झालावाड़ की बौद्ध गुफाएं उस भूभाग में स्थित हैं जो छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों के बीच कई ऐसे स्थान मिले हैं जिनमें बौद्ध गुफाएं चिह्नित की गई हैं। इनमें कोलवी, विनायगा, हात्यागोड़ तथा गुनाई गांव की गुफाएं प्रमुख हैं। साथ ही इसी क्षेत्र से लगते हुए मध्यप्रदेश के धर्मराजेश्वर नामक स्थान में भी बौद्ध गुफाएं पहचानी गई हैं।
झालावाड़ की बौद्ध गुफाएं हों या अफगानिस्तान के बामियान प्रदेश की बौद्ध गुफाएं, या फिर चीन में सैंकड़ों पहाड़ियों में स्थित छोटी-छोटी गुफाएं, यहाँ तक कि ऐसी पहाड़ियों पर बनी गुफाएं जहाँ तक पहुंचने का कोई रास्ता ही नहीं हैं, उन गुफाओं तक पहुंचने के लिए पहाड़ियों के ऊपरी सिरे से रस्सियां लटका कर ही पहुंचा जा सकता है, एक ही बात सिद्ध करती हैं कि बौद्ध भिक्षुओं को अपने विहार एवं चैत्य दुर्गम पहाड़ियों में ही बनाना पसंद था।
झालावाड़ की बौद्ध गुफाएं आसानी से शत्रुओं अथवा आक्रमणकारियों की दृष्टि में नहीं आतीं। इससे यह आभास होता है कि इन गुफाओं में अपने विहारों एवं चैत्यों की स्थापना करने वाले बौद्ध भिक्षुओं को किन्हीं शत्रुओं से भय था। इसलिए वे मैदानों में अािवा नदी किनारों पर नहीं अपितु पहाड़ी गुफाओं में छिपकर रहते थे। झालावाड़ जिले की बौद्ध गुफाएं बौद्धों के इसी भय की पुष्टि करती हैं।
उस काल में यह पूरा क्षेत्र घने जंगल के बीच स्थित होगा तथा किसी सेना का इन गुफाओं तक पहुंच पाना और उन्हें ढूंढ पाना आसान नहीं रहा होगा।
झालावाड़ की बौद्ध गुफाएं मालवा क्षेत्र में स्थित हैं। इस कारण ये गुफाएं भारत के इतिहास के एक भयानक मोड़ की गवाह हैं तथा आततायी हूणों के मालवा क्षेत्र पर आक्रमण करने तथा बौद्ध धर्म के राजस्थान एवं मालवा से विलुप्त हो जाने की क्रूर कहानी कहती हुई प्रतीत होती हैं। हूणों के आक्रमणों का बौद्ध धर्म पर बड़ा घातक प्रभाव पड़ा। उन्होंने बौद्ध मन्दिरों तथा विहारों को लूटा और उन्हें ध्वस्त किया, जिनका पुनर्निर्माण नहीं हो सका।
यदि हम झालावाड़ जिले के भवानीमण्डी कस्बे से मंदसौर को जाने वाली सड़क पर चलें तो झालावाड़ जिले में कोलवी, हात्यागोड़, बिनायगा तथा गुनाई और मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में धर्मराजेश्वर नामक स्थान पर बौद्ध भिक्षुओं की छठी से आठवीं शताब्दी की बौद्ध गुफाएं मिलती हैं।
इन गुफाओं के आकार तथा उनमें बने कक्ष, शैयाएं, साधना कक्ष, बौद्ध मंदिर, बारामदों तथा दो मंजिली गुफाओं यहाँ तक कि कुओं आदि की उपस्थिति से अनुमान होता है कि बौद्ध भिक्षुओं ने लम्बे समय तक इन गुफाओं में निवास किया होगा। यहां उन्होंने गुफाओं के साथ-साथ कलात्मक स्तूप, चैत्य तथा बुद्ध-प्रतिमाएं उत्कीर्ण कीं।
