Sunday, February 23, 2025
spot_img

वैर दुर्ग

वैर दुर्ग अठारहवीं शताब्दी ईस्वी का लघु स्थल दुर्ग है। इसे राजा बदनसिंह ने बनवाया। राजा बदनसिंह को जयपुर नरेश ने अपने हाथों से तिलक करके भरतपुर का राजा स्वीकार किया था। मुगल बादशाह ने भी बदनसिंह को राजा स्वीकार किया। इस कारण बदनसिंह को ही ब्रज के जाटों का पहला राजा माना जाता है।

राजा बदनसिंह ने ई.1726 में डीग और भरतपुर के बीच स्थित वैर तथा कुम्हेर में अपेक्षाकृत छोटे दुर्ग बनवाये। उसने बड़े पुत्र सूरजमल को कुम्हेर तथा छोटे पुत्र प्रतापसिंह को वैर दुर्ग प्रदान किया ताकि दोनों भाइयों में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष न हो। वैर, भरतपुर से 60 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।

वैर दुर्ग समतल भूमि पर निर्मित है। दुर्ग की दीवार 7 फुट की मोटाई तथा 125 फुट की ऊँचाई में पत्थर तथा चूने से निर्मित है। दुर्ग की पूर्वी दीवार 525 फुट लम्बी है जिसके दोनों किनारों पर 30 फुट व्यास की बुर्ज बनी हुई हैं। दक्षिण दिशा की दीवार लगभग 370 फुट लम्बी है जहाँ 30 फुट व्यास की बुर्ज बनी हुई है।

इस बुर्ज से उत्तर दिशा में समकोण बनाती दीवार लगभग 75 फुट लम्बी है। पुनः समकोण में पश्चिम दिशा में 160 फुट पर, पश्चिम-दक्षिण दिशा में 40 फुट व्यास की बुर्ज से मिल जाती है। पश्चिम दिशा की दीवार 370 फुट है जिसकी उत्तर दिशा में 40 फुट व्यास की बुर्ज है। यहाँ से 150 फुट की दीवार पूर्व दिशा में जाकर पुनः उत्तर दिशा में 90 फुट तक जाती है जहाँ 40 फुट व्यास की बुर्ज है। इस प्रकार दुर्ग की आकृति दो संयुक्त आयोजित आयतों जैसी बनती है।

दुर्ग की उत्तरी दीवार पर 60 फुट व्यास में एक बुर्ज बनी हुई है जिसमें 27 कंगूरे तथा लोहे की 18 फुट लम्बी तोप रखी हुई है। पूर्वी दीवार में 90 फुट व्यास की बुर्ज है। इसके ऊपर भी लोहे की 18 फुट लम्बी तोप रखी हुई है। इस बुर्ज पर चढ़ने वाली सीढ़ियों के दोनों ओर 28 गुणा 9 फुट के युगल बरामदे बने हुए हैं जो तोपचियों के रहने के काम आते थे।

वैर दुर्ग की उत्तरी दीवार में गोला-बारूद रखने के लिये लम्बी सुरंगें बनी हुई हैं तथा दीवारों पर चढ़ने के लिये सीढ़ियां हैं। पूर्व की दीवार दोहरी है जिनके बीच में 10 फुट का अंतराल है ताकि दुश्मन के हमले से बाहरी दीवार टूटने पर, अंदर की दीवार दुर्ग को गिरने से बचा सके।

साठ फुट लम्बी उत्तरी दीवार में दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार है जो भूमि से 60 सीढ़ी ऊँचा है। सीढ़ियों के मध्य में सपाट है ताकि रथ एवं अन्य वाहन आसानी से निकल सकें। दरवाजे की चौड़ाई सवा आठ फुट तथा ऊँचाई ग्यारह फुट है। मुख्य दरवाजे के बाहर एवं अंदर बरामदे बने हुए हैं। दक्षिण दिशा में इस तरह का दूसरा दरवाजा है। दोनों दरवाजों पर लकड़ी के मोटे किवाड़ हैं जिन पर लोहे की चादर चढ़ी हुई हैं तथा लोहे की कीलें लगी हुई हैं।

वैर दुर्ग की दीवार के लगभग 250 फुट के बाद 100 फुट चौड़ी पक्की परिखा (नहर) है। जबकि भरतपुर और डीग दुर्ग में नहरें किलों की दीवारों से सटी हुई हैं। वैर किले के पूर्वी एवं उत्तरी दिशा में कस्बा बसा हुआ है। कस्बे के चारों ओर मिट्टी का परकोटा था। गढ़ में बयाना, भरतपुर, कुम्हेर, भुसावर एवं सीता नामक पांच बड़े दरवाजे तथा दो खिड़की दरवाजे बने हुए हैं। वैर दुर्ग में कई सुरंगें, कुएं, बावड़ियां आदि थीं जिनमें से अब कुछ ही देखने को मिलती हैं।

दीवाने आम

वैर दुर्ग के अंदर मुगल स्थापत्य के अनुकरण में पश्चिम दिशा की दीवार के मध्य 3.5 फुट की ऊँचाई पर 91 फुट चौड़ा तथा 35 फुट लम्बा चबूतरा बना हुआ है जिसे दीवाने आम कहा जाता है। इसके बाद 1.5 फुट की ऊँचाई पर 77 फुट चौड़ा एवं 16 फुट लम्बा बरामदा है जिसमें 7 दरवाजे हैं। इसके बीच वाले एवं दोनों तरफ वाले दरवाजों की चौड़ाई सवा आठ फुट तथा ऊँचाई 10 फुट है। मध्य दरवाजे के दोनों तरफ के दरवाजों की चौड़ाई 5.5 फुट तथा ऊँचाई 9.5 फुट है।

अंदर वाला दूसरा बरामदा 35 फुट चौड़ा एवं 12.5 फुट लम्बा है। इसके दायीं और बायीं तरफ के दोनों दरवाजे बंद करके कोठरी बना दी गई है तथा पांच दरवाजे खुले हैं जिनमें मध्य का दरवाजा बड़ा है जबकि दायीं और बायीं तरफ के चारों दरवाजे छोटे हैं। दीवाने आम में 2.7 फुट की ठेई पर युगल खम्भे बने हुए हैं जो कि सफेद पत्थर के और तराशे हुए हैं।

खम्भों के ऊपरी तथा निचले हिस्सों में कलात्मक कमल पंखुड़ियां उकेरी गई हैं। इस बरामदे से 2 फुट की ऊँचाई पर मध्य दरवाजे के सामने 4.5 इंच मोटाई के खम्भों से 2.4 फुट चौड़ाई के तीन दरवाजों एवं 23 फुट चौड़ाई और 8 फुट लम्बाई का अंतिम बरामदा बनाया गया है। इसके खम्भे पतले एवं मुगल स्थापत्य शैली के हैं।

अंतिम बरामदे की छत भी मुगल स्थापत्य शैली में मेहराबदार बनाई गई है। इस बरामदे के पिछले हिस्से में भी तीन छोटे दरवाते हैं जहाँ से फुलवाड़ी दिखाई पड़ती थी। दीवाने आम के नीचे वाले भाग की तरह ऊपर वाले भाग की मंजिल बनी हुई है किंतु इसमें पीछे की तरफ के दरवाजे नहीं हैं।

दीवाने आम के दायीं और बायीं तरफ सीढ़ियां हैं तथा दक्षिण एवं उत्तर के दरवाजे तक 18-18 दरवाजों के दो-मंजिले बरामदे बने हुए हैं। इन दरवाजों के खम्भे सुदृढ़ एवं मोटे हैं जिन्हें जाट स्थापत्य शैली का कहा जा सकता है।

राजा का महल

वैर दुर्ग के दक्षिण द्वार की पूर्वी दिशा में राजा का महल है जिसकी चौड़ाई 100 फुट और लम्बाई 170 फुट है। प्रवेशद्वार 63 गुणा 36 फुट के चौक में खुलता है। इसके दोनों ओर 5-5 दरवाजों के 10-10 फुट गहरे बरामदे बने हुए हैं।

चौक से 1.5 फुट की ऊँचाई पर विशाल संयुक्त खम्भों से बना 20 फुट ऊँचाई का दोहरा बरामदा है। इसमें 5 दरवाजे हैं तथा 3.5 फुट की ठेई पर 34 विशाल खम्भे लगे हुए हैं। पूर्व की तरफ 2 मंजिले 20 फुट की गहराई वाले पतले खम्भेदार बरामदे बने हुए हैं तथा पश्चिम में 10 फुट गहराई के बरामदे बने हुए हैं।

बड़े बरामदे के बीच वाले दरवाजे के सामने छोटा दरवाजा है जिसके अंदर एवं बाहर की तरफ मेहराबदार छज्जे बने हुए हैं। यह मुख्य दरवाजा 5 फुट की ऊँचाई पर बना हुआ है तथा दोनों तरफ दीवारें चिनी हुई हैं। 57 गुणा 51 फुट का दूसरा चौक है जिसके दक्षिण में दरवाजे के ठीक सामने विशाल कुआं बना हुआ है तथा दोनों तरफ कोठरी बनी हुई हैं।

चौक में बाहर के बरामदों की तरफ दोनों ओर बदामदे बने हुए हैं जिनमें पतले और नक्काशीदार खम्भे हैं। इस महल में अनेक तहखाने एवं सुरंगें बनी हुई हैं जो कि महल की दीवारें टूटने से बंद हो चुकी हैं। महल के पूर्व में स्थित रानी के महल एवं ब्रज दूल्हे के मंदिर में जाने हेतु छोटे-बड़े दरवाजे बने हुए हैं।

ब्रज दूल्हे का मंदिर

राजा प्रतापसिंह ने पूजा-पाठ के लिये ब्रज दूल्हे भगवान के मंदिर का निर्माण करवाया। इसमें भगवान श्रीकृष्ण तथा राधा रानी की अष्टधातु प्रतिमाएं स्थापित करवाईं। फरवरी 1985 में अष्ट धातु की लगभग एक क्विंटल वजनी तथा तीन फुट ऊँचाई वाली प्रतिमा चोरी चली गई तथा मंदिर को भी तोड़ दिया गया।

शीश महल (रानी का महल)

ब्रज दूल्हे मंदिर की पूर्व दिशा में शीश महल बना हुआ है। इसकी लम्बाई 170 फुट तथा चौड़ाई 100 फुट है। यह तीन मंजिला भवन है। ड्यौढ़ी में प्रवेश करते समय बायीं तरफ 7 दरवाजों के बरामदे बने हुए हैं और बीच में खुला स्थान है। मुख्य दरवाजा तीन मंजिला है जिसके ऊपर मेहराबदार छत है और छज्जे लगे हुए हैं।

दरवाजे के ऊपर की दोनों मंजिलों में छोटे-छोटे तीन दरवाजे हैं। बगल वाले दोनों दरवाजे पत्थर की जालियों से बंद हैं। रानी के महल की दक्षिण-पश्चिम दिशा में दोहरे बरामदे तथा कोठरियां बनी हुई हैं। राजा के महल में पूर्वी दिशा में दोहरे बरामदे एवं कोठरियां बनाई गई हैं। इस महल में हवा एवं प्रकाश की उत्तम व्यवस्था है।

फुलवाड़ी

दुर्ग की पश्चिम दिशा में महाराजा सूरजमल के छोटे भाई राजा प्रतापसिंह ने 95 बीघा भूमि में मनोरम फुलवाड़ी का निर्माण करवाया जिसकी क्यारियां एवं नालियां पक्की हैं। इसका आधार आसपास की भूमि से 5 फुट ऊँचा है। फुलवाड़ी की सिंचाई हेतु 7 पक्के कुएं बनाए गए थे जिनमें से अधिकतर खण्डहर हो चुके हैं।

इस फुलवाड़ी में आम, नीबू, संतरा, मोरछली, इमली, कैथ आदि के फलदार वृक्ष लगे हुए थे। कुओं के अतिरिक्त नहर के किनारे पक्के और ऊँचे घाट बने हुए हैं। फुलवाड़ी में मदनमोहनजी का मंदिर बना हुआ है जिसके ऊपर पक्का तालाब है। इससे फुलवाड़ी के फव्वारे चलाए जाते थे।

फुलवाड़ी के अंदर धरती से लगभग 8 फुट की ऊँचाई पर सफेद पत्थर का कलात्मक महल है जिसमें से एक सुरंग दुर्ग के भीतर तक जाती थी। इस सुरंग के रास्ते राजा, सफेद महल के दरवाजे से गढ़ के हनुमानजी के दर्शन करता था। यह मंदिर सीता दरवाजे तथा भुसावर दरवाजे के बीच स्थित खिड़की दरवाजे के समीप फुलवाड़ी में बना हुआ है।

इस फुलवाड़ी में एक लाल महल भी बनवाया गया था जो अब खण्डहर हो गया है। सफेद महल के सामने 30 बीघा में विविध आकृतियों में पक्के चूने की क्यारियां बनवाई गई थीं। ये क्यारियां धरती से 2 से 3 फुट तक ऊँची हैं।

इस प्रकार वैर दुर्ग भरतपुर के राजाओं के वैभव एवं समृद्धि की कहानी कहता है तथा दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source