भीलवाड़ा जिले में स्थित बनेड़ा दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने पंद्रहवीं शताब्दी में करवाया। महाराणा कुंभा के वंशज महाराणा सांगा ने यह दुर्ग श्रीनगर के जागीरदार करमचंद पंवार को दे दिया। महाराणा सांगा ने अपने बुरे दिनों में करमचंद पंवार के यहाँ आश्रय लिया था।
ई.1681 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने बनेड़ा दुर्ग को मेवाड़ के महाराणा राजसिंह (प्रथम) के पुत्र भीमसिंह को प्रदान किया।
महाराणा कुंभा ने जिस दुर्ग का निर्माण करवाया था, वह काल के थपेड़ों से नष्ट हो गया। इसके अवशेष बनेड़ा कस्बे के दक्षिण में देखे जा सकते हैं। अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में नया दुर्ग बनवाया गया।
ई.1730 से 1735 की अवधि में जोधपुर नरेश की सलाह पर बनेड़ा के जागीरदार सरदारसिंह ने कस्बे के निकट स्थित पहाड़ी पर नया बनेड़ा दुर्ग बनवाया जो आज भी मौजूद है।
दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत है। पूरा दुर्ग प्राचीर से घिरा हुआ है जिसमें बीच-बीच में बुर्ज बनी हुई हैं। प्राचीर के ऊपरी हिस्से में कंगूरे लगे हुए हैं। दुर्ग में प्रवेश करने के लिये सिहालगढ़ दरवाजा एवं भाला दरवाजा से होकर गुजरना पड़ता है। दुर्ग परिसर में इनमें मरदाना महल, जनाना महल, कंवरपदा महल, शीश महल, मित्र निवास एवं सरदार निवास नामक महल बने हुए हैं। इन महलों में सुंदर भित्तिचित्र चित्रित हैं।
सरदारसिंह की रानी नरूकी ने दुर्ग परिसर में एक मंदिर तथा बावड़ी का निर्माण करवाया। यह दुर्ग राजस्थान के कई अन्य दुर्गों की अपेक्षाकृत बहुत अच्छी अवस्था में है। ई.1758 में शाहपुरा राज्य के शासक उम्मेदसिंह ने सरदारसिंह को बनेड़ा दुर्ग से बाहर निकाल दिया तथा दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
बनेड़ा ठाकुर, सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिये महाराणा राजसिंह (द्वितीय) के पास गया। राजसिंह ने दुर्ग पर अधिकार करने के लिये मेवाड़ राज्य की सेना भेजी। मेवाड़ की सेना 13 दिन तक लगातार चली कार्यवाही के बाद दुर्ग पर पुनः अधिकार कर सकी।