मुहम्मद गौरी के आक्रमण
महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया तथा गजनी और हिरात के बीच गौर वंश का उदय हुआ। ई.1173 में गयासुद्दीन गौरी ने गजनी पर अधिकार कर लिया और अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन को वहाँ का शासक नियुक्त किया। यही शहाबुद्दीन, मुहम्मद गौरी के नाम से जाना गया। उसने ई.1175 से ई.1206 तक भारत पर कई आक्रमण किये तथा दिल्ली में मुस्लिम शासन की आधारशिला रखी। भारत पर उसके आक्रमण के प्रमुख उद्देश्य भारत से धन लूटना, भारत से कुफ्र का नाश करना तथा भारत में अपने अधीन राज्य की स्थापना करना था। तीस वर्षों तक वह इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति में लगा रहा।
मुहम्मद गौरी का भारत पर पहला आक्रमण ई.1175 में मुल्तान पर हुआ। गौरी ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया। उसी वर्ष गौरी ने ऊपरी सिंध के कच्छ क्षेत्र पर आक्रमण करके उस पर भी अधिकार कर लिया। ई.1178 में गौरी ने गुजरात के चौलुक्य राज्य पर आक्रमण किया। गुजरात पर इस समय मूलराज शासन कर रहा था। ‘गौरी’, मुल्तान, कच्छ और पश्चिमी राजपूताना में होकर आबू के निकट कयाद्रा गांव पहुंचा जहाँ मूलराज (द्वितीय) की सेना से उसका युद्ध हुआ। इस युद्ध में गौरी बुरी तरह परास्त होकर अपनी जान बचाकर भाग गया। यह भारत में उसकी पहली पराजय थी।
ई.1179 में गौरी ने पेशावर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। ई.1181 में गौरी ने दूसरा तथा ई.1185 में तीसरा आक्रमण करके स्यालकोट तक का प्रदेश जीत लिया। अंत में लाहौर को भी उसने अपने प्रांत का अंग बना लिया। ई.1182 में उसने निचले सिंध पर आक्रमण करके ‘देवल’ के शासक को अपने अधीन किया। पंजाब पर अधिकार कर लेने से गौरी के अधिकार क्षेत्र की सीमा, चौहान शासक पृथ्वीराज (तृतीय) के राज्य से आ लगीं। पृथ्वीराज ई.1179 में अजमेर, सांभर एवं दिल्ली का शासक बना था।
भारत के इतिहास में वह पृथ्वीराज चौहान तथा ‘रायपिथौरा’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब मुहम्मद गौरी पंजाब एवं सिंध पर अधिकार करके पृथ्वीराज पर अपना शिकंजा कस रहा था तब पृथ्वीराज, अपने ही देश के शासकों को अपने अधीन लाने के लिये दिग्विजय पर निकला। ई.1182 में उसने भण्डानकों का दमन किया। उसी वर्ष उसने चंदेलों का दमन किया। गुजरात के चौलुक्यों से चौहानों की परम्परागत शत्रुता चली आ रही थी जो पृथ्वीराज (तृतीय) के समय चरम पर पहुंच गई। ई.1187 में पृथ्वीराज ने चौलुक्यों पर आक्रमण करके उन्हें पराजित किया। उसी वर्ष पृथ्वीराज चौहान ने आबू के परमार शासक ‘धारावर्ष’ को भी हराया।
जैसे दक्षिण-पश्चिम के चौलुक्य, चौहानों के शत्रु थे, वैसे ही उत्तर-पूर्व के गहड़वाल, चौहानों के शत्रु थे। जब पृथ्वीराज ने नागों, भण्डानकों तथा चंदेलों को परास्त कर दिया तो कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचंद्र में पृथ्वीराज के प्रति ईर्ष्या जागृत हुई तथा दोनों राज्यों में युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में जयचंद पराजित हुआ और वह पृथ्वीराज का बाल भी बांका न कर सका। पृथ्वीराज के समय में मेवाड़ पर गुहिलवंशी राजा सामंतसिंह का शासन था। सामंतसिंह, पृथ्वीराज का सच्चा मित्र, हितैषी और शुभचिंतक था।
पृथ्वीराज का राज्य सतलज नदी से बेतवा तक तथा हिमालय के नीचे के भागों से लेकर आबू तक विस्तृत था। इधर पृथ्वीराज अपनी दिग्विजय यात्रा में व्यस्त था और उधर मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज को घेरता जा रहा था। ‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच 21 लड़ाइयां हुईं जिनमें चौहान विजयी रहे। ‘हम्मीर महाकाव्य’ ने पृथ्वीराज द्वारा सात बार गौरी को परास्त किया जाना लिखा है। ‘पृथ्वीराज प्रबन्ध’ आठ बार हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का उल्लेख करता है। ‘प्रबन्ध कोष’ का लेखक बीस बार गौरी को पृथ्वीराज द्वारा कैद करके मुक्त करना बताता है। ‘सुर्जन चरित्र’ में 21 बार और ‘प्रबन्ध चिन्तामणि’ में 23 बार गौरी का हारना अंकित है।
ई.1189 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के दुर्गपति से भटिण्डा का दुर्ग छीन लिया। ई.1191 में जब मुहम्मद गौरी, तबरहिंद (सरहिंद) जीतने के बाद आगे बढ़ा तो पृथ्वीराज ने करनाल जिले के तराइन के मैदान में उसका रास्ता रोका। यह लड़ाई भारत के इतिहास में तराइन की प्रथम लड़ाई के नाम से जानी जाती है। युद्ध के मैदान में गौरी का सामना दिल्ली के राजा गोविंदराय से हुआ। मुहम्मद गौरी ने गोविंदराय पर भाला फैंक कर मारा जिससे गोविंदराय के दो दांत बाहर निकल गये।
गोविंदराय ने भी प्रत्युत्तर में अपना भाला गौरी पर देकर मारा। गौरी बुरी तरह घायल हो गया और उसके प्राणों पर संकट आ खड़ा हुआ। यह देखकर एक खिलजी सैनिक उसे घोड़े पर बैठाकर मैदान से ले भागा। बची हुई फौज में भगदड़ मच गई। राजपूतों ने चालीस मील तक गौरी की सेना का पीछा किया। मुहम्मद गौरी लाहौर पहुँचा तथा अपने घावों का उपचार करके गजनी लौट गया। पृथ्वीराज ने आगे बढ़कर गौरी के सेनापति काजी जियाउद्दीन से तबरहिंद का दुर्ग छीन लिया। काजी को बंदी बनाकर अजमेर लाया गया जहाँ उससे विपुल धन लेकर उसे छोड़ दिया।
ई.1192 में मुहम्मद गौरी 1,20,000 सैनिक लेकर पुनः पृथ्वीराज से लड़ने के लिये भारत की ओर आया। हरबिलास शारदा के अनुसार कन्नौज के राठौड़ों तथा गुजरात के सोलंकियों (चौलुक्यों) ने एक साथ षड़यंत्र करके शहाबुद्दीन को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिये आमंत्रित किया। गौरी को कन्नौज तथा जम्मू के राजाओं द्वारा सैन्य सहायता उपलब्ध करवाई गई। जब गौरी, लाहौर पहुँचा तो उसने अपना दूत अजमेर भेजकर पृथ्वीराज से कहलवाया कि वह इस्लाम स्वीकार कर ले और गौरी की अधीनता मान ले।
पृथ्वीराज ने उसे प्रत्युत्तर भिजवाया कि वह गजनी लौट जाये अन्यथा उसकी भेंट युद्ध स्थल में होगी। इसके बाद मुहम्मद गौरी ने संधि की बात चलाई। संधिवार्त्ता ने पृथ्वीराज को भुलावे में डाल दिया। वह थोड़ी सी सेना लेकर तराइन की ओर बढ़ा, बाकी सेना जो सेनापति स्कंद के साथ थी, वह उसके साथ न जा सकी। पृथ्वीराज का दूसरा सेनाध्यक्ष उदयराज भी समय पर अजमेर से रवाना न हो सका। पृथ्वीराज का मंत्री सोमेश्वर जो युद्ध के पक्ष में न था तथा पृथ्वीराज के द्वारा दण्डित किया गया था, वह अजमेर से रवाना होकर शत्रु से जा मिला।
