राजस्थानी भाषा की बोलियाँ बहुत सारी हैं। इनमें से कुछ बोलियां तो काल के गाल में समाकर समाप्त हो चुकी हैं और कुछ बोलियां राजस्थान प्रांत के अलग-अलग क्षेत्रों में एवं अलग-अलग जातियों में प्रचलन में हैं।
राजस्थानी भाषा सम्पूर्ण राजस्थान में प्रचुरता से बोली जाती है। राजस्थान से बाहर जहाँ कहीं भी राजस्थानी लोग निवास करते हैं वहाँ भी राजस्थानी भाषा बोली जाती है। इस भाषा की इतनी अधिक बोलियाँ हैं कि प्रत्येक 10-12 किलोमीटर की दूरी पर बोली बदल जाती है। राजस्थान में रहने वाली प्रत्येक जाति की अपनी बोली है जो कुछ अंतर के साथ बोली जाती है।
राजस्थानी भाषा की बोलियाँ इस प्रकार से हैं- अहीरी, भोपाली, लुहारी, जंभूवाल, कोरा बंजारी, अहीरवाटी, भोपारी, गाडौली, लमानी, अगरवाली, भुआभी, गोडवानी, जैसलमेरी, अजमेरी, बीकानेरी, गोजरी, झामरल, लश्करी, अलवरी, चौरासी, गोल्ला, जोधपुरी, बाचड़ी, छेकरी, लाहोरी राजस्थानी, गुजरी, कालबेली, बागड़ी, अंडैरी, गर्वी, खेराड़ी, महाजनी, ढांडी, हाड़ौती, कांचवाड़ी, बंगाला, ढूण्डारी, हत्तिया की बोली, खण्डवी, महाराजशाही, बनजारी, डिंगल, किर, महेसरी, बेतुली, गाड़िया, जयपुरी, किशनगढ़ी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, नीमाड़ी, राजहरी, सिपाड़ी, गांेड़ी मारवाड़ी, मेवाती, ओसवाली, राजवाटी, सोंडवाड़ी, नागौरी, पल्वी, राजपुतानी, टडा, मेजवाड़ी, नगर, चोल, पटवी, राजवाड़ी, थली, माधुरी बंजारी, नाइकी बंजारी, शेखावाटी, उज्जैनी आदि।
इनमें से मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, मालवी और बागड़ी बोलने वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक है। (आर.ए.एस. मुख्य परीक्षा वर्ष 1991, संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये- राजस्थान की मुख्य बोलियाँ।)
राजस्थानी बोलियों के क्षेत्र
मारवाड़ी
यह बोली, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, सिरोही, नागौर, जालौर एवं पाली जिलों में बोली जाती है। जोधपुरी, बीकानेरी, जैसलमेरी, नागौरी तथा थली आदि इसकी उपबोलियाँ हैं।
मेवाड़ी
यह बोली उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद और चित्तौड़गढ़ जिलों में बोली जाती है। महाराणा कुंभा की कृतियों में मेवाड़ी का प्राचीन रूप देखा जा सकता है। मारवाड़ी और मेवाड़ी बोलियों का प्रमुख अंतर क्रिया के व्यवहार में दृष्टिगोचर होता है।
ढूंढाड़ी
यह जयपुर, टोंक, अजमेर, दौसा आदि जिलों में बोली जाती है। इसे जयपुरी भी कहते हैं। यह बोली हाड़ौती बोली से अधिक सामीप्य रखती है।
हाड़ौती
यह बोली कोटा, बारां, झालावाड़, बंूदी आदि जिलों में बोली जाती है। इस बोली की ध्वनिगत एवं रूपात्मक विशेषताएं हैं।
बागड़ी
बागड़ी भाषा बिगड़ी हुई भाषा को कहते हैं। डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा जिलों में एवं उदयपुर जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में जो बागड़ी बोली जाती है, उसका निर्माण मेवाड़ी तथा गुजराती भाषाओं के मिश्रण से हुआ है। गंगानगर तथा हनुमानगढ़ जिलों में मारवाड़ी तथा पंजाबी बोलियों के मिलने से जिस बोली का निर्माण हुआ है, उसे भी बागड़ी कहते हैं। (आर.ए.एस. मुख्य परीक्षा 2000, 15 शब्दों में टिप्पणी लिखिये- बागड़ी।)
मेवाती
यह बोली अलवर, भरतपुर, धौलपुर जिलों तथा करौली जिले के पूर्वी भाग में बोली जाती है। यह हरियाणवी, ब्रज तथा मरु भाषा के सम्मिश्रण से विकसित हुई है। (आर.ए.एस. मुख्य परीक्षा वर्ष 1994, टिप्पणी लिखिये- मेवाती।)
मालवी
यह बोली मालवा की होने के कारण मालवी कहलाती है। यह झालावाड़, कोटा और चित्तौड़गढ़ के उस क्षेत्र में बोली जाती है जो मालवा के पठार के अंतर्गत आता है। (आर.ए.एस. मुख्य परीक्षा 1988- निम्न स्थानों पर बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा की बोलियों के नाम बताइये- चित्तौड़गढ़, बूंदी, जयपुर, जोधपुर, बांसवाड़ा, अलवर।)
(आर.ए.एस. प्रारम्भिक परीक्षा 2012, राजस्थान की बोली एवं क्षेत्र के सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित में से गलत युग्म को पहचानिये- 1. टोंक: ढूंढाड़ी, 2. पाली: बागड़ी, 3. बारां: हाड़ौती, 4. करौली: मेवाती)
(आर.ए.एस. प्रारंभिक परीक्षा 2012, निम्नलिखित में से कौनसी मारवाड़ी की उपबोली नहीं है-1. बीकानेरी, 2. नागरचोल, 3. जोधपुर, 4. थली ?)
राजस्थानी भाषा की बोलियाँ और भी बहुत सारी हैं किंतु यहाँ अध्ययन की सुविधा के अनुसार कुछ प्रमुख बोलियों का ही परिचय दिया गया है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता