भावण्डा गांव खींवसर तहसील में है। मालदेव के समय जोधपुर राज्य की सीमा भावण्डा तक थी और यहाँ मालदेव का थाना लगता था। एक बार नागौर के खानजादा शासक ने अजमेर की तरफ से आकर भावंडा को घेर लिया। मालदेव ने भावण्डा थाने को बचा लिया।
वह खानजादा को खदेड़ता हुआ नागौर तक चढ़ आया और नागौर दुर्ग के किवाड़ लूटकर जोधपुर ले गया। इस अभियान का नेतृत्व राठौड़ अखैराज के पौत्र तथा पंचायण के पुत्र अचलसिंह ने किया था। अचलसिंह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ तो जैता और कूंपा ने मोर्चा संभाला और नागौर तक चढ़ आये।
ये वही जैता और कूंपा थे जिन पर गिर्री-सुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी से मिल जाने का मिथ्या आरोप लगा था। इनकी बगावत के भय से मालदेव तो युद्धक्षेत्र छोड़कर भाग खड़ा हुआ था और जैता तथा कूंपा अपनी सत्यनिष्ठा सिद्ध करने के लिए युद्ध क्षेत्र में ही वीर गति को प्राप्त हुए थे। इस घटना के चलते शेरशाह ने मेहरानगढ़ दुर्ग एवं जोधपुर राज्य पर अधिकार कर लिया था।
भावण्डा में गणगौर तथा जलझूलनी ग्यारस पर अच्छे मेले लगते हैं। गांव में जीवराजसिंह राजपुरोहित द्वारा निर्मित कालका माता मंदिर है। गांव में स्थापित राजस्थानी भाषा प्रसार संस्थान राजस्थानी भाषा और साहित्य के विकास के लिए काम कर रहा है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



