कुम्हेर दुर्ग का पुराना नाम कुबेरपुर था। संभवतः कुबेर शब्द लोकवाणी में घिस कर कुम्हेर रह गया। यह भी मान्यता है कि सिनसिनी के कुंभा नामक एक जाट ने इसे कुम्हेर नाम दिया। ई.1724 में महाराजा बदनसिंह के समय, राजकुमार सूरजमल ने यहाँ कुम्हेर दुर्ग एवं महल बनवाये।
कुम्हेर दुर्ग डीग से 18 किलोमीटर तथा भरतपुर से 16 किलोमीटर दूर है। सिनसिनी गांव यहाँ से 10 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। जाटों ने भरतपुर तथा डीग दुर्ग, चारों तरफ खाई खोदकर बनाये थे किंतु कुम्हेर दुर्ग खाई से नहीं घेरा गया था। कुम्हेर दुर्ग एवं कस्बे को एक मोटी दीवार से घेर कर सुरक्षित किया गया था जिस पर तोपें तैनात की गईं। दुर्ग के भीतर स्थित महलों के चारों ओर सिपाहियों की बैरकें बनाई गई हैं।
कुम्हेर दुर्ग महाराजा सूरजमल को अपने पिता बदनसिंह से जागीर के रूप में प्राप्त हुआ था। ई.1753 में मराठों की सेना ने मल्हारराव होलकर के पुत्र खांडेराव के नेतृत्व में राजपूताने में पैर रखा। जयपुर नरेश माधोसिंह से कर लेकर ई.1754 में मराठे भरतपुर रियासत की ओर बढ़े। राजा सूरजमल भरतपुर की रक्षा का भार अपने पुत्र जवाहरसिंह को सौंपकर स्वयं कुम्हेर के दुर्ग में मोर्चाबंदी करके बैठ गया। मराठों को ज्ञात था कि सूरजमल दिल्ली से अथाह खजाना लूट कर लाया है, मराठों को वह खजाना चाहिये था।
महाराजा सूरजमल ने खांडेराव के समक्ष मित्रता का प्रस्ताव भिजवाया किंतु होलकर के सेनापति रघुनाथराव ने सूरजमल के समक्ष दो करोड़ रुपयों की मांग रखी। सूरजमल के मंत्री रूपराम ने चालीस लाख रुपये देने स्वीकार किए किंतु मल्हारराव होलकर ने कहलवाया कि जाटों को चाहिये कि वे दो करोड़ रुपयों से अधिक राशि दें।
इस पर नाराज होकर सूरजमल ने मराठों के सेनापति रघुनाथराव को तोप के पांच गोले और थोड़ा सा बारूद भिजवाया और कहलवाया कि या तो चालीस लाख रुपये ले ले या फिर परिणाम भुगतने को तैयार रहे। जनवरी 1754 में खाण्डेराव, रघुनाथराव तथा मल्हारराव की सेनाओं ने कुम्हेर को बुरी तरह घेर लिया। इमादुलमुल्क के नेतृत्व में मुगल सेना भी मराठों के साथ हो गई। सूरजमल के शत्रुओं की सेना में 80 हजार सैनिक थे।
मराठों ने कुम्हेर के चारों ओर पंद्रह मील के घेरे में समस्त फसलें जलाकर राख कर दीं। कुम्हेर को जाने वाले समस्त रास्तों को बंद कर दिया तथा होडल पर अधिकार कर लिया। मुगल तो पहले से ही जाटों के शत्रु थे, अब मराठे भी शत्रुता पर उतर आये थे और जयपुर का राजा तटस्थ हो गया था। इस कारण राजा सूरजमल पूरे उत्तर भारत में अकेला पड़ गया किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी।
जयपुर नरेश माधोसिंह नहीं चाहता था कि जिस जाट राज्य को उसके पुरखों ने अपने हाथों से स्थापित किया था, उस राज्य को नष्ट करने में वह योगदान करे। दूसरी तरफ वह मराठों को भी नाराज नहीं करना चाहता था। इसलिये उसने एक छोटी सी कच्छवाहा सेना मराठों के साथ भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।
राजा सूरजमल ने चार माह तक मराठों और मुगलों की सम्मिलित सेना से लोहा लिया। 27 फरवरी 1754 को खांडेराव, दुर्ग के बाहर खुदवाई गई खंदकों का निरीक्षण कर रहा था। उसी समय जाटों ने दुर्ग के भीतर स्थित तोप से एक गोला चलाया जिससे खांडेराव मारा गया। उसकी नौ रानियां उसके शव के साथ सती हो गईं।
उसकी रानी अहिल्याबाई गर्भवती होने के कारण सती नहीं हो सकी। पुत्र शोक में पागल होकर मल्हारराव ने प्रतिज्ञा की कि वह जाटों का समूल नाश करेगा। अब मराठों ने कुम्हेर पर हो रहे आक्रमणों को भयानक बना दिया। ऐसी स्थिति में सूरजमल की रानी हँसिया ने रूपराम के पुत्र तेजराम कटारिया को सूरजमल की पगड़ी और एक पत्र देकर ग्वालियर के सिंधिया राजा को भेजा।
उस समय सिंधिया, होलकर के साथ था। जब सिंधिया को रानी हँसिया का प्रस्ताव मिला तो उसने बदले में अपनी पगड़ी, एक उत्साहवर्द्धक पत्र तथा अपनी कुलदेवी के प्रसाद का एक बिल्वपत्र रानी को भिजवाया। जब हँसिया के पत्रवाहक और सिंधिया के बीच हुए पत्र व्यवहार की जानकारी मल्हारराव को हुई तो उसके हौंसले टूट गये।
जब मराठे, जाटों पर पर्याप्त दबाव नहीं बना पाये तो मुगलों के वजीर इमादुलमुल्क ने दिल्ली से सहायता मंगवाई। बादशाह को लगा कि यदि मराठे, कुम्हेर को तोड़ लेंगे तो जाटों की अपार सम्पत्ति मराठों के हाथ लग जायेगी। इसलिये उसने अतिरिक्त सेना नहीं भिजवाई। इन सब कारणों से मराठों को बाजी अपने हाथ से जाती हुई लगी और उन्होंने सूरजमल से संधि कर ली।
सूरजमल ने रूपराम कटारिया के माध्यम से मराठों को आश्वासन दिया कि वह मराठों को तीन साल में तीस लाख रुपये देगा किंतु उसने केवल दो लाख रुपये ही दिये। मराठे अपना घेरा उठाकर दक्कन को चले गये। इस सफलता से सूरजमल की धाक जम गई। मुगल वजीर इमादुलमुल्क अपना सिर धुनता हुआ दिल्ली चला गया जहाँ उसने बादशाह अहमदशाह की आंखें फोड़कर उसे कैद में डाल दिया और उसकी हत्या करवा दी।
राजा सूरजमल ने कुम्हेर दुर्ग में अपनी रानी हँसिया के लिये भव्य महलों का निर्माण करवाया। वर्तमान में कुम्हेर का दुर्ग लगभग नष्ट हो गया है। दुर्ग में स्थित पांच मंजिला महलों के एक या दो तल ही शेष बचे हैं। कुम्हेर से बाहर रानी किशोरी देवी के मंदिर के खण्डहर स्थित हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता