Sunday, December 22, 2024
spot_img

राजस्थान के प्रमुख अभिलेखागार

राजस्थान के प्रमुख अभिलेखागार पुस्तक में मानव जाति द्वारा अब तक संचित ज्ञान के अभिलेख की जानकारी दी गई है। इन अभिलेखागारों में लाखों ऐसी पुस्तकें हैं जिन्हें विगत कई हजार वर्षों से पढ़ा ही नहीं गया है।

मनुष्य ने जब से लिखने की कला का आविष्कार किया है, उसने लकड़ी की तख्तियों, पत्थर की शिलाओं, पहाड़ों की कंदराओं, वृक्षों की छालों, कपड़ों, पशुओं के चमड़ों, मिट्टी की मुद्राओं, ईंटों, धातु के सिक्कों, ताम्बे की प्लेटों, भोजपत्रों तथा कागजों पर सूचनाओं को अंकित करने का काम जारी रखा है। इसमें से बहुत सी सामग्री संरक्षण के अभाव में एवं स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत नष्ट हो जाती है। बहुत कम सामग्री ऐसी भी होती है जो शासकों, पुजारियों, भाटों, विशिष्ट व्यक्तियों एवं धनी परिवारों आदि द्वारा अलग-अलग कारणों से संजोकर रखी जाती है।

भारत में सबसे प्राचीन लेख सिंधु सभ्यता के हैं जिन्हें लिपि की जटिलता के कारण अब तक पढ़ा नहीं गया है। ये लेख प्रायः मिट्टी की मुद्राओं एवं मिट्टी के बर्तनों पर अंकित हैं। जब प्राचीन भारतीय आर्य राजा किसी बड़े यज्ञ, समारोह या दान-पुण्य का आयोजन करते थे या किसी शत्रु पर विजय प्राप्त करते थे तो उस घटना की स्मृति में शिलालेख खुदवाते थे अथवा सोने-चांदी के सिक्के जारी करते थे या देव प्रतिमाओं के नीचे प्रमुख सूचनाएं अंकित करवाते थे।

भारतीय राजा जब किसी ब्राह्मण या मंदिर को भूमि आदि का दान देते थे तो उसका अधिकार पत्र प्रायः ताम्बे की प्लेट पर अंकित करवाकर उस पर राजकीय चिह्न अंकित करवाते थे।

मुगल बादशाहों ने शासकीय आदेश प्रायः लिखित दस्तावेजों के रूप में जारी किए। उनके अनुकरण में हिन्दू राजाओं में भी यह परम्परा आरम्भ हुई। मराठों ने जब देश-व्यापी युद्ध अभियान चलाए तो उन्होंने भी लिखित आदेश-पत्रों, संधि-पत्रों, नियुक्ति-पत्रों एवं अन्य प्रकार के दस्तावेजों का सहारा लिया।

To purchase this book please click on image.

अंग्रेजों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय से ही व्यापारिक गतिविधियों के लिए देश के विभिन्न राजाओं, नवाबों, सेठ-साहूकारों एवं प्रमुख व्यक्तियों के साथ लिखित पत्राचार किए। ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा ब्रिटिश क्राउन के अधीन अंग्रेजों की शासन पद्धति मौखिक न रहकर पूर्णतः लिखित रही। ख्यातिनाम एवं बड़े सेठ-साहूकार, दुकानदार तथा बैंकर भी अपनी बहियों, रोजनामचों, खरीतों, हुण्डियों एवं पत्रों के माध्यम से व्यापारिक सूचनाओं का रख-रखाव एवं लेन-देन करते थे।

इस प्रकार देश में विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों का बहुत बड़ा संग्रह तैयार होता चला गया। अंग्रेजों के समय देश में इन विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों को अभिलेखागारों में संजोने की परम्परा आरम्भ हुई। भारत की आजादी के समय शायद ही ऐसी कोई बड़ी रियासत, ठिकाना, व्यापारिक प्रतिष्ठान, शासकीय कार्यालय, गुरुकुल या विश्वविद्यालय था जहाँ बड़ी संख्या में पोथियां, बहियां, रुक्के, परवाने, चिट्ठियां, शासकीय आदेश आदि की पत्रावलियां आदि मौजूद न हों।

इन समस्त दस्तावेजों को भारत के वास्तविक इतिहास का निर्माण करने के लिए प्रमुख सामग्री के रूप में देखा गया। अतः आजादी के बाद देश में राजकीय अभिलेखागारों की स्थापना हुई तथा बड़ी संख्या में निजी अभिलेखागार भी अस्तित्व में बने रहे।

प्रस्तुत पुस्तक में राजस्थान के कतिपय प्रमुख अभिलेखागारों में संजोई गई सामग्री का परिचय दिया गया है। अभिलेखागारों का भ्रमण एवं अवलोकन प्रायः शोधार्थियों द्वारा किया जाता है। विश्व के बहुत से देशों के विद्यार्थी प्रतिवर्ष भारत आते हैं। वे विश्व के प्राकृतिक इतिहास, कला एवं संस्कृति के विविध पक्षों पर शोध करते हैं।

भारत के अनेक राज्यों के विद्यार्थी भी प्रतिवर्ष राजस्थान के अनेक अभिलेखागारों का भ्रमण करते हैं तथा यहाँ कई दिन रुककर अध्ययन एवं शोधकार्य करते हैं। जहाँ राज्य के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठानों में प्राचीन पाण्डुलिपियों, चित्रमालाओं, बीजक एवं यंत्रों को संगृहीत किया गया है, वहीं राजस्थान राज्य अभिलेखागार एवं उसकी शाखाओं में रियासती दस्तावेजों, बहियों आदि को रखा गया है।

राजस्थान के ठिकाना अभिलेख विश्व भर में सबसे अनूठे हैं। उन्हें भी इस पुस्तक में समेटने का प्रयास किया गया है। साथ ही बहुत से व्यक्तियों एवं परिवारों द्वारा भी प्राचीन एवं मध्यकालीन अभिलेखों का संग्रहण किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में उनका भी परिचय दिया गया है।

आशा है यह पुस्तक शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों, पर्यटकों एवं विभिन्न वर्गों के पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source