया में स्थित एक रेगिस्तानी क्षेत्र की ओर संकेत करता है। मध्य एशिया का मकरान ईरान से लेकर बलूचिस्तान के दक्षिणी हिस्से तक फैला हुआ है। अनुमान होता है कि जब भारत में मुसलमान शासन करने लगे, तब किसी समय मकरान क्षेत्र से आए मुसलमान भारत में आए तथा उन्होंने वर्तमान मकराना में निवास करना आरम्भ किया। वे लोग पत्थर का काम करने में सिद्धहस्त थे।
रियासती काल में यह मारवाड़ राज्य के अधीन राठौड़ राजपूतों का ठिकाना था। मकराना का ठाकुर परिवार अब भी यहाँ निवास करता है।
वर्तमान समय में मकराना (Makrana) पश्चिमी राजस्थान में डीडवाना-कुचामन जिले में स्थित है। यह तहसील मुख्यालय है। यह डीडवाना-कुचामन ज़िले की सबसे बड़ी तहसील है। इसमें 136 गांव हैं तथा यहाँ नगर पालिका भी कार्यरत है।
मकराना संगमरमर पत्थर की खानों के लिए पूरे विश्व में विख्यात है। यहाँ के शिल्पी मध्यकाल से पूरे देश में प्रसिद्ध रहे हैं। कहते हैं ताजमहल तथा देलवाड़ा के जैन मंदिरों के निर्माण के लिए Makrana के शिल्पियों को ले जाया गया। मकराना का हस्तशिल्प पूरे विश्व में आज भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
मकराना के पास किसी समय गुणावती गांव था। अकबर का नवरत्न बीरबल इसी गुणावती गांव का था। अब गुणावती गांव Makrana नगर का ही एक वार्ड है। मानधनिया परिवार देश के प्रतिष्ठित व्यापारिक घरानों में से है। इस परिवार के बंकटलाल मानधनिया, बालाबक्ष मानधनिया तथा नथमल मानधनिया प्रतिष्ठित उद्योगपति थे।
मकराना में बड़ी संख्या में हिन्दू जनसंख्या निवास करती है। ये लोग भगवान चारभुजनाथ की पूजा करते हैं। चारभुजा मंदिर यहाँ का सबसे प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान चारभुजनाथ की मूर्ति ईस्वी 1580 से 1590 के बीच एक प्राचीन बावड़ी से मिली थी। इस बावड़ी को आज भी चारभुजा बावड़ी कहा जाता है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