जब पृथ्वीराज की सेना तराइन के मैदान में पहुँची तो संधिवार्त्ता के भ्रम में आनंद में मग्न हो गई तथा रात भर उत्सव मनाती रही। उधर गौरी ने चौहानों को भ्रम में डाले रखने के लिये, अपने शिविर में भी रात भर आग जलाये रखी और अपने सैनिकों को शत्रुदल के चारों ओर घेरा डालने के लिये रवाना कर दिया। ज्योंही प्रभात हुआ, राजपूत सैनिक शौचादि के लिये बिखर गये। ठीक इसी समय तुर्कों ने अजमेर की सेना पर आक्रमण कर दिया। चारों ओर भगदड़ मच गई। पृथ्वीराज जो हाथी पर चढ़कर युद्ध में लड़ने चला था, अपने घोड़े पर बैठकर शत्रु दल से लड़ता हुआ मैदान से भाग निकला।
वह सिरसा के आसपास गौरी के सैनिकों के हाथ लग गया और मारा गया। गोविंदराय और अनेक सामंत, वीर योद्धाओं की भांति लड़ते हुए काम आये। तराइन की पहली लड़ाई का अमर विजेता दिल्ली का राजा तोमर गोविन्दराज तथा गुहिल राजा सामंतसिंह भी तराइन की दूसरी लड़ाई में मारे गये। तुर्कों ने भागती हुई हिन्दू सेना का पीछा किया तथा उन्हें बिखेर दिया। ई.1192 में चौहान पृथ्वीराज (तृतीय) की मृत्यु के साथ ही भारत का इतिहास मध्यकाल में प्रवेश कर जाता है।
इस समय भारत में दिल्ली, अजमेर तथा लाहौर प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे। ये तीनों ही मुहम्मद गौरी और उसके गवर्नरों के अधीन चले गये। गौरी का भारत पर अंतिम आक्रमण ई.1194 में कन्नौज के गहरवारों पर हुआ। इस युद्ध में कन्नौज का राजा जयचंद मारा गया तथा उसका राज्य समाप्त हो गया।
मुहम्मद गौरी के भारत आक्रमणों के गहरे परिणाम सामने आये। पंजाब तथा सिंध पर तो महमूद गजनवी के समय से ही मुसलमानों का अधिकार हो गया था किंतु ई.1192 में हुई तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद अजमेर, दिल्ली, हांसी, सिरसा, समाना तथा कोहराम के क्षेत्र मुहम्मद गौरी के अधीन हो गये। हिन्दू धर्म की बहुत हानि हुई। मन्दिर एवम् पाठशालायें ध्वस्त कर अग्नि को समर्पित कर दी गईं।
हजारों-लाखों ब्राह्मण मौत के घाट उतार दिये गये। स्त्रियों का सतीत्व भंग किया गया। हजारों हिन्दू योद्धा मार डाले गये। इससे चौहानों एवं गहरवारों की सामरिक शक्ति नष्ट हो गई तथा अन्य हिन्दू राजाओं का मनोबल टूट गया। जैन साधु उत्तरी भारत छोड़कर नेपाल तथा तिब्बत आदि देशों को भाग गये। भारत की अपार सम्पति म्लेच्छों के हाथ लगी। उन्होंने पूरे देश में भय और आतंक का वातावरण बना दिया जिससे पूरे देश में हाहाकार मच गया। भारत में दिल्ली, अजमेर तथा लाहौर प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे और ये तीनों ही मुहम्मद गौरी और उसके गवर्नरों के अधीन चले गये।
मुहम्मद गौरी ने अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का गवर्नर नियुक्त किया जिससे दिल्ली में पहली बार मुस्लिम सत्ता की स्थापना हुई। भारत की हिन्दू प्रजा मुस्लिम सत्ता की गुलाम बनकर रहने लगी। हिन्दुओं के तीर्थ स्थल बनारस पर भी मुहम्मद गौरी का गवर्नर नियुक्त हो गया। ई.1206 में मुहम्मद गौरी, पंजाब में हुए खोखर विद्रोह को दबाने के लिये भारत आया। जब वह विद्रोह का दमन करके वापस गौर को लौट रहा था, मार्ग में झेलम के किनारे एक खोखर ने उसकी हत्या कर दी। उसके गुलाम ताजुद्दीन याल्दुज ने गजनी पर तथा कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारतीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता