शेखावाटी के लघुदुर्गों की श्रेणी में महनसर दुर्ग भी एक प्रमुख दुर्ग था। यह एक स्थल दुर्ग था। दुर्ग बहुत सुदढ़ है तथा चारों ओर मोटे परकोटे से घिरा हुआ है जिसके बीच में बुर्जें भी बनी हुई हैं। पूरा दुर्ग खाइयों से घिरा हुआ होने के कारण इसे पारिघ दुर्ग भी कहा जा सकता है।
नवलगढ़ शेखावाटी के ठाकुर शार्दूलसिंह की पंचपाना जागीर में स्थित था। रियासती काल में इस दुर्ग में छोटी सेना भी नियुक्त रहती थी। उस काल में महनसर प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। वर्तमान समय में महनसर दुर्ग चूरू, झुंझुनूं एवं सीकर जिलों की सीमा पर स्थित है तथा झुंझुनूं जिले में आता है।
इस दुर्ग का निर्माण ई.1768 में ठाकुर नाहरसिंह ने करवाया। वह नवलगढ़ के ठाकुर नवलसिंह का पौत्र था। दुर्ग में प्राचीन काल के दो मंदिर एवं एक सुरक्षा दीवार मौजूद है। दुर्ग की प्राचीर में 30 बुर्ज बनी हुई हैं। एक बारादरी में सुंदर भित्तिचित्र बने हुए हैं।
नाहरसिंह का पुत्र ठाकुर लक्ष्मणसिंह बहादुर योद्धा था। वह जयपुर नरेश जगतसिंह का निकट मित्र था। लक्ष्मणसिंह ने जयपुर रियासत की तरफ से कई युद्ध लड़े। उसने मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णाकुमारी को लेकर जयपुर एवं जोधपुर की सेनाओं के बीच हुए युद्ध में भी भाग लिया। लक्ष्मणसिंह ने पिलानी के ठाकुर दलेलसिंह के विरुद्ध भी युद्ध लड़ा।
लक्ष्मणसिंह के पुत्र शिवसिंह ने दुर्ग के बाहर का कच्चा डण्डा, चारदीवारी तथा बुर्जें बनवाईं। महनसर ठिकाणे का अपना अलग झण्डा था जिसे पचरंगा कहा जाता था।
अंग्रेजों के समय में महनसर के ठाकुर को न्यायिक अधिकार प्राप्त थे। उसे जयपुर राज्य की तरफ से राजश्री तथा सोनानरेश की उपाधियां प्राप्त थीं। महनसर ठिकाने की जनता, महनसर के ठाकुर को श्रीजीमहाराज तथा उसके पुत्रों को महाराजकुंवर कहकर सम्बोधित करती थी। रियासती काल में दुर्ग के भीतर महनसर ठाकुर का परिवार भी निवास करता था। अब यह दुर्ग हेरिटेज होटल में बदल दिया गया है।
महनसर दुर्ग में किसी विशेष प्राचीन पद्धति से घी एवं सूखी मेवा से हेरिटेज शराब बनाई जाती है जो आज भी प्रसिद्ध है। महनसर के भित्तिचित्र बड़े प्रसिद्ध हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता