Sunday, September 8, 2024
spot_img

राजस्थान में वन एवं वन्यजीवन

राजस्थान में वन एवं वन्यजीवन शीर्षक से लिखी गई पुस्तक में मरुस्थलीय प्रांत राजस्थान के शुष्क वनों एवं उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं की विस्तृत जानकारी दी गई है। साथ ही इन वनों एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिए किए गए संवैधानिक प्रावधानों, नियमों, कानूनों, वन्यजीव संरक्षण संस्थाओं आदि को भी विस्तार से लिखा गया है।

राजस्थान की धरती पर मिट्टी, हवा और जल ने मिलकर करोड़ों वर्ष की अवधि में अद्भुत वनों का समृद्ध संसार रचा था किंतु आदमी नामक भयानक प्राणी कुछ हजार वर्षों की संक्षिप्त अवधि में उस सुंदर संसार को निगल गया। पेड़ काट डाले, जंगली पशु मार डाले, पंछियों के पंख नौंच डाले, वनौषधियों के विपुल भण्डारों को नष्ट कर दिया और धरती को हर तरह से श्री-विहीन कर दिया।

To purchase this book please click on image.

प्रदेश में एक तिहाई भूमि पर वन होने चाहिये, 26.75 प्रतिशत भूमि वनों के लिये छोड़ी हुई है किंतु केवल 9.52 प्रतिशत भूमि पर वन खड़े हैं। वनाच्छादित क्षेत्र तो केवल 3.8 प्रतिशत ही है।

आज भी राजस्थान के जंगलों में पेड़ काटने वाले, बाघों की निर्मम हत्या कर उनकी खाल खींचने वाले, पशुओं की तस्करी करने वाले घूम रहे हैं। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 10 साल में भारत में 1,000 बाघ मारे गये। अर्थात् देश में हर वर्ष लगभग 100 बाघों की निर्मम हत्या की जा रही है। यह रिपोर्ट वन संरक्षण में लगे कर्मचारियों की विफलता की पोल खोलती है तथा वन्यजीवों के हत्यारों के दुस्साहस को उजागर करती है।

कहा जाता है कि जब तक बाघ जीवित है, तब तक ही जंगल जीवित हैं। बाघ जंगल को गति देता है, जीवन देता है, समृद्धि देता है और जंगल को जंगल बनाये रखता है। जब हम बाघों को ही नहीं बचा पाये तो जंगल में मौन खड़े पेड़, निरीह हिरण और मासूम खरगोश कैसे बच सकते हैं, समझा जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन पर भारतीय आकलन तंत्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2030 तक भारत में समुद्र तटीय तापक्रम में 1 से 4 डिग्री और थलीय भागों में 1.7 से 2.2 डिग्री सैल्सियस तापक्रम बढ़ेगा। हिमालयी क्षेत्रों में सूखा पड़ेगा और मैदानों में बाढ़ आयेगी। यदि धरती को बचाना है तो जंगल बचाने होंगे और यदि जंगल को बचाना है तो बाघ बचाने होंगे। बाघों के माध्यम से ही तेजी से उजड़ रहे संसार को फिर से रचा जा सकता है, सूखे जंगलों में फिर से प्राण फूंके जा सकते हैं।

लुप्त हो चुकी प्रजातियाँ तो अब लौट कर नहीं आयेंगी किंतु लुप्त होने के कगार पर बैठी प्रजातियों को बचाया जा सकता है किंतु यह तभी किया जा सकता है जब आदमी नामक लालची प्राणी वनों के विनाश से उत्पन्न हुई समस्या का वास्तविक अर्थ समझे।

यदि वनों को जीवित रखना है तो वनों को समझना आवश्यक है। वनों और वन्यपशुओं के परस्पर सम्बन्ध को समझना आवश्यक है। यह पुस्तक राजस्थान में वन एवं वन्यजीवन की उपलब्धता, उनके स्वभाव, उसके संरक्षण की आवश्यकता आदि विविध पक्षों पर प्रकाश डालने का एक प्रयास है।

राजस्थान में वन एवं वन्यजीवन का प्रथम संस्करण वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। उस संस्करण को बिके हुए कई वर्ष हो गए किंतु मैं समय की न्यूनता के कारण इसे समय पर पुनः प्रकाशित नहीं करवा सका। अब वर्ष 2022 में इस पुस्तक का संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है प्रथम संस्करण की तरह यह संस्करण भी जिज्ञासु पाठकों, वन रक्षकों, वन्यजीव प्रेमियों, प्रतियोगी परीक्षार्थियों, शोधार्थियों एवं विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source