झालावाड़ जिले से मंदसौर तक फैली हुई झालावाड़ की बौद्ध गुफाएं भुरभुरे लैटेराइट पत्थर की बनी हुई हैं जिन पर छैनी चलाकर आसानी से काटा जा सकता है। इस पूरे क्षेत्र में बोधिसत्व की प्रतिमाओं का अभाव है जिससे सिद्ध होता है कि ये समस्त गुफाएं बौद्धों के हीनयान मत के भिक्षुओं की हैं किंतु बुद्ध की कई प्रतिमाएं हैं जिनमें से कुछ प्रतिमाएं गुफाओं के बाहर तथा कुछ प्रतिमाएं गुफाओं के भीतर स्थित हैं। गुफाओं में स्थित बुद्ध प्रतिमाएं यह सिद्ध करती हैं कि उनकी पूजा की जाती थी। इससे अनुमान होता है कि बाद में ये गुफाएं महायानियों के हाथों में चली गईं क्योंकि हीनयान सम्प्रदाय में बुद्ध प्रतिमाओं की पूजा नहीं होती थी।
कोलवी की पहाड़ी पर अब लगभग 35 गुफाएं हैं तथा लगभग 10-15 गुफाएं नष्ट हो गयी प्रतीत होती हैं। इन गुफाओं का सामान्यतः आकार 15 फुट लम्बा, 13 फुट चौड़ा तथा 22 फुट ऊंचा है। इन गुफाओं में सामान्यतः एक हिस्से में लगभग दो फुट ऊंचे मिट्टी तथा पत्थर के मिश्रण से चबूतरे बने हुए हैं जो शैयाएं जान पड़ते हैं। इनके एक तरफ मिट्टी-पत्थरों का ही सिराहना बना हुआ है जबकि पैरों की तरफ का भाग नीचे की ओर ढलान लिये हुए है।
जिन गुफाओं में एक ही कक्ष बना हुआ है, वे शिक्षार्थी भिक्खुओं की प्रतीत होती हैं जबकि दो या दो से अधिक कक्षों वाली गुफाएं आचार्यों की प्रतीत होती हैं। कुछ कक्षों के साथ छोटे कक्ष भी बने हुए हैं जो साधना कक्ष या भण्डार गृह रहे होंगे। कोलवी में एक गुफा में कुंआ भी बना हुआ है जो इस बात की ओर संकेत करता है कि झालावाड़ की बौद्ध गुफाएं भिक्षुओं को लम्बे समय तक शत्रु की आंखों से छिपा कर रखने में समर्थ थीं।
कोलवी से 13 किलोमीटर दूर बिनायगा गांव के निकट की पहाड़ी में लगभग 20 बौद्ध 20 गुफाएं हैं जिनका आकार कोलवी की गुफाओं की अपेक्षा छोटा है। हात्यागोड़ नामक गांव की पहाड़ी में 5 गुफाएं हैं। गुनाई गांव में भी 4 गुफाएं हैं। झालावाड़ जिले में डग के निकटवर्ती क्षेत्र में भी कुछ गुफाएं हैं जो निरंजनी गुफाएं कहलाती हैं।
कोलवी, बिनायगा तथा हात्यागोड़ की गुफाएं बौद्धों के एक ही समूह द्वारा बनाई गई प्रतीत होती हैं क्योंकि इनकी बनावट एक जैसी है। बिनायगा तथा हात्यागोड़ की गुफाओं में भी कोलवी की गुफाओं की भांति पत्थर और मिट्टी के शैयाएं बनी हुई हैं। कोलवी में कुछ गुफाएं दो मंजिल की भी हैं जबकि बिनायगा में केवल एक मंजिल की ही गुफाएं हैं। इसी सड़क पर लगभग 100 किलोमीटर आगे चलने पर मंदसौर जिला आरम्भ हो जाता है।
झालावाड़ जिले की बौद्ध गुफाएं सम्बन्धी अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वैबसाइट भारत का इतिहास डॉट कॉम पर ‘कोलवी की बौद्ध गुफाएं’ शीर्षक से उपलब्ध आलेख को पढ़ सकते हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता