जब ग्यारहवीं शताब्दी में महमूद गजनवी और बारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गौरी, भारत पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे, तब इन दो शताब्दियों में, मेवाड़ के गुहिलों को अपने पड़ौसी राज्यों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा। मालवा के परमार राजा मुंज ने आहाड़ नगर को तोड़ा तथा चित्तौड़ का दुर्ग एवं उसके आसपास का प्रदेश अपने राज्य में मिला लिया।
मुंज के उत्तराधिकारी सिंधुराज का पुत्र भोज, चित्तौड़ के दुर्ग में रहा करता था। शक्तिकुमार तथा अंबाप्रसाद के काल में गुहिलों की शक्ति और भी क्षीण हो गई। अंबाप्रसाद को सांभर के चौहान राजा वाक्पतिराज (द्वितीय) ने ससैन्य यमराज के पास पहुंचाया किंतु अंबाप्रसाद के बाद भी मेवाड़ के गुहिलों का शासन बना रहा। इस काल में ये राजा, आहाड़ को अपनी राजधानी बनाकर अपना अस्तित्व बनाये रहे।
चित्तौड़ की वापसी
बारहवीं शताब्दी ईस्वी में मेवाड़ के गुहिल वंश में ‘रणसिंह’ अथवा ‘कर्णसिंह’नामक राजा हुआ। उससे गुहिलोतों की दो शाखाएं निकलीं। एक शाखा रावल कहलाने लगी जिसका चित्तौड़ पर शासन हुआ और दूसरी शाखा राणा कहलाने लगी जिसका सीसोदा की जागीर पर अधिकार था।
रावल शाखा में सामंतसिंह नामक राजा हुआ जिसने ई.1174 के लगभग, चौलुक्य राजा कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल को युद्ध में परास्त कर बुरी तरह घायल किया तथा चित्तौड़ का दुर्ग पुनः गुहिलों के अधिकार में किया।
जब सामंतसिंह, अजयपाल से लड़कर कमजोर हो गया तो नाडोल के चौहान कीर्तिपाल (कीतू) ने सामंतसिंह पर आक्रमण करके सामंतसिंह का राज्य छीन लिया। संभवतः इसी काल में गुजरात के चौलुक्यों ने आहाड़ पर भी अधिकार कर लिया। इस पर सामंतसिंह के छोटे भाई कुमारसिंह ने कीतू को देश से निकाला तथा गुजरात के राजा को प्रसन्न कर आहाड़ प्राप्त किया और स्वयं राजा बन गया।
जब चित्तौड़ और आहाड़ पर कुमारसिंह का अधिकार हो गया तो सामंतसिंह ने वागड़ के क्षेत्र में जाकर नया राज्य स्थापित किया जो बाद में डूंगरपुर राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी डूंगरपुर राज्य में से, आगे चलकर बांसवाड़ा राज्य का निर्माण हुआ।
आहाड़ को फिर से अपने अधिकार में लेने वाले राजा कुमारसिंह के वंश में जैत्रसिंह नामक प्रतापी राजा हुआ। उसके समय के शिलालेखों एवं ख्यातों आदि से जैत्रसिंह के ई.1213 से 1252 तक चित्तौड़ का शासक होने की पुष्टि होती है किंतु जैत्रसिंह इस अवधि से पहले एवं इस अवधि के बाद भी चित्तौड़ पर शासन करता रहा था। ई.1206 में दिल्ली में मुसलमानों की सत्ता स्थापित होने के बाद, जैत्रसिंह का चित्तौड़ की गद्दी पर आसीन होना हिन्दू जाति एवं भारत राष्ट्र के लिये सौभाग्य की बात थी।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